भालू प्रतिदिन पहाड़ी से निकलकर मंदिर(Mungai Mata Mandir) में दर्शन करने को पहुंचते हैं। श्रद्धालु उन्हें अपने हाथों से भोजन कराते हैं। कोल्डड्रिंक पिलाते हैं। देखें इस मंदिर की हैरान करने वाली फोटो और वीडियो….
हाइवे किनारे स्थित है मुंगईमाता मंदिर
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 85 किमी दूर राष्ट्रीय राजमार्ग-53 किनारे पटेवा और झलप के बीच पहाड़ी पर स्थित है मुंगईमाता का मंदिर(Mungai Mata Mandir)। पहाड़ी के नीचे भी एक कुटी में मुंगईमाता की पाषाण प्रतिमा स्थापित है, जो जनआस्था का केंद्र है। यहां भालू रोज आते हैं। श्रद्धालुओं के द्वारा प्रसाद, बिस्किट और मूंगलफली आदि खिलाने से भालुओं के भोजन का इंतजाम हो जाता है। इसके चलते यहां भालू बीते कई वर्षों से हर रोज शाम के समय आ रहे हैं। जंगली भालुओं के रोज-रोज यहां स्वच्छंद विचरण करने से देवी दर्शन करने और भालुओं को करीब से देखने वालों का तांता लग रहा है।
मुंगईमाता पहाड़ी की गुफाओं से निकलकर दो बड़े भालू रोज यहां आते हैं। इन भालुओं को देखने दूर-दूर से लोग पहुंच रहे हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग-53 से गुजरने वाले मुंबई से लेकर कोलकाता तक के लोगों का यह आस्था का केंद्र बन गया है। भालुओं की एक झलक पाने और भालुओं को अपने हाथों से बिस्किट आदि खिलाने के लिए यहां आ रहे हैं।
भालुओं की कहानी-पुजारी की जुबानी
मुंगईमाता मंदिर-बावनकेरा के पुजारी टिकेश्वर दास वैष्णव बताते हैं कि यहां पर भालू कब से आ रहे हैं, सही-सही जानकारी किसी को नहीं है। कोई सात-आठ साल बताते हैं तो कोई बीस साल से यहां भालुओं के आने की बात कहते हैं। इतना जरूर है कि जब से वे यहां बीते करीब आठ-दस साल से पुजारी हैं, तब से भालू नियमित रूप से शाम चार से छह बजे के बीच आते हैं। करीब सालभर पहले जब भालू अपने छोटे बच्चों को लेकर मंदिर तक आने लगे । तब दयाभाव से उनके लिए कुछ खाने और पीने का इंतजाम करना पुजारी ने प्रारंभ किया। इसके बाद भालू इस कदर घुल-मिल गए कि जैसे ही शहद की तरह स्वाद वाले सॉफ्ट ड्रिंक इन्हें पिलाते हैं, वह पुजारी के शरीर से लिपट जाता है। जब तक माजा का बाटल खत्म नहीं होता है, भालू पुजारी को छोड़ता ही नहीं है।
ग्रामीण बताते हैं-भालू नहीं पहुंचाते हैं किसी को नुकसान
पास के गांव दर्रीपाली निवासी युवा ईश्वर सिंह ध्रुव बताते हैं कि मुंगईमाता, बावनकेरा के इस मंदिर(Mungai Mata Mandir) में भालू सात-आठ साल से आ रहे हैं। मंदिर के पास मिलने वाले प्रसाद से प्रभावित होकर आते हैं। उन्हें खाने-पीने को मिलता है, इसलिए आते हैं। श्रद्धालुओं की देवी भक्ति के साथ ही भालुओं के साथ आस्था जुड़ी हुई है। जन आस्था है कि ये भालू देवी के भक्तों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते हैं।
ग्रामीणों की है ऐसी मान्यता
ग्रामीणों की ऐसी मान्यता है कि देवी माता की कृपा से यहां भालू आते हैं और अपने भक्तों को दर्शन देते हैं। हाथ से प्रसाद खिलाने के बावजूद अब तक किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया है। हालांकि एहतियात के तौर पर यहां वन विभाग ने तार जाली लगा रखा कि हिंसक होने पर भालू किसी को नुकसान न पहुंचाएं। महासमुंद जिले के बागाबाहरा के पास घुंचापाली पहाड़ी में भी भालू वर्षों से आ रहे हैं। वह आवागमन क्षेत्र से दूर शांत और पहाड़ी इलाका है। इसके विपरित नेशनल हाईवे से लगे हुए मंदिर में भालुओं की नियमित आवा जाही आश्चर्यजनक और जनआस्था का केंद्र बना हुआ है।
सेल्फी लेने और हाथ से प्रसाद खिलाने वालों का तांता
मुंगईमाता पहाड़ी से जैसे ही भालू नीचे उतरकर बाबा की कुटी तक आते हैं,यहां देवी दर्शन के साथ ही भालू देखने वालों का तांता लग जाता है। छोटे बच्चों से लेकर युवा, महिलाएं और बुजुर्ग सभी वर्ग के लोग भालुओं की अठखेलियों को कैमरे में कैद करने और अपने हाथों से इन्हें प्रसाद खिलाने आतुर नजर आते हैं।
अंधेरा होते ही लौट जाते हैं वापस
भालुओं के इस दल में सबसे बड़ा और नर भालू पहाड़ी से उतरकर सीधा पुजारी के कुटी में प्रवेश करता है। उसके पीछे अन्य भालू भी आ जाते हैं। फिर पुजारी इनके खाने-पीने के इंताजाम में लग जाते हैं। बड़ा नर भालू कुटी में प्रवेश कर जाता है तो पुजारी उसे अपने हाथों से धक्का देकर बाहर निकालते हैं। नारियल, इलायची दाना का प्रसाद खिलाते हैं और उसके लिए पानी का इंतजाम करने निकल जाते हैं। इस बीच कुटी के बाहर भालू को देखने के लिए श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। भालू चाव से यहां लोगों के हाथों से प्रसाद खाते हैं। किसी को नुकसान पहुंचाए बिना ही शाम ढलते और अंधेरा होते ही भालू वापस पहाड़ी की ओर लौट जाते हैं।
( चेतावनी :- भालू हिंसक वन्य जीव है, media24media अपने सुधि पाठकों को भालू से दूर रहने का आग्रह करता है।)