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“आयुर्वेद के माध्यम से यकृत-पित्तीय स्वास्थ्य: पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक विज्ञान का समन्वय” — भुवनेश्वर में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन

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साक्ष्य-आधारित पारंपरिक चिकित्सा को आगे बढ़ाने की दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए आयुष मंत्रालय अपने अनुसंधान संगठन केंद्रीय आयुर्वेद विज्ञान अनुसंधान परिषद (CCRAS) और उसके केंद्रीय आयुर्वेद अनुसंधान संस्थान (CARI), भुवनेश्वर, के माध्यम से, भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) और उसके क्षेत्रीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान केंद्र (RMRC), भुवनेश्वर के सहयोग से, “आयुर्वेद के माध्यम से यकृत-पित्तीय स्वास्थ्य : पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक विज्ञान का समन्वय” विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन 25 से 26 अक्टूबर 2025 तक भुवनेश्वर में करने जा रहा है।

इस संगोष्ठी का विषय “यकृत सुरक्षा, जीवित रक्षा” (Yakrut Suraksha, Jiveeta Raksha) है, जो यकृत और पित्तीय स्वास्थ्य के क्षेत्र में आयुर्वेद और आधुनिक जैव-चिकित्सा विज्ञान के बीच सहयोगात्मक अनुसंधान को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है।

सीसीआरएएस के महानिदेशक प्रो. रबिनारायण आचार्य ने कहा कि “आयुर्वेदिक विज्ञान यकृत-पित्तीय स्वास्थ्य के लिए एक समग्र दृष्टिकोण प्रदान करता है, जो रोकथाम, संतुलन और सतत स्वास्थ्य सेवा पर बल देता है। सहयोगात्मक अनुसंधान के माध्यम से हम आयुर्वेद के सिद्धांतों और औषधियों को वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित कर रहे हैं। इस तरह के प्रयास न केवल आयुर्वेद की वैश्विक विश्वसनीयता को मजबूत करते हैं, बल्कि साक्ष्य-आधारित समाधानों के लिए नए मार्ग भी खोलते हैं।”

आईसीएमआर की अतिरिक्त महानिदेशक और आरएमआरसी भुवनेश्वर की निदेशक डॉ. संगमित्रा पाटी ने कहा कि “यकृत-पित्तीय विकार जटिल स्वास्थ्य चुनौतियाँ हैं, जिनके समाधान के लिए अंतःविषय अनुसंधान आवश्यक है। आयुर्वेद और आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के बीच सहयोग रोगों की बेहतर समझ, सुरक्षित उपचार और रोगी देखभाल के नए अवसर प्रदान करता है।”

दो दिवसीय इस संगोष्ठी में पाँच प्रमुख विषयों पर चर्चा होगी, जिसमें यकृत-पित्तीय स्वास्थ्य पर सहयोगात्मक अनुसंधान को बढ़ावा देने पर विशेष बल रहेगा।

  • पहले दिन आयुर्वेदिक आहार, दिनचर्या, ऋतुचर्या, पंचकर्म और डिटॉक्सिफिकेशन थैरेपी जैसे समग्र निवारक और उपचारात्मक दृष्टिकोणों पर विचार-विमर्श होगा। साथ ही NAFLD, हेपेटाइटिस और लिवर सिरोसिस के रोग-विशिष्ट प्रबंधन पर भी सत्र आयोजित किए जाएंगे।

  • दूसरे दिन वैज्ञानिक साक्ष्यों पर आधारित एकीकृत दृष्टिकोण, औषधीय अनुसंधान, और आधुनिक अस्पताल प्रणालियों के साथ आयुर्वेद के समन्वय पर चर्चा होगी।

संगोष्ठी में 58 वैज्ञानिक प्रस्तुतियाँ (22 मौखिक और 36 पोस्टर) शामिल होंगी, जिनमें नैदानिक परिणाम और अनुसंधान के व्यावहारिक पहलुओं को रेखांकित किया जाएगा।

कार्यक्रम में एक विशेष सत्र “हेपेटोबिलियरी विकारों में जनजातीय चिकित्सा” पर भी आयोजित किया जाएगा, जिसमें ओडिशा के विभिन्न हिस्सों से आए 20 जनजातीय वैद्य पारंपरिक उपचार पद्धतियाँ साझा करेंगे।

यह सहयोगात्मक पहल सीसीआरएएस और आईसीएमआर के बीच अंतःविषय अनुसंधान और साक्ष्य-आधारित परिणामों को बढ़ावा देने की दिशा में आयुष मंत्रालय की वैज्ञानिक प्रतिबद्धता को रेखांकित करती है।

आयुष मंत्रालय के अधीन सीसीआरएएस द्वारा लिवर स्वास्थ्य के लिए विभिन्न आयुर्वेदिक औषधियों पर वैज्ञानिक अनुसंधान किया जा रहा है, जैसे पिक्रोराइज़ा कुरोआ (कुटकी) और आयुष-PTK पर पूर्व-नैदानिक अध्ययन, जो यकृत-संरक्षण में प्रभावी पाए गए हैं। सीएसआईआर-सीडीआरआई लखनऊ के साथ संयुक्त अनुसंधान एटीटी-प्रेरित यकृत विषाक्तता पर भी केंद्रित है। इसके अतिरिक्त, आयोग्यवर्धिनी वटी और पिप्पल्यासव पर बहुकेन्द्रित नैदानिक अध्ययन ने MASLD के प्रबंधन में आशाजनक परिणाम दिए हैं।

संगोष्ठी में देश के प्रमुख विशेषज्ञ और वैज्ञानिक शामिल होंगे, जिनमें एआईआईएमएस भुवनेश्वर के कार्यकारी निदेशक एवं सीईओ प्रो. (डॉ.) अशुतोष बिस्वास, केआईआईएमएस भुवनेश्वर के प्रो-चांसलर प्रो. सुब्रत कुमार आचार्य, फोर्टिस एस्कॉर्ट्स नई दिल्ली के कार्यकारी निदेशक, तथा सीएआरआई भुवनेश्वर की प्रभारी सहायक निदेशक डॉ. सरदा ओटा शामिल हैं।

यह संगोष्ठी आयुर्वेद के माध्यम से यकृत-पित्तीय स्वास्थ्य पर वैज्ञानिक विमर्श को नई दिशा देगी और पारंपरिक चिकित्सा व आधुनिक विज्ञान के समन्वय से भारत को वैश्विक स्तर पर पारंपरिक चिकित्सा अनुसंधान के क्षेत्र में अग्रणी बनाने में मदद करेगी।

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