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शीतकालीन सत्र से पहले PM मोदी का संबोधन: लोकतांत्रिक ऊर्जा, नीति-केन्द्रित बहस और राष्ट्रहित पर जोर

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज संसद परिसर में 2025 के शीतकालीन सत्र की शुरुआत से पहले मीडिया को संबोधित किया। प्रधानमंत्री ने जोर देकर कहा कि यह सत्र केवल एक औपचारिकता नहीं है, बल्कि राष्ट्र की तीव्र प्रगति की यात्रा में नई ऊर्जा का महत्वपूर्ण स्रोत है। उन्होंने कहा, “मेरा दृढ़ विश्वास है कि यह सत्र देश की प्रगति को गति देने के लिए चल रहे प्रयासों में नई ऊर्जा का संचार करेगा।”

प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत ने लगातार अपनी लोकतांत्रिक परंपराओं की जीवंतता और भावना को प्रदर्शित किया है। हाल ही में हुए बिहार विधानसभा चुनावों का उल्लेख करते हुए, उन्होंने रिकॉर्ड मतदान को राष्ट्र की लोकतांत्रिक शक्ति का सशक्त प्रमाण बताया। उन्होंने महिला मतदाताओं की बढ़ती भागीदारी को भी अत्यंत उत्साहजनक और प्रेरणादायक बताया, जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया में नया विश्वास और नई उम्मीद जगाती है। उन्होंने कहा कि जैसे-जैसे भारत की लोकतांत्रिक संस्थाएं मजबूत हो रही हैं, विश्व यह देख रहा है कि यह लोकतांत्रिक ढांचा देश की आर्थिक क्षमता को भी मजबूत कर रहा है। उन्होंने कहा, “भारत ने सिद्ध किया है कि लोकतंत्र डिलीवर कर सकता है।” मोदी ने जोर देकर कहा, “भारत की आर्थिक प्रगति जिस गति से नए आयाम छू रही है, वह हमें आत्मविश्वास देती है और विकसित भारत के लक्ष्य की ओर बढ़ने के लिए नई शक्ति प्रदान करती है।”

प्रधानमंत्री ने सभी राजनीतिक दलों से आग्रह किया कि सत्र का केंद्र राष्ट्रीय हित, रचनात्मक बहस और नीतिगत परिणाम होने चाहिए। उन्होंने कहा कि संसद को इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि वह देश के लिए क्या सोच रखती है और क्या देने के लिए प्रतिबद्ध है। विपक्ष से लोकतांत्रिक जिम्मेदारी निभाने का आह्वान करते हुए, उन्होंने सार्थक और गंभीर मुद्दे उठाने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने चेताया कि चुनावी हार की निराशा को संसद की कार्यवाही पर हावी नहीं होने देना चाहिए। वहीं, चुनावी जीत के अहंकार से भी सावधान करते हुए उन्होंने कहा, “शीतकालीन सत्र में संतुलन, जिम्मेदारी और जनप्रतिनिधियों की अपेक्षित गरिमा झलकनी चाहिए।”

प्रधानमंत्री ने सूचित बहस के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि सदस्यों को यह देखना चाहिए कि क्या अच्छा चल रहा है उसे और बेहतर कैसे बनाया जाए, और जहां आवश्यकता हो वहां सही, रचनात्मक आलोचना प्रस्तुत की जाए ताकि नागरिकों को सही जानकारी मिल सके। उन्होंने कहा, “यह काम कठिन है, लेकिन देश के लिए अनिवार्य है।”

पहली बार चुने गए और युवा सांसदों को लेकर चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि कई सांसदों को — चाहे वे किसी भी दल के हों — अपनी बात रखने और अपने क्षेत्रों के मुद्दे उठाने का पर्याप्त अवसर नहीं मिल रहा है। उन्होंने सभी दलों से आग्रह किया कि इन सांसदों को उचित मंच उपलब्ध कराया जाए। प्रधानमंत्री ने कहा, “संसद और देश, दोनों को नए भारत की नई पीढ़ी की ऊर्जा और विचारों का लाभ मिलना चाहिए।”

प्रधानमंत्री ने कहा कि संसद नीतियों और डिलीवरी का स्थान है, न कि नाटक या नारेबाज़ी का। “नारे और नाटक के लिए दुनिया में जगहों की कमी नहीं है। लेकिन संसद में हमारा फोकस नीति पर होना चाहिए और हमारी नीयत स्पष्ट होनी चाहिए।”

उन्होंने इस सत्र के विशेष महत्व का उल्लेख करते हुए कहा कि यह सत्र राज्यसभा के नए माननीय सभापति के मार्गदर्शन की शुरुआत का प्रतीक है। उन्होंने सभापति को बधाई देते हुए विश्वास व्यक्त किया कि उनके नेतृत्व में संसदीय प्रक्रियाएं और मजबूत होंगी।

प्रधानमंत्री ने कहा कि जीएसटी सुधारों ने नागरिकों के बीच भरोसे का मजबूत माहौल बनाया है और यह सुधार अब अगली पीढ़ी के सुधारों के रूप में विकसित हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि शीतकालीन सत्र में इस दिशा में कई महत्वपूर्ण पहलों को आगे बढ़ाया जाएगा।

हालिया संसदीय प्रवृत्तियों पर चिंता व्यक्त करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि हाल के समय में संसद को कभी चुनावों की तैयारी के मैदान के रूप में तो कभी चुनावी हार की निराशा निकालने के मंच के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। उन्होंने कहा, “देश ने इन तरीकों को स्वीकार नहीं किया है। अब समय आ गया है कि वे अपनी रणनीति और दृष्टिकोण बदलें। यदि आवश्यकता हो तो मैं उन्हें बेहतर प्रदर्शन करने के टिप्स देने के लिए भी तैयार हूँ।”

उन्होंने कहा, “मैं आशा करता हूँ कि हम सभी इन जिम्मेदारियों को ध्यान में रखते हुए आगे बढ़ेंगे। और मैं देश को आश्वस्त करता हूँ कि भारत प्रगति के मार्ग पर आगे बढ़ रहा है।” उन्होंने पुनः दोहराया कि “देश नई ऊँचाइयों की ओर बढ़ रहा है और इस यात्रा में यह सदन नई ऊर्जा और शक्ति प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।”


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