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गुरु तेग बहादुर जी के 350वें शहादत दिवस पर अंतरधार्मिक सम्मेलन: उपराष्ट्रपति ने शांति, धार्मिक स्वतंत्रता और मानवता का दिया संदेश

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नई दिल्ली- भारत के उपराष्ट्रपति सी. पी. राधाकृष्णन ने आज नई दिल्ली में आयोजित अंतरधार्मिक  सम्मेलन (इंटरफेथ कॉन्क्लेव) को संबोधित करते हुए कहा कि यह आयोजन शांति, मानवाधिकारों और धार्मिक सद्भाव के लिए एक वैश्विक आह्वान है। यह सम्मेलन गुरु तेग बहादुर जी के 350वें शहादत दिवस के अवसर पर आयोजित किया गया।

उपराष्ट्रपति ने बताया कि उन्होंने हाल ही में गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब जाकर गुरु तेग बहादुर जी को श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने गुरु तेग बहादुर जी को नैतिक साहस का प्रकाशस्तंभ बताते हुए कहा कि उनका जीवन और बलिदान संपूर्ण मानवता की धरोहर है।

धार्मिक स्वतंत्रता का ऐतिहासिक प्रतीक

उपराष्ट्रपति ने कहा कि गुरु तेग बहादुर जी का बलिदान धार्मिक स्वतंत्रता के इतिहास में एक अद्वितीय उदाहरण है। उन्होंने किसी राजनीतिक सत्ता या किसी एक मत की श्रेष्ठता के लिए नहीं, बल्कि व्यक्ति की अंतरात्मा के अनुसार जीवन जीने और उपासना करने के अधिकार की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया। असहिष्णुता के दौर में उन्होंने पीड़ितों के लिए ढाल बनकर खड़े होने का साहस दिखाया।

‘हिंद दी चादर’ का वैश्विक संदेश

राधाकृष्णन ने कहा कि गुरु तेग बहादुर जी ने विश्व को सिखाया कि करुणा से प्रेरित साहस समाज को बदल सकता है और अन्याय के सामने मौन रहना सच्चे धर्म के अनुकूल नहीं है। इन्हीं शाश्वत मूल्यों के कारण उन्हें केवल सिख गुरु ही नहीं, बल्कि सर्वोच्च बलिदान और नैतिक साहस के सार्वभौमिक प्रतीक के रूप में सम्मानित किया जाता है और उन्हें ‘हिंद दी चादर’ की उपाधि प्राप्त है।

भारत की शक्ति: विविधता में एकता

उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारत की सबसे बड़ी ताकत उसकी विविधता में एकता है। प्राचीन काल से ही भारत ने विभिन्न आस्थाओं, दर्शनों और संस्कृतियों का स्वागत किया है, जिसे संविधान निर्माताओं ने विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, आस्था और उपासना की स्वतंत्रता के मूल अधिकारों के माध्यम से सुदृढ़ किया।

उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” के आह्वान का उल्लेख करते हुए इसे भारत की सभ्यतागत आत्मा से जुड़ा दृष्टिकोण बताया और विकसित भारत @2047 के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सामूहिक प्रयासों का आह्वान किया।

वैश्विक मंच पर भारत की भूमिका

समकालीन वैश्विक चुनौतियों पर बोलते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने G20 की अध्यक्षता के दौरान “वसुधैव कुटुम्बकम” की भावना को “One Earth, One Family, One Future” के रूप में विश्व के सामने प्रस्तुत किया। उन्होंने मिशन LiFE के माध्यम से जलवायु परिवर्तन और कोविड-19 के दौरान “वैक्सीन मैत्री” पहल के तहत 100 से अधिक देशों को निःशुल्क टीके उपलब्ध कराने में भारत की मानवीय भूमिका को भी रेखांकित किया।

उन्होंने तमिल सूक्ति “याधुम ऊरे, यावरुम केलिर” का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत की सभ्यतागत चेतना आज भी वैश्विक सद्भाव को प्रेरित कर रही है।

आज भी प्रासंगिक है गुरु तेग बहादुर जी का संदेश

उपराष्ट्रपति ने कहा कि गुरु तेग बहादुर जी का बलिदान भारत की आत्मा से गहराई से जुड़ा है—एक ऐसा राष्ट्र जहां एकता एकरूपता से नहीं, बल्कि आपसी सम्मान और समझ से बनती है। उन्होंने जोर देकर कहा कि आज के समय में भी गुरु तेग बहादुर जी का संदेश अत्यंत प्रासंगिक है, क्योंकि शांति बल से नहीं, बल्कि न्याय, करुणा और मानवीय गरिमा के सम्मान से स्थापित होती है।

सम्मेलन में प्रमुख हस्तियों की उपस्थिति

यह अंतरधार्मिक सम्मेलन डॉ. विक्रमजीत सिंह सहनी, राज्यसभा सांसद एवं अध्यक्ष, ग्लोबल इंटरफेथ हार्मनी फाउंडेशन द्वारा आयोजित किया गया। सम्मेलन में जैन आचार्य लोकेश मुनि, नामधारी सतगुरु उदय सिंह, मोहन रूपा दास (इस्कॉन मंदिर, दिल्ली), हाजी सैयद सलमान चिश्ती (अजमेर दरगाह शरीफ), रेव. फादर मोनोडीप डेनियल, सरदार तरलोचन सिंह सहित अनेक प्रतिष्ठित धार्मिक एवं आध्यात्मिक नेता उपस्थित रहे।


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