कोच्चि-प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज दिवाली के अवसर पर भारतीय नौसेना के स्वदेशी विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत पर सशस्त्र बलों के जवानों के साथ उत्सव मनाया। इस अवसर पर संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि “आज का दिन, यह क्षण और यह दृश्य – तीनों ही असाधारण हैं। एक ओर सागर की विशालता है, तो दूसरी ओर मां भारती के वीर सपूतों की असीम शक्ति।”
प्रधानमंत्री ने कहा कि समुद्र पर चमकती सूर्य की किरणें उन दीपों की तरह हैं, जो देश की सीमाओं की रक्षा करने वाले वीर सैनिकों द्वारा जलाए गए हैं। उन्होंने कहा कि इस बार की दिवाली उनके लिए खास है, क्योंकि वह इसे भारतीय नौसेना के वीर जवानों के बीच मना रहे हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने याद किया कि जब उन्होंने INS विक्रांत पर एक रात बिताई थी, तो वह अनुभव शब्दों में बयान करना कठिन है। उन्होंने कहा कि “समुद्र के बीच गहराई में बिता वह रात्रि और उगते सूरज का नजारा इस दिवाली को अविस्मरणीय बना गया।”
प्रधानमंत्री ने देशवासियों को INS विक्रांत से ही 140 करोड़ भारतीयों के लिए दिवाली की शुभकामनाएं दीं। उन्होंने कहा कि जब विक्रांत राष्ट्र को समर्पित किया गया था, तब उन्होंने कहा था – “विक्रांत केवल एक युद्धपोत नहीं, बल्कि 21वीं सदी के भारत के परिश्रम, प्रतिभा, प्रभाव और प्रतिबद्धता का प्रमाण है।”
प्रधानमंत्री ने कहा कि विक्रांत आज आत्मनिर्भर भारत और ‘मेक इन इंडिया’ का सशक्त प्रतीक है। उन्होंने बताया कि विक्रांत का नाम मात्र सुनकर दुश्मनों की नींद उड़ जाती है।
भारतीय रक्षा उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि
प्रधानमंत्री ने कहा कि बीते एक दशक में भारत ने रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में अभूतपूर्व प्रगति की है। उन्होंने बताया कि अब हजारों रक्षा उपकरणों का आयात बंद कर दिया गया है और अधिकांश जरूरतें देश में ही पूरी की जा रही हैं।
उन्होंने कहा कि पिछले 11 वर्षों में भारत का रक्षा उत्पादन ₹1.5 लाख करोड़ से अधिक हो गया है — जो तीन गुना वृद्धि को दर्शाता है। 2014 के बाद से अब तक भारतीय शिपयार्ड्स ने नौसेना को 40 से अधिक स्वदेशी युद्धपोत और पनडुब्बियां सौंप दी हैं। वर्तमान में औसतन हर 40वें दिन नौसेना में एक नया स्वदेशी पोत या पनडुब्बी शामिल हो रही है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि ब्रहमोस और आकाश जैसी मिसाइलों ने “ऑपरेशन सिंदूर” में अपनी ताकत साबित की है, और अब कई देश इन्हें खरीदने में रुचि दिखा रहे हैं। उन्होंने कहा कि भारत का लक्ष्य विश्व के शीर्ष रक्षा निर्यातकों में शामिल होना है।
भारतीय नौसेना: वैश्विक स्थिरता की प्रहरी
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारत की परंपरा सदैव रही है — “ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय” — अर्थात हमारी शक्ति और संपन्नता मानवता की सेवा और रक्षा के लिए है। उन्होंने कहा कि विश्व के 66 प्रतिशत तेल परिवहन और 50 प्रतिशत कंटेनर व्यापार भारतीय महासागर से गुजरता है, और इन समुद्री मार्गों की सुरक्षा भारतीय नौसेना सुनिश्चित करती है।
उन्होंने बताया कि नौसेना न केवल भारत के द्वीपों की सुरक्षा करती है, बल्कि ‘मिशन आधारित तैनाती’, ‘एंटी-पायरेसी पेट्रोलिंग’ और मानवीय सहायता अभियानों के जरिए वैश्विक स्थिरता में योगदान दे रही है।
प्रधानमंत्री ने यह भी याद दिलाया कि गणतंत्र दिवस पर सभी भारतीय द्वीपों पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने का संकल्प नौसेना ने पूरा किया।
मानवता के लिए सदैव तत्पर भारत
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत तेजी से प्रगति कर रहा है और ‘महासागर मेरीटाइम विजन’ के तहत ग्लोबल साउथ के देशों के साथ विकास साझेदारी को मजबूत कर रहा है। उन्होंने याद दिलाया कि 2014 में मालदीव के जल संकट के दौरान ‘ऑपरेशन नीर’, 2017 में श्रीलंका की बाढ़, 2018 में इंडोनेशिया की सुनामी, और म्यांमार, मोज़ाम्बिक व मेडागास्कर में आपदाओं के समय भारत ने सहायता पहुंचाई।
उन्होंने कहा कि यमन से लेकर सूडान तक, संकट के समय भारतीय सशस्त्र बलों ने न केवल भारतीय नागरिकों बल्कि हजारों विदेशी नागरिकों को भी सुरक्षित निकाला है।
माओवाद से मुक्ति और नई रोशनी
प्रधानमंत्री ने कहा कि सुरक्षा बलों के पराक्रम के कारण आज भारत ने एक बड़ी सफलता हासिल की है — माओवादी आतंकवाद का लगभग अंत। 2014 से पहले जहां 125 जिले माओवादी हिंसा से प्रभावित थे, आज यह संख्या घटकर केवल 11 रह गई है।
उन्होंने कहा कि “सैकड़ों जिले अब भय की छाया से मुक्त होकर पहली बार स्वतंत्र रूप से दिवाली मना रहे हैं।” पहले जहां सड़कों, स्कूलों, अस्पतालों और मोबाइल टावरों का निर्माण असंभव था, अब वहां हाईवे और उद्योग खड़े हो रहे हैं।
भारत नई ऊँचाइयों की ओर
प्रधानमंत्री ने कहा कि “भारत आज अभूतपूर्व गति से आगे बढ़ रहा है — ज़मीन से अंतरिक्ष तक, असंभव को संभव कर रहा है।” उन्होंने कहा कि सशस्त्र बल इस राष्ट्रनिर्माण के महान कार्य के आधारस्तंभ हैं।
समापन में प्रधानमंत्री ने कहा,
“हमारे सैनिक जिस पर्वत पर डटे हैं, वह भारत की विजय का प्रतीक है; जिस सागर की लहरें नीचे उमड़ती हैं, वह भारत की गर्जना हैं। इन सबके बीच एक ही स्वर गूंजता है — भारत माता की जय!”