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IITF 2025: भारत मंडपम में भारत की आर्थिक विविधता और जमीनी उद्यमिता का भव्य प्रदर्शन

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भारत मंडपम परिसर भारत की आर्थिक विविधता का एक जीवंत प्रदर्शन बन गया है, जहाँ पारंपरिक शिल्प, कृषि उद्यम, स्टार्टअप नवाचार और विभिन्न राज्यों की क्षेत्रीय विशेषताएँ एक साथ प्रदर्शित हो रही हैं।

44वां भारत अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेला (IITF) 2025, जिसकी थीम एक भारत, श्रेष्ठ भारत है, में 3,500 से अधिक प्रतिभागी शामिल हुए—हर कोई अपने श्रम, विरासत और आकांक्षा की अपनी-अपनी कहानी लेकर।

14 नवंबर 2025 को उद्घाटन किया गया यह चौदह-दिवसीय आयोजन सिर्फ एक व्यापारिक मेला नहीं है, बल्कि एक ऐसा अवसर मंच है जहाँ प्रथम-पीढ़ी के उद्यमी, ग्रामीण कारीगर और घरेलू ब्रांड अपनी मांग परखते हैं, खरीदारों से जुड़ते हैं, साथियों से सीखते हैं और राज्य-स्तरीय सहायता तंत्र तक पहुँचते हैं। कई प्रदर्शकों के लिए IITF राष्ट्रीय बाज़ार में प्रवेश का पहला बड़ा कदम है—एक ऐसा बाज़ार जो आत्मविश्वासी, निरंतर बढ़ता हुआ और आत्मनिर्भर भारत का प्रतिबिंब है।

क्या आप जानते हैं?

भारत अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेला (IITF), जो 1980 से हर वर्ष इंडिया ट्रेड प्रमोशन ऑर्गनाइजेशन (ITPO) द्वारा आयोजित किया जाता है, MSME, कारीगरों, स्टार्टअप्स और उद्योगों के लिए देश के सबसे महत्वपूर्ण मंचों में से एक है। वर्षों में यह भारत की विनिर्माण क्षमता, नवाचार और विभिन्न क्षेत्रों के पारंपरिक शिल्प का प्रमुख प्रदर्शन स्थल बन गया है।

2024 में, इस मेले में दस लाख से अधिक आगंतुक आए, जिससे यह देश के सबसे लोकप्रिय व्यापार आयोजनों में अपनी स्थिति को और मजबूत करता है।

IITF का आयोजन भारत मंडपम में होता है, जो प्रगति मैदान परिसर में निर्मित आधुनिक सम्मेलन एवं प्रदर्शनी केंद्र है, जिसका उद्घाटन 2023 में किया गया। यह 123 एकड़ में फैला है तथा इसमें 7,000-सीट वाला कन्वेंशन हॉल, सात प्रदर्शनी हॉल और 100,000 वर्ग मीटर से अधिक प्रदर्शनी क्षेत्र शामिल है। ITPO प्रति वर्ष लगभग 90 कार्यक्रम आयोजित करता है, जिससे नई दिल्ली एक प्रमुख वैश्विक प्रदर्शनी गंतव्य बनती जा रही है।

बिहार: एक कारीगर का राष्ट्रीय मंच पर पदार्पण

बिहार मंडप में 45 वर्षीय सृद्धि कुमारी अपने सामने सजी भागलपुरी रेशम और ज़री के काम को संभालती हैं—एक कला जिसे उन्होंने 12 वर्षों में निखारा है। IITF में पहली बार भाग लेते हुए वे महिला-उद्यमिता की यात्रा का प्रतीक बनती हैं। वे गर्व से कहती हैं, “मैं अधिकृत विक्रेता हूँ।”

बिहार सरकार ने महिला-उद्यमिता योजनाओं के तहत उन्हें सहायता दी। उनके अनुसार, “सभी सरकारी औपचारिकताओं में सचिव ने मेरा मार्गदर्शन किया।”
उनका शिल्प बिहार और पश्चिम बंगाल दोनों राज्यों के कौशल का संगम है।

एक अन्य कारीगर ने उन्हें IITF में आने के लिए प्रेरित किया था। मार्च 2025 के GI-महोत्सव में उन्होंने दो–तीन महीने की आय के बराबर कमाया था, जिससे इस बार उनकी भागीदारी का आत्मविश्वास बढ़ा।

नालंदा से दिल्ली तक: हर साल लौटने वाला बुनकर

कुछ दूरी पर 49 वर्षीय तरुण पांडे बेहद नाजुक बावनबु्टी साड़ियों को सजाते नज़र आते हैं। यह उनका आठवाँ IITF है।

वे बताते हैं, “IITF से मुझे दो से ढाई महीने की आय के बराबर कमाई होती है। हम अन्य मेलों में भाग नहीं लेते, IITF हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण है।”

उनके नियमित ग्राहक उन्हें “नालंदा के बुनकर” के रूप में पहचानते हैं।

किसान से उद्यमी: अवसरों का विस्तार

51 वर्षीय प्रहलाद रामराव बोर्गड और उनकी पत्नी कावेरी, महाराष्ट्र के हिंगोली से आए हैं। वे जैविक दालें, हल्दी, अदरक, अचार और मसाले बेचते हैं।

2012 से जैविक खेती अपनाने के बाद उन्होंने 2015 में ‘सूर्या फार्मर्स’ शुरू किया।

IITF के बारे में उन्होंने ऑनलाइन जाना और महाराष्ट्र सरकार ने आवेदन प्रक्रिया में सहायता की।

उनके अनुसार,

“ऐसे मंच केवल उत्पाद बेचने के लिए नहीं, बल्कि संपर्क बनाने, उपभोक्ता अपेक्षाएँ समझने और पेशेवर तरीके सीखने में मदद करते हैं।”
IITF में उन्हें चार से पाँच महीने की आय के बराबर कमाई होती है।

लातूर की परंपरा: गोधड़ी कला का संरक्षण

महाराष्ट्र मंडप में रुक्मणी गणेशपट सालगे अपनी 15 वर्षीय बेटी के साथ पारंपरिक गोधड़ी क्विल्ट प्रदर्शित करती हैं।

वे बताती हैं, “प्रत्येक गोधड़ी को हाथ से बनाने में चार–पाँच दिन लगते हैं।”
IITF उनके लिए सिर्फ बिक्री का मंच नहीं, बल्कि उस कला को बचाने का अवसर है जो सस्ती मशीन-निर्मित वस्तुओं के कारण जोखिम में है।

झारखंड: 400 आदिवासी महिलाओं का प्रतिनिधित्व करती लाख की चूड़ियाँ

झारखंड—जो 2025 में अपनी स्थापना के 25 वर्ष मना रहा है—इस वर्ष थीम स्टेट है।
यहाँ 49 वर्षीय झबर माल पारंपरिक तकनीकों से बनी लाख की चूड़ियाँ बेचते हैं।
वे कहते हैं,
“मेरे स्थायी ग्राहक हर साल मेरा इंतज़ार करते हैं। मेले के बाद मिलने वाले ऑर्डर ही मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण हैं।”
उनकी कमाई झारखंड की लगभग 400 आदिवासी महिलाओं के आजीविका समूह का समर्थन करती है।

व्यापार मेले: आर्थिक पारिस्थितिकी तंत्र

IITF जैसे मेले सिर्फ तत्काल बिक्री नहीं बढ़ाते—वे छोटे उद्यमियों को दृश्यता देते हैं, दीर्घकालिक खरीदार जोड़ते हैं और बाज़ार के व्यवहार को समझने में मदद करते हैं।
2025 का यह संस्करण विकसित भारत 2047 के दृष्टिकोण को दर्शाता है, जहाँ आर्थिक मजबूती, राजनीतिक स्थिरता और वैश्विक व्यापार साझेदारियाँ महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

जैसे ही शाम को पवेलियन रोशन होते हैं, प्रत्येक स्टॉल के पीछे की कहानी भारत के उद्यमशीलता परिदृश्य की विविधता को उजागर करती है।
सृद्धि, तरुण, प्रहलाद, रुक्मणी और झबर जैसे कारीगरों के लिए IITF वह स्थान है जहाँ परंपरा उद्यम से मिलती है, स्थानीय कौशल राष्ट्रीय पहचान पाता है, और छोटे व्यवसाय आगे बढ़ने के लिए आवश्यक गति पाते हैं।

IITF का 44वां संस्करण साबित करता है कि भारत की आर्थिक प्रगति केवल बड़े उद्योगों से नहीं, बल्कि छोटे उद्यमियों की मेहनत, रचनात्मकता और संकल्प से भी आकार लेती है।


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