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उपराष्ट्रपति सी. पी. राधाकृष्णन ने श्रवणबेलगोला में आचार्य श्री शांतिसागर महाराज जी की शताब्दी स्मृति समारोह में की शिरकत

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भारत के उपराष्ट्रपति सी. पी. राधाकृष्णन ने आज कर्नाटक के श्रवणबेलगोला में परमपूज्य आचार्य श्री 108 शांतिसागर महाराज जी की पुण्य स्मृति में आयोजित समारोह में भाग लिया। यह आयोजन आचार्य श्री के 1925 में महामस्तकाभिषेक समारोह हेतु इस पवित्र स्थल पर आगमन की शताब्दी के उपलक्ष्य में आयोजित किया गया। इस अवसर पर उपराष्ट्रपति ने आचार्य श्री शांतिसागर महाराज जी की प्रतिमा का अनावरण भी किया।

अपने संबोधन में उपराष्ट्रपति ने आचार्य श्री शांतिसागर महाराज जी के दिगंबर परंपरा के पुनर्जागरण में किए गए योगदान की सराहना की। उन्होंने कहा कि आचार्य श्री का जीवन अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकांतवाद जैसे जैन सिद्धांतों का सजीव उदाहरण है, जो आज भी आत्मिक शांति और सामाजिक सद्भाव के लिए अत्यंत प्रासंगिक हैं।

उन्होंने कहा कि भौतिकवाद और अस्थिरता से भरे इस युग में आचार्य श्री का जीवन हमें यह संदेश देता है कि सच्ची स्वतंत्रता भोग में नहीं, बल्कि संयम में है; और सच्चा सुख बाहरी संपत्ति में नहीं, बल्कि आंतरिक शांति में निहित है।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि इस शताब्दी समारोह के माध्यम से श्रवणबेलगोला स्थित दिगंबर जैन मठ ने न केवल एक महान संत की स्मृति का सम्मान किया है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक आध्यात्मिक ज्योति को पुनः प्रज्वलित किया है। उन्होंने कहा कि अनावृत की गई प्रतिमा सादगी, पवित्रता और करुणा की शक्ति की स्मृति दिलाने वाला प्रतीक बनकर खड़ी रहेगी।

उपराष्ट्रपति ने आशा व्यक्त की कि आचार्य श्री शांतिसागर महाराज जी का संदेश समस्त भारतीयों को धर्म, सहिष्णुता और शांति के मार्ग पर अग्रसर करता रहेगा।

उन्होंने श्रवणबेलगोला के दो हजार वर्ष पुराने गौरवशाली इतिहास का उल्लेख करते हुए भगवान बाहुबली की 57 फुट ऊँची एकाश्म मूर्ति को आध्यात्मिक श्रद्धा और कला कौशल का शाश्वत प्रतीक बताया।

राधाकृष्णन ने सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा आचार्य भद्रबाहु की प्रेरणा से श्रवणबेलगोला में संन्यास लेने के ऐतिहासिक प्रसंग का उल्लेख किया और कहा कि यह घटना दर्शाती है कि सांसारिक उपलब्धियों के शिखर पर पहुँचने के बाद भी व्यक्ति को अंततः आध्यात्मिक ज्ञान की तलाश करनी चाहिए।

उन्होंने भारत सरकार द्वारा प्राकृत भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने और जैन पांडुलिपियों के डिजिटलीकरण हेतु “ज्ञान भारतम मिशन” शुरू करने की सराहना की। उन्होंने तमिलनाडु और जैन धर्म के गहरे ऐतिहासिक संबंधों का उल्लेख करते हुए कहा कि जैन धर्म ने संगम कालीन और पश्चात् संगम कालीन तमिल साहित्य जैसे शिलप्पदिकारम में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

उपराष्ट्रपति ने श्रवणबेलगोला दिगंबर जैन महास्थान मठ के वर्तमान प्रमुख अभिनव चारुकीर्ति भट्टारक स्वामीजी की भी सराहना की, जो आचार्य श्री शांतिसागर महाराज जी की परंपरा को स्वास्थ्य, शिक्षा और अनुसंधान संस्थानों जैसे प्राकृत रिसर्च इंस्टीट्यूट के माध्यम से आगे बढ़ा रहे हैं।

उपराष्ट्रपति ने विश्वास व्यक्त किया कि श्रवणबेलगोला भारत की आध्यात्मिक धरोहर का उज्ज्वल रत्न बना रहेगा और आने वाली पीढ़ियों को धर्म, सहिष्णुता और शांति के मार्ग पर प्रेरित करता रहेगा।

इस अवसर पर कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत, केंद्रीय भारी उद्योग और इस्पात मंत्री एच. डी. कुमारस्वामी, कर्नाटक के राजस्व मंत्री कृष्णा बायरे गौड़ा, योजना और सांख्यिकी मंत्री डी. सुधाकर, हासन से सांसद श्रेयस एम. पटेल, श्रवणबेलगोला दिगंबर जैन महास्थान मठ के संतगण और अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

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