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मानसिक स्वास्थ्य: एक समग्र दृष्टिकोण – भारत में पहल, चुनौतियाँ और प्रगति

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मानसिक स्वास्थ्य केवल खुश या अच्छे मूड में रहने का नाम नहीं है — यह हमारे मानसिक-भावनात्मक, सामाजिक, संज्ञानात्मक और शारीरिक क्षमताओं का सम्मिलन है। जीवन की चुनौतियों का सामना करना और उसे पूरी तरह जी पाना तभी संभव है जब हम अपने मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखें।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, मानसिक स्वास्थ्य मानव अधिकारों का एक बुनियादी हिस्सा है और यह व्यक्तिगत, सामुदायिक और सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है। कोविड-19 महामारी ने वैश्विक स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य के महत्व को और अधिक उजागर किया है।

वैश्विक परिप्रेक्ष्य

WHO के अनुसार, मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ दुनिया भर में विकलांगता के प्रमुख कारणों में से एक हैं। 2021 में अनुमानित 1.1 अरब लोग किसी न किसी मानसिक विकार से ग्रसित थे। भारत में लगभग हर 100 में से 11 लोग मानसिक स्वास्थ्य विकारों से प्रभावित हैं।

‘सतत विकास लक्ष्यों (SDGs)’ के लक्ष्य 3 में सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज और मानसिक स्वास्थ्य के संवर्धन का विशेष उल्लेख है। अवसाद और चिंता विकार विशेष रूप से युवाओं (15-29 वर्ष) में प्रमुख रूप से देखे जाते हैं।

भारत में मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति

राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (2015–16) के अनुसार:

  • 10.6% भारतीय वयस्क किसी न किसी मानसिक विकार से पीड़ित हैं।

  • 15% आबादी को मानसिक स्वास्थ्य हस्तक्षेप की आवश्यकता है।

  • मानसिक विकार शहरी क्षेत्रों (13.5%) में ग्रामीण क्षेत्रों (6.9%) की तुलना में अधिक हैं।

  • महिलाएँ (20%) पुरुषों (10%) की तुलना में अधिक प्रभावित होती हैं।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB, 2023) के अनुसार, भारत में 2023 में 1,71,418 आत्महत्याएँ दर्ज की गईं, जिनमें 72.8% पुरुष और 27.2% महिलाएँ थीं।

उपचार अंतर (Treatment Gap)

2015–16 के NIMHANS सर्वेक्षण ने दिखाया कि 70% से 92% मानसिक रोगियों को उचित उपचार नहीं मिल पाता — इसका मुख्य कारण है जागरूकता की कमी, सामाजिक कलंक और विशेषज्ञों की कमी।
WHO के अनुसार, प्रति 1 लाख जनसंख्या पर कम से कम 3 मनोचिकित्सक होने चाहिए, जबकि भारत में केवल 0.75 मनोचिकित्सक प्रति 1 लाख हैं।

मानसिक स्वास्थ्य का प्रभाव

शारीरिक प्रभाव: अवसाद से ग्रसित लोगों में हृदय रोग का जोखिम 72% तक बढ़ जाता है (Lancet Psychiatry, 2025)।
आर्थिक प्रभाव: अवसाद और चिंता वैश्विक अर्थव्यवस्था को हर साल लगभग 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की उत्पादकता हानि पहुँचाते हैं।
सामाजिक प्रभाव: सामाजिक अलगाव, संबंधों में तनाव, और भेदभाव के कारण मानसिक स्वास्थ्य और अधिक बिगड़ता है।

सामाजिक कलंक और आत्महत्या जोखिम

मानसिक रोगों से जुड़ा कलंक (stigma) इलाज में सबसे बड़ी बाधा है। WHO (2025) के अनुसार, हर साल 7 लाख से अधिक लोग आत्महत्या करते हैं। मानसिक रोगियों में आत्महत्या का जोखिम सामान्य लोगों की तुलना में 16 गुना अधिक होता है।

युवाओं में मानसिक स्वास्थ्य संकट

WHO के अनुसार, आधे से अधिक मानसिक विकार 14 वर्ष की आयु तक और 75% 24 वर्ष की आयु तक शुरू हो जाते हैं। किशोरावस्था में मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ शैक्षणिक प्रदर्शन, नशे की प्रवृत्ति और आत्म-हानि से जुड़ी होती हैं।

कोविड-19 और मानसिक स्वास्थ्य

महामारी के दौरान चिंता, अवसाद, और अकेलेपन के मामलों में तेजी आई। WHO ने पाया कि महामारी के बाद चिंता विकारों में 25% वृद्धि हुई।

भारत सरकार की पहलें

राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (NMHP) – 1982

  • उद्देश्य: मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को प्राथमिक स्वास्थ्य प्रणाली में एकीकृत करना।

  • 1996 में जिला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (DMHP) के रूप में विस्तारित किया गया — अब यह 767 जिलों को कवर करता है।

राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति (NSPS) – 2022

  • लक्ष्य: 2030 तक आत्महत्या दर में 10% की कमी लाना।

  • प्रमुख उपाय: स्कूलों में मानसिक स्वास्थ्य जांच, हेल्पलाइन, और जागरूकता अभियान।

आयुष्मान भारत और मानसिक स्वास्थ्य

  • 1.75 लाख आयुष्मान आरोग्य मंदिरों में मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध कराई गई हैं।

  • PM-JAY योजना के तहत मानसिक रोगों के लिए प्रति परिवार ₹5 लाख तक का बीमा कवरेज।

  • टेली-मानस (Tele-MANAS) के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की टेलीफोनिक पहुँच।

टेली-मानस हेल्पलाइन: 14416 / 1800-891-4416

  • अक्टूबर 2025 तक 28 लाख से अधिक कॉल्स हैंडल की गईं।

  • WHO ने इसे एक नवोन्मेषी और प्रभावी मॉडल के रूप में मान्यता दी है।

वैश्विक नीतिगत पहलें

WHO की "Comprehensive Mental Health Action Plan 2013–2030" का उद्देश्य है —

  • समुदाय-आधारित देखभाल को बढ़ावा देना

  • मानसिक स्वास्थ्य को सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (UHC) में एकीकृत करना

  • सामाजिक परिवेश में सुधार और डिजिटल समाधान का उपयोग

आर्थिक सर्वेक्षण 2024–25 की सिफारिशें

  • विद्यालयों में मानसिक स्वास्थ्य शिक्षा को सशक्त बनाना

  • कार्यस्थलों पर तनाव और थकान से निपटने के लिए नीतियाँ लागू करना

  • Tele-MANAS और AI-आधारित समाधान को बढ़ावा देना

निष्कर्ष

मानसिक स्वास्थ्य केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि राष्ट्रीय विकास का मुद्दा है। भारत ने Tele-MANAS, NMHP, और Ayushman Bharat जैसी पहलों के माध्यम से उल्लेखनीय प्रगति की है।
फिर भी, जागरूकता बढ़ाना, विशेषज्ञों का प्रशिक्षण, और सामाजिक कलंक को समाप्त करना जरूरी है ताकि हर भारतीय को सुलभ, समावेशी और गरिमामय मानसिक स्वास्थ्य सेवा मिल सके।


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