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केंद्रीय मंत्री एच. डी. कुमारस्वामी ने स्पेशलिटी स्टील के लिए पीएलआई योजना के तीसरे चरण (PLI 1.2) का शुभारंभ किया

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केंद्रीय इस्पात एवं भारी उद्योग मंत्री एच. डी. कुमारस्वामी ने स्पेशलिटी स्टील (विशेष इस्पात) के लिए उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना के तीसरे चरण का शुभारंभ किया। इस्पात मंत्रालय की इस पीएलआई योजना के तहत अब तक ₹43,874 करोड़ का निवेश संकल्पित किया जा चुका है, जिससे 30,760 प्रत्यक्ष रोजगार सृजित हुए हैं और 14.3 मिलियन टन स्पेशलिटी स्टील के उत्पादन का अनुमान है। सितंबर 2025 तक, पहले दो चरणों में भाग लेने वाली कंपनियों ने ₹22,973 करोड़ का निवेश किया है और 13,284 रोजगार उत्पन्न किए हैं।

स्पेशलिटी स्टील के लिए पीएलआई योजना, जिसे जुलाई 2021 में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा अनुमोदित किया गया था, आत्मनिर्भर भारत दृष्टिकोण के अंतर्गत एक प्रमुख पहल है, जिसका उद्देश्य भारत को उच्च गुणवत्ता वाले स्टील उत्पादन का वैश्विक केंद्र बनाना है। योजना का तीसरा चरण (PLI 1.2) उभरते और उन्नत इस्पात उत्पादों जैसे सुपर एलॉय, सीआरजीओ, स्टेनलेस स्टील (लॉन्ग और फ्लैट), टाइटेनियम एलॉय और कोटेड स्टील में निवेश आकर्षित करने पर केंद्रित है। यह पहल उच्च मूल्य वाले इस्पात के उत्पादन को बढ़ावा देने, नए रोजगार सृजन और भारत को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता के रूप में स्थापित करने में सहायक होगी।

तीसरे चरण (PLI 1.2) की प्रमुख विशेषताएं:

  • आवेदन अवधि: लॉन्च की तारीख से 30 दिनों तक ऑनलाइन पोर्टल https://plimos.mecon.co.in के माध्यम से आवेदन आमंत्रित किए गए हैं।

  • पात्रता: भारत में पंजीकृत वे कंपनियाँ जो अधिसूचित उत्पादों के एंड-टू-एंड विनिर्माण में संलग्न हैं, आवेदन के लिए पात्र हैं।

  • उत्पाद कवरेज: योजना के तीसरे चरण में पाँच प्रमुख लक्ष्य वर्गों में 22 उत्पाद उप-श्रेणियाँ शामिल हैं, जिनमें रणनीतिक स्टील ग्रेड, वाणिज्यिक ग्रेड (श्रेणी 1 और 2) तथा कोटेड/वायर उत्पाद सम्मिलित हैं।

  • प्रोत्साहन दरें: प्रोत्साहन दरें उत्पाद श्रेणी और उत्पादन वर्ष के आधार पर 4% से 15% तक होंगी।

  • प्रोत्साहन अवधि: वित्त वर्ष 2025–26 से अधिकतम पाँच वर्षों तक लाभ उपलब्ध रहेगा, जबकि भुगतान वित्त वर्ष 2026–27 से प्रारंभ होगा।

  • अन्य परिवर्तन: मूल्य निर्धारण के लिए आधार वर्ष 2019–20 से संशोधित कर 2024–25 कर दिया गया है ताकि वर्तमान रुझानों को बेहतर तरीके से दर्शाया जा सके।

यह कदम न केवल इस्पात क्षेत्र में तकनीकी उन्नति और आत्मनिर्भरता को सशक्त करेगा, बल्कि भारत की औद्योगिक प्रतिस्पर्धात्मकता को भी वैश्विक स्तर पर नई ऊँचाइयों तक पहुँचाएगा।

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