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केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान का पंजाब दौरा: पराली प्रबंधन के रंसीह कलां मॉडल की सराहना

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केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री, शिवराज सिंह चौहान, आज एक दिवसीय पंजाब दौरे पर हैं। इस दौरान केंद्रीय मंत्री ने मोगा के रंसीह कलां गांव में किसानों, ग्रामीणों और अन्य हितधारकों से मुलाकात की और पिछले छह वर्षों से पराली न जलाने तथा उत्कृष्ट पराली प्रबंधन के लिए उनकी सराहना की। इस उपलब्धि पर उन्होंने सभी को बधाई भी दी।

मुख्य कार्यक्रम से पहले मीडिया से बातचीत करते हुए केंद्रीय मंत्री ने कहा कि पराली जलाने की घटनाओं ने पूरे देश को चिंतित किया हुआ था। उन्होंने कहा कि भले ही पराली जलाने से खेत साफ हो जाते हैं, लेकिन इससे लाभदायक कीट नष्ट हो जाते हैं और गंभीर प्रदूषण की समस्या उत्पन्न होती है।

उन्होंने कहा, “मैं आज पंजाब को बधाई देने और यहां के पराली प्रबंधन के मॉडल को पूरे देश तक ले जाने आया हूं। पंजाब में इस वर्ष पराली जलाने की घटनाओं में 83 प्रतिशत की कमी आई है। पहले लगभग 83,000 घटनाएँ होती थीं जो अब घटकर करीब 5,000 रह गई हैं।”

केंद्रीय कृषि मंत्री ने आगे कहा, “किसान भाई-बहन पूछते हैं कि अगर पराली न जलाएं तो विकल्प क्या है? गेहूं और अन्य फसलों की बुवाई के लिए खेत कैसे तैयार हों? रंसीह कलां ने इसका जवाब प्रस्तुत किया है। पिछले छह वर्षों से यहां पराली नहीं जलाई गई। किसान पराली को सीधे खेत में मिलाते हैं और डाइरेक्ट सीडिंग करते हैं।”

मुख्य कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मंत्री चौहान ने कहा कि कुछ दिन पहले उन्होंने रंसीह कलां गांव के बारे में पढ़ा था। यहां पराली को बोझ नहीं, बल्कि वरदान बनाया गया है। यह गांव लेने के बजाय देने में विश्वास रखने वाला आदर्श गांव है। उन्होंने कहा कि कृषि मंत्री होने के नाते किसान और खेतों में जाकर सीधे संवाद करना आवश्यक है, तभी किसान हित में सही कार्य किया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि पराली जलाने के बाद खेतों में पानी लगाना पड़ता है और फिर बुवाई के लिए भूमि तैयार करनी पड़ती है। लेकिन रंसीह कलां की पद्धति के अनुसार, हैप्पी सीडर से कटाई कर पराली को मिट्टी में मिलाकर बिना पानी लगाए ही डाइरेक्ट सीडिंग की जा सकती है। इससे पानी और डीज़ल दोनों की बचत होती है। पराली में मौजूद पोटाश मिट्टी को पोषक बनाता है, नमी बची रहती है और खरपतवार भी कम होते हैं। इससे मिट्टी का ऑर्गेनिक कार्बन बढ़ता है और खाद की आवश्यकता भी कम होती है। सरपंच ने उन्हें बताया कि पहले डेढ़ बोरी डीएपी लगती थी, अब एक बोरी से काम चल जाता है। इसी तरह तीन बोरी यूरिया की जगह दो बोरी पर्याप्त है — यह लागत बचत का स्पष्ट प्रमाण है।

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि उन्होंने खेतों का निरीक्षण भी किया और पाया कि पराली को मिट्टी में मिलाने से फसल की गुणवत्ता या उपज पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। उपज लगभग 20–22 क्विंटल प्रति एकड़ रहती है।

उन्होंने बताया कि यह पद्धति सिर्फ गेहूं ही नहीं, बल्कि आलू की खेती में भी लाभकारी है। किसानों ने बताया कि पहले आलू के खेतों में पोटाश डालना पड़ता था, परंतु अब पराली में मौजूद जिंक और पोटाश से ही जरूरत पूरी हो जाती है। इससे आलू आकार में बड़े, बेहतर गुणवत्ता वाले और कम लागत में तैयार हो रहे हैं।

उन्होंने सरसों के खेत का भी निरीक्षण किया और वहां भी लाभ देखे। कम खाद और कम पानी में अधिक उत्पादन की संभावना है।

रंसीह कलां को उन्होंने एक ‘स्कूल’ बताया जहाँ से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। सरपंच के नेतृत्व में पराली प्रबंधन के अलावा पानी की बचत, वर्षा जल संचयन, प्लास्टिक प्रबंधन, झील, पार्क और पुस्तकालय जैसे कई कार्य उत्कृष्ट रूप से किए गए हैं। नशा विरोधी अभियान भी प्रशंसनीय है। भूमिगत नालियों के कारण डेंगू और मलेरिया की समस्या नहीं है। केंद्रीय मंत्री ने सरपंच प्रीत इंदरपाल सिंह मिंटू की सराहना करते हुए कहा कि उनका कार्य गर्व करने योग्य है।

उन्होंने कहा कि वे रंसीह कलां की धरती से देश के किसानों को संदेश देना चाहते हैं कि इस मॉडल को अपनाकर पराली प्रबंधन किया जाए। इससे प्रदूषण कम होगा और भूमि अधिक उपजाऊ बनेगी।

केंद्रीय मंत्री ने बताया कि वे चुनिंदा किसानों से मिलकर सुझाव लेंगे और प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में कृषि परिवर्तन के लिए पाँच वर्षीय योजनाएँ तैयार करेंगे। इसके लिए 22–23 दिसंबर को एक विचार-विमर्श बैठक प्रस्तावित है। ग्रामीण विकास पर भी ऐसे प्रयास होंगे।

उन्होंने छोटे किसानों के लिए मशीनरी उपलब्ध कराने के प्रस्तावों पर भी चर्चा की और आईसीएआर के महानिदेशक डॉ. एम. एल. जाट को निर्देश दिया कि कस्टम हायरिंग सेंटर को आधुनिक मशीनीकरण केंद्र के रूप में विकसित किया जाए। हर किसान मशीन खरीद नहीं सकता, इसलिए समूह आधारित किराये पर मशीन उपलब्ध कराने की व्यवस्था बनाई जाएगी।

चौहान ने ‘दालों में आत्मनिर्भरता मिशन’ पर भी चर्चा की और कहा कि जहां दालें उगाई जाएँगी वहां दाल मिलों के लिए सब्सिडी दी जाएगी। सरकार गेहूं और धान की तरह मसूर, अरहर, उड़द और चना भी एमएसपी पर खरीदेगी और किसानों को उनके परिश्रम का हर पैसा मिलेगा।

अंत में उन्होंने कहा कि पंजाब ज्ञान की धरती है। यहाँ आकर सीखने का मन करता है। पंजाब ने देश को कृषि में बहुत कुछ सिखाया है। वे यहाँ आकर प्रसन्न हैं और प्रधानमंत्री के नेतृत्व में पंजाब के विकास के लिए हर संभव प्रयास किए जाएंगे।

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