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राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने जमशेदपुर में 22वें पारसी महोत्सव एवं ओलचिकी शताब्दी समारोह के समापन समारोह को किया संबोधित

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भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने आज (29 दिसंबर, 2025) झारखंड के जमशेदपुर में आयोजित 22वें पारसी महोत्सव (Parsi Maha) एवं ओलचिकी लिपि के शताब्दी समारोह के समापन समारोह में सहभागिता की और उपस्थित जनसमूह को संबोधित किया।

इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि संथाल समुदाय की अपनी विशिष्ट भाषा, साहित्य और संस्कृति है। हालांकि, लगभग एक सदी पहले संथाली भाषा की अपनी कोई लिपि नहीं थी, जिसके कारण इसे रोमन, देवनागरी, ओड़िया और बांग्ला जैसी विभिन्न लिपियों में लिखा जाता था। इन लिपियों में कई संथाली शब्दों का सही उच्चारण संभव नहीं हो पाता था। वर्ष 1925 में पंडित रघुनाथ मुर्मु ने ओलचिकी लिपि का निर्माण किया। तब से यह लिपि संथाल पहचान का एक सशक्त प्रतीक बन गई है।

राष्ट्रपति ने कहा कि उन्हें 25 दिसंबर 2025 को, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती के अवसर पर, ओलचिकी लिपि में लिखित संथाली भाषा में भारत के संविधान का विमोचन करने का अवसर प्राप्त हुआ। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि अब संथाली भाषी लोग अपनी मातृभाषा और ओलचिकी लिपि में लिखे संविधान को पढ़ और समझ सकेंगे।

राष्ट्रपति ने कहा कि किसी अन्य भाषा में शिक्षा प्राप्त करने के साथ-साथ मातृभाषा संथाली को ओलचिकी लिपि में सीखना भी संथाल समुदाय के समग्र विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने यह जानकर प्रसन्नता व्यक्त की कि लेखक और भाषा प्रेमी संथाली भाषा के विकास और प्रचार-प्रसार के लिए निरंतर कार्य कर रहे हैं।

राष्ट्रपति ने लोगों से पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए विकास के पथ पर आगे बढ़ने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि पर्यावरण के अनुकूल जीवनशैली संथाल समुदाय और अन्य जनजातीय समाजों से सीखी जा सकती है।

राष्ट्रपति ने कहा कि संथाली साहित्य को संथाल समुदाय की मौखिक परंपराओं और गीतों से विशेष बल मिलता है। उन्होंने उल्लेख किया कि अनेक लेखक अपने रचनात्मक कार्यों के माध्यम से संथाली साहित्य को समृद्ध कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि जनजातीय समुदायों में जागरूकता लाना एक महत्वपूर्ण कार्य है और लेखकों से आग्रह किया कि वे अपनी लेखनी के माध्यम से इस दिशा में योगदान दें।

राष्ट्रपति ने कहा कि भाषा और साहित्य समुदायों को आपस में जोड़ते हैं। विभिन्न भाषाओं के बीच साहित्यिक आदान-प्रदान से भाषाएं और समुदाय दोनों समृद्ध होते हैं, और अनुवाद इस आदान-प्रदान को संभव बनाते हैं। इसलिए संथाली भाषा के विद्यार्थियों को अन्य भाषाओं से परिचित कराना आवश्यक है। इसी प्रकार, संथाली साहित्य को अन्य भाषाओं के विद्यार्थियों के लिए भी सुलभ बनाने के प्रयास किए जाने चाहिए। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि अखिल भारतीय संथाली लेखक संघ इस महत्वपूर्ण दायित्व का प्रभावी ढंग से निर्वहन करेगा।


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