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नीति आयोग ने भारत के सेवा क्षेत्र पर प्रारंभिक रिपोर्टें जारी कीं — क्षेत्रीय संतुलन, रोजगार प्रवृत्तियों और विकसित भारत @2047 के लिए रोडमैप पर केंद्रित

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नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी बी. वी. आर. सुब्रह्मण्यम ने आज सदस्य डॉ. अरविंद विरमानी और भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार डॉ. वी. अनंथा नागेश्वरन की उपस्थिति में सेवाएं विषयक श्रृंखला (Services Thematic Series) के तहत दो प्रारंभिक रिपोर्टें जारी कीं। इस अवसर पर केंद्र और राज्य सरकारों के वरिष्ठ अधिकारी, उद्योग संघों के प्रतिनिधि तथा शिक्षाविद उपस्थित थे। ये रिपोर्टें सेवाक्षेत्र का व्यापक मूल्यांकन प्रस्तुत करती हैं — उत्पादन और रोजगार के परिप्रेक्ष्य से — जो समग्र प्रवृत्तियों से आगे बढ़कर राज्य-स्तरीय विश्लेषण भी प्रदान करती हैं।

पहली रिपोर्ट, “भारत का सेवाक्षेत्र: सकल मूल्य वर्धन प्रवृत्तियों और राज्य-स्तरीय गतिशीलता से अंतर्दृष्टि”, राष्ट्रीय और राज्य-स्तर की प्रवृत्तियों का अध्ययन करती है ताकि यह समझा जा सके कि सेवाक्षेत्र-आधारित विकास विभिन्न क्षेत्रों में कैसे आगे बढ़ रहा है और क्या अपेक्षाकृत पिछड़े राज्य अग्रणी राज्यों की बराबरी कर रहे हैं — जो संतुलित क्षेत्रीय विकास का एक महत्वपूर्ण संकेतक है।

सेवाक्षेत्र अब भारत की आर्थिक वृद्धि का आधार बन गया है, जिसने वित्त वर्ष 2024–25 में राष्ट्रीय सकल मूल्य वर्धन (GVA) में लगभग 55 प्रतिशत योगदान दिया। रिपोर्ट के अनुसार, सेवाक्षेत्र आधारित विकास अब अधिक क्षेत्रीय रूप से संतुलित हो रहा है। यद्यपि राज्यों के बीच सेवाक्षेत्र के हिस्से में असमानता में थोड़ी वृद्धि हुई है, फिर भी प्रमाण मिलते हैं कि संरचनात्मक रूप से पिछड़े राज्य तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। यह प्रवृत्ति इंगित करती है कि भारत का सेवाक्षेत्र रूपांतरण अब व्यापक और समावेशी होता जा रहा है।

रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि क्षेत्रीय स्तर पर डिजिटल अवसंरचना, लॉजिस्टिक्स, नवाचार, वित्त और कौशल विकास को प्राथमिकता दी जाए, ताकि विविधीकरण और प्रतिस्पर्धात्मकता को गति दी जा सके। राज्य स्तर पर, रिपोर्ट स्थानीय क्षमताओं पर आधारित सेवाक्षेत्र रणनीतियाँ विकसित करने, संस्थागत क्षमता बढ़ाने, उद्योग-सेवा एकीकरण को प्रोत्साहित करने तथा शहरी और क्षेत्रीय सेवा क्लस्टरों को सशक्त बनाने की सिफारिश करती है।

दूसरी रिपोर्ट, “भारत का सेवाक्षेत्र: रोजगार प्रवृत्तियों और राज्य-स्तरीय गतिशीलता से अंतर्दृष्टि”, सेवाक्षेत्र के रोजगार पैटर्न का विश्लेषण करती है। इसमें उप-क्षेत्र, लिंग, क्षेत्र, शिक्षा और व्यवसाय के आधार पर भारत के सेवा कार्यबल की बहुआयामी तस्वीर प्रस्तुत की गई है। रिपोर्ट बताती है कि सेवाक्षेत्र में एक द्वैत संरचना दिखाई देती है — आधुनिक, उच्च उत्पादकता वाले क्षेत्र जो वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी हैं परंतु रोजगार की दृष्टि से सीमित हैं, और पारंपरिक क्षेत्र जो अधिक श्रमिकों को समाहित करते हैं किंतु अधिकतर अनौपचारिक और कम वेतन वाले हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि यद्यपि सेवाक्षेत्र भारत की रोजगार वृद्धि और महामारी के बाद पुनर्प्राप्ति का मुख्य आधार बना हुआ है, फिर भी कई चुनौतियाँ बनी हुई हैं। रोजगार सृजन सभी उप-क्षेत्रों में समान नहीं है, अनौपचारिकता व्यापक है, और रोजगार की गुणवत्ता उत्पादन वृद्धि के अनुरूप नहीं है। लैंगिक असमानता, ग्रामीण-शहरी अंतर और क्षेत्रीय विषमताएँ यह दर्शाती हैं कि रोजगार नीति में औपचारिकता, समावेशन और उत्पादकता वृद्धि को केंद्र में रखना आवश्यक है।

इन चुनौतियों से निपटने के लिए रिपोर्ट चार-स्तरीय नीति मार्गदर्शिका सुझाती है —

  1. गिग, स्वरोजगार और एमएसएमई श्रमिकों के लिए औपचारिकता और सामाजिक सुरक्षा को बढ़ावा देना,

  2. महिलाओं और ग्रामीण युवाओं के लिए लक्षित कौशल प्रशिक्षण और डिजिटल पहुँच का विस्तार,

  3. उभरते और हरित अर्थव्यवस्था क्षेत्रों में कौशल निवेश, और

  4. टियर-2 और टियर-3 शहरों में सेवा हब विकसित कर संतुलित क्षेत्रीय विकास को प्रोत्साहित करना।

रिपोर्ट का निष्कर्ष है कि सेवाक्षेत्र न केवल उत्पादन और आय का स्रोत है, बल्कि उच्च गुणवत्ता वाले, समावेशी और उत्पादक रोजगार का प्रमुख चालक बन सकता है, जिससे विकसित भारत @2047 के लक्ष्य को साकार करने में सहायता मिलेगी।

ये दोनों रिपोर्टें राज्य सरकारों और उद्योग जगत के लिए एक रणनीतिक मार्गदर्शिका प्रस्तुत करती हैं — जो भारत के सेवाक्षेत्र को अगले चरण के विकास की ओर अग्रसर करने के लिए डिजिटल अवसंरचना, कौशल, नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र और सेवा मूल्य शृंखलाओं के एकीकरण पर बल देती हैं, जिससे भारत को वैश्विक सेवाक्षेत्र में एक विश्वसनीय अग्रणी के रूप में स्थापित किया जा सके।

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