मुख्यमंत्री भूपेश बघेल (Chief Minister Bhupesh Baghel) ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ठाकुर प्यारेलाल सिंह की जयंती (birth anniversary of freedom fighter fighter Thakur Pyarelal Singh) पर उन्हें नमन किया है। सीएम बघेल ने कहा है कि ठाकुर साहब ने न सिर्फ गरीबों की सेवा की बल्कि उनके अधिकारों के लिए जीवनभर संघर्ष किया।
ठाकुर प्यारेलाल सिंह (Thakur Pyarelal Singh) छत्तीसगढ़ में सहकारी आंदोलन के पुरोधा के रूप में जाने जाते हैं। वे छात्र जीवन से ही स्वाधीनता आंदोलनों से जुड़े। उन्होंने अत्याचार और अन्याय के विरोध में अपनी आवाज बुलंद की और जन असंतोष को संगठित दिशा प्रदान की। राजनांदगांव में मिल मजदूरों को संगठित कर उन्हें कुशल नेतृत्व प्रदान किया। छत्तीसगढ़ में छात्रों को संगठित रूप से आंदोलनों से जोड़ने का श्रेय भी ठाकुर साहब को जाता है। उन्होंने जन-जागरण के लिए भी कई काम किए। सीएम बघेल ने कहा कि छत्तीसगढ़ के इतिहास में अपने अमूल्य योगदान के लिए ठाकुर साहब हमेशा याद किए जाएंगे।
ठाकुर प्यारे लाल सिंह की जयंती पर राज्यपाल ने उन्हें किया नमन
राज्यपाल अनुसुइया उइके (Governor Anusuiya Uike) ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ठाकुर प्यारे लाल सिंह की जयंती पर उन्हें नमन किया है। राज्यपाल ने कहा कि ठाकुर प्यारे लाल सिंह छत्तीसगढ़ में सहकारिता आंदोलन के प्रणेता थे। उनके द्वारा किए गए सामाजिक एकता और उत्थान के काम नई पीढ़ी को प्रेरणा देते रहेंगे।

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बता दें कि ठाकुर प्यारेलाल सिंह का जन्म 21 दिसंबर 1891 को राजनांदगांव जिले के दैहान ग्राम में हुआ था। उनके पिता का नाम दीनदयाल सिंह और माता का नाम नर्मदा देवी था। ठाकुर प्यारेलाल सिंह छत्तीसगढ़ में श्रमिक आंदोलन के सूत्रधार और सहकारिता आंदोलन के प्रणेता थे। उनकी शिक्षा राजनांदगांव और रायपुर में हुई थी। वहीं नागपुर और जबलपुर में उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त कर 1916 में वकालत की परीक्षा उत्तीर्ण की। बचपन से ही वे मेधावी और राष्ट्रीय विचारधारा से ओत-प्रोत थे।
आंदोलनों और राष्ट्रीय आंदोलन के लिए जन-सामान्य को किया था जागृत
1906 में बंगाल के क्रांतिकारियों के संपर्क में आकर क्रांतिकारी साहित्य के प्रचार शुरू किया और विद्यार्थियों को संगठित कर जुलूस के समय वन्देमातरम् का नारा लगवाते थे। 1909 में सरस्वती पुस्तकालय की स्थापना की। 1920 में राजनांदगांव में मिल-मालिकों के शोषण के खिलाफ आवाज उठाई, जिसमें मजदूरों की जीत हुई। उन्होंने स्थानीय आंदोलनों और राष्ट्रीय आंदोलन के लिए जन-सामान्य को जागृत किया।

कई कार्यों का किया संचालन
1925 से वे रायपुर में निवास करने लगे। उन्होंने छत्तीसगढ़ में शराब की दुकानों में पिकेटिंग, हिन्दू-मुस्लिम एकता, नमक कानून तोड़ना, दलित उत्थान जैसे अनेक कार्यों का संचालन किया। देश सेवा करते हुए वे कई बार जेल भी गए।
1937 में चुने गए थे रायपुर नगरपालिका के अध्यक्ष
राजनीतिक झंझावातों के बीच 1937 में रायपुर नगरपालिका के अध्यक्ष चुने गए थे। 1945 में छत्तीसगढ़ के बुनकरों को संगठित करने के लिए उनके नेतृत्व में छत्तीसगढ़ बुनकर सहकारी संघ की स्थापना हुई। प्रवासी छत्तीसगढ़ियों को शोषण और अत्याचार से मुक्त कराने की दिशा में भी वे सक्रिय रहे।
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वैचारिक मतभेदों के कारण सत्ता पक्ष को छोड़कर वे आचार्य कृपलानी की किसान मजदूर पार्टी में शामिल हुए। 1952 में रायपुर से विधानसभा के लिए चुने गए और विरोधी दल के नेता बने। विनोबा भावे के भूदान और सर्वोदय आंदोलन को उन्होंने छत्तीसगढ़ में विस्तारित किया। 20 अक्टूबर 1954 को भूदान यात्रा के समय अस्वस्थ हो जाने से उनका निधन हो गया। छत्तीसगढ़ शासन ने उनकी स्मृति में सहकारिता के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए ठाकुर प्यारेलाल सिंह सम्मान स्थापित किया है।