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छठ पूजा: सूर्य उपासना का पवित्र पर्व, आस्था, पर्यावरण और संस्कृति का संगम

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नई दिल्ली-चार दिनों तक चलने वाला लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा पूरे देश में श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जा रहा है। सूर्य देव और छठी मैया की उपासना को समर्पित यह पर्व न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक एकता, पर्यावरण संरक्षण और अनुशासन का प्रतीक भी है।

 पर्व की पौराणिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि

छठ पूजा की परंपरा वैदिक काल से जुड़ी मानी जाती है। कहा जाता है कि सूर्य उपासना के माध्यम से प्रकृति और पंचतत्वों के प्रति कृतज्ञता प्रकट की जाती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान श्रीराम और माता सीता ने भी अयोध्या लौटने के बाद छठ व्रत किया था। वहीं महाभारत काल में द्रौपदी और पांडवों ने भी राज्य की समृद्धि के लिए इस व्रत का पालन किया था।

चार दिवसीय अनुष्ठान और उसका महत्व

छठ पूजा चार दिनों तक अत्यंत नियम, संयम और शुद्धता के साथ मनाई जाती है—

  1. नहाय-खाय (पहला दिन): व्रत की शुरुआत पवित्र स्नान और सात्विक भोजन से होती है। इस दिन घर की सफाई और शुद्ध भोजन का विशेष महत्व होता है।

  2. खरना (दूसरा दिन): व्रती पूरे दिन निर्जल उपवास रखकर सूर्यास्त के बाद गुड़ की खीर, रोटी और केला प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं।

  3. संध्या अर्घ्य (तीसरा दिन): अस्ताचलगामी सूर्य को नदी, तालाब या घाट पर खड़े होकर अर्घ्य दिया जाता है। लाखों श्रद्धालु पारंपरिक गीतों और लोकसंगीत के साथ यह पूजा संपन्न करते हैं।

  4. उषा अर्घ्य (चौथा दिन): अंतिम दिन उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित कर व्रत का समापन किया जाता है। इसे छठ व्रत का सबसे पवित्र क्षण माना जाता है।

आस्था और अनुशासन का अनूठा उदाहरण

छठ पूजा का सबसे बड़ा आकर्षण इसका सामूहिक स्वरूप है। यह पर्व न केवल बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में, बल्कि दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, छत्तीसगढ़ और देश के कई अन्य हिस्सों में भी पूरे उत्साह से मनाया जाता है। विदेशों में बसे भारतीय समुदाय भी इसे बड़े हर्षोल्लास से मनाते हैं।

व्रती महिलाएँ (और कई पुरुष भी) बिना किसी भोग-विलास के, कठिन तप और आत्मसंयम के साथ व्रत रखते हैं। पूजा में इस्तेमाल होने वाले सभी प्रसाद — जैसे ठेकुआ, केला, नारियल, और गुड़ की खीर — पूरी तरह प्राकृतिक और पर्यावरण-अनुकूल होते हैं।

पर्यावरण और सामाजिक संदेश

छठ पूजा पर्यावरण के प्रति जागरूकता का भी प्रतीक है। यह पर्व जलाशयों की स्वच्छता, वृक्षारोपण और प्राकृतिक संसाधनों के सम्मान की भावना को बढ़ाता है। कई राज्यों में प्रशासन और स्थानीय समुदाय मिलकर नदी घाटों की सफाई और प्लास्टिक-मुक्त पूजा सुनिश्चित करने के लिए विशेष अभियान चला रहे हैं।

लोक संस्कृति और संगीत की आत्मा

छठ के अवसर पर गाए जाने वाले लोकगीत — जैसे “केलवा जरा जरा हो रा…”, “उग हो सूरज देव…” — श्रद्धालुओं के मन में भक्ति और उल्लास का वातावरण बना देते हैं। पारंपरिक वेशभूषा, गीत-संगीत, और घाटों की सजावट इस पर्व को एक लोकसांस्कृतिक उत्सव का रूप देते हैं।

प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति ने दी शुभकामनाएं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू सहित कई राज्यपालों और मुख्यमंत्रियों ने देशवासियों को छठ पूजा की शुभकामनाएँ दी हैं। प्रधानमंत्री ने अपने संदेश में कहा कि “छठी मैया की कृपा से सभी के जीवन में सुख, समृद्धि और स्वास्थ्य आए।”

निष्कर्ष

छठ पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि प्रकृति, अनुशासन और सामूहिकता का उत्सव है। यह पर्व हमें सिखाता है कि मनुष्य और प्रकृति का संबंध परस्पर सम्मान और संतुलन पर आधारित होना चाहिए। इस वर्ष भी देशभर के घाटों पर डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देते श्रद्धालुओं की आस्था यह संदेश दे रही है कि भारत की परंपराएँ आज भी जीवंत हैं — आधुनिकता के साथ संतुलन बनाते हुए।


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