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WHO वैश्विक पारंपरिक चिकित्सा शिखर सम्मेलन: आयुष मंत्री प्रतापराव जाधव ने WHO महानिदेशक से की मुलाकात, पारंपरिक चिकित्सा के वैश्विक सहयोग को मिला नया आयाम

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केंद्रीय आयुष मंत्रालय (स्वतंत्र प्रभार) तथा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री प्रतापराव जाधव ने आज विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के महानिदेशक डॉ. टेड्रोस अधानोम घेब्रेयेसस से मुलाकात की। इस अवसर पर उन्होंने वैश्विक स्तर पर पारंपरिक, पूरक एवं एकीकृत चिकित्सा (Traditional, Complementary and Integrative Medicine – TCIM) को आगे बढ़ाने में WHO के नेतृत्व के लिए भारत की ओर से आभार व्यक्त किया। यह भेंट WHO वैश्विक पारंपरिक चिकित्सा शिखर सम्मेलन के दूसरे दिन हुई। सम्मेलन का समापन 19 दिसंबर 2025 को भारत मंडपम, नई दिल्ली में होगा, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुख्य अतिथि के रूप में शामिल होंगे।

शिखर सम्मेलन के दूसरे दिन विज्ञान, अनुसंधान में निवेश, नवाचार, सुरक्षा, विनियमन और स्वास्थ्य प्रणालियों में एकीकरण जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर उच्चस्तरीय विचार-विमर्श हुआ। सम्मेलन का केंद्रीय विषय “संतुलन की पुनर्स्थापना: स्वास्थ्य एवं कल्याण का विज्ञान और व्यवहार” रहा, जो हाल ही में स्वीकृत WHO वैश्विक पारंपरिक चिकित्सा रणनीति 2025–2034 के अनुरूप है। इस रणनीति का उद्देश्य पारंपरिक चिकित्सा को एक न्यायसंगत, सुदृढ़ और जन-केंद्रित वैश्विक स्वास्थ्य प्रणाली का अभिन्न हिस्सा बनाना है।

इस अवसर पर केंद्रीय मंत्री प्रतापराव जाधव ने नेपाल, श्रीलंका, माइक्रोनेशिया, मॉरीशस और फिजी के प्रतिनिधिमंडलों के साथ द्विपक्षीय बैठकें कीं, जबकि आयुष मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने अन्य देशों के साथ संवाद किया। कुल मिलाकर, आयुष मंत्रालय ने ब्राज़ील, मलेशिया, नेपाल, श्रीलंका, माइक्रोनेशिया, मॉरीशस, फिजी, केन्या, संयुक्त अरब अमीरात, मैक्सिको, वियतनाम, भूटान, सूरीनाम, थाईलैंड, घाना और क्यूबा सहित 16 देशों के साथ द्विपक्षीय बैठकें आयोजित कीं। इन बैठकों का उद्देश्य पारंपरिक चिकित्सा के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय सहयोग को सुदृढ़ करना रहा।

शिखर सम्मेलन के इतर, भारत और क्यूबा के बीच अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान (AIIA) से संबंधित संस्थागत समझौता ज्ञापन (MoU) का विस्तार किया गया। इसके अंतर्गत पाठ्यक्रम विकास, सार्वजनिक स्वास्थ्य में एकीकरण, पंचकर्म प्रशिक्षण तथा आयुर्वेद में नियामक सामंजस्य को बढ़ावा देने हेतु संयुक्त कार्य समूह के गठन पर सहमति बनी।

दूसरे दिन आयोजित पूर्ण सत्रों में ऑस्ट्रेलिया, मोरक्को, ईरान, युगांडा, कनाडा, स्विट्ज़रलैंड, अमेरिका, ब्रिटेन, कोलंबिया, ब्राज़ील, भारत, न्यूज़ीलैंड, जर्मनी, नेपाल, कोरिया गणराज्य और श्रीलंका के विशेषज्ञों ने अपने अनुभव साझा किए।

पूर्ण सत्र–2 का विषय “पारंपरिक चिकित्सा की प्रगति के लिए विज्ञान में निवेश” रहा, जिसमें वैज्ञानिक अनुसंधान, सतत निवेश, नवाचार और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के महत्व पर जोर दिया गया।

इसके अतिरिक्त विभिन्न समांतर सत्रों में अनुसंधान रोडमैप को वैश्विक कार्रवाई में बदलने, अनुसंधान पद्धतियों, मानसिक स्वास्थ्य, कैंसर देखभाल, ध्यान एवं योग, निवेश और नवाचार, तथा पारंपरिक चिकित्सा के सुरक्षित एवं प्रभावी एकीकरण जैसे विषयों पर विस्तार से चर्चा हुई।

पूर्ण सत्र–3 में “संतुलन, सुरक्षा और लचीलापन के लिए स्वास्थ्य प्रणालियों की पुनर्कल्पना” पर जोर दिया गया। इसमें पारंपरिक चिकित्सा को स्वास्थ्य प्रणालियों में सुरक्षित रूप से एकीकृत करने, रोगी सुरक्षा, गुणवत्ता आश्वासन और नियामक सामंजस्य जैसे पहलुओं पर प्रकाश डाला गया।

शिखर सम्मेलन के दूसरे दिन के विचार-विमर्श ने यह स्पष्ट किया कि विज्ञान-आधारित प्रमाण, मजबूत शासन व्यवस्था, रोगी सुरक्षा और समान अवसर सुनिश्चित करते हुए पारंपरिक चिकित्सा को आधुनिक स्वास्थ्य प्रणालियों में शामिल करना समय की आवश्यकता है। यह सम्मेलन पारंपरिक चिकित्सा को लचीली स्वास्थ्य प्रणालियों, जैव-विविधता संरक्षण और समावेशी विकास का महत्वपूर्ण आधार मानते हुए अंतिम दिन की नीतिगत चर्चाओं और वैश्विक प्रतिबद्धताओं के लिए मजबूत नींव तैयार करता है।


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