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भारत की भाषाई विरासत को नया आयाम: मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बांग्ला को मिला ‘शास्त्रीय भाषा’ का दर्जा

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प्रमुख बिंदु

  • भारत सरकार ने 3 अक्टूबर 2024 को मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बांग्ला भाषाओं को ‘शास्त्रीय भाषा’ (Classical Language) का दर्जा प्रदान किया।
  • अक्टूबर 2025 तक भारत की कुल 11 भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्राप्त हो चुका है।
  • 2004 से 2024 के बीच छह भारतीय भाषाओं — तमिल, संस्कृत, कन्नड़, तेलुगु, मलयालम और ओड़िया — को शास्त्रीय भाषा के रूप में मान्यता दी गई थी।

परिचय

भारत भाषाई विविधता से परिपूर्ण देश है, जहाँ सैकड़ों भाषाएँ और बोलियाँ बोली जाती हैं। भारत सरकार देश की भाषाई विरासत के संरक्षण और संवर्धन के लिए अनेक नीतियाँ और कार्यक्रम चलाती है। इन्हीं में से एक महत्वपूर्ण पहल है — भाषाओं को "शास्त्रीय भाषा" का दर्जा देना। यह दर्जा उन भाषाओं को दिया जाता है जिनका प्राचीन साहित्य, दर्शन और संस्कृति हजारों वर्षों पुरानी हो और जिन्होंने भारत की सांस्कृतिक पहचान को गढ़ने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई हो।

3 अक्टूबर 2024 को केंद्र सरकार ने मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बांग्ला को शास्त्रीय भाषाओं की श्रेणी में शामिल किया, जिससे भारत में शास्त्रीय भाषाओं की संख्या 11 हो गई।

शास्त्रीय भाषा का महत्व

किसी भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देना केवल एक भाषाई मान्यता नहीं है, बल्कि यह उस भाषा की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक विरासत को सम्मान देने का प्रतीक है। यह दर्जा उस भाषा के साहित्य, ज्ञान, दर्शन और संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के लिए संस्थागत सहयोग सुनिश्चित करता है।

शास्त्रीय भाषा के निर्धारण के मापदंड

भारत सरकार ने भाषाविदों और इतिहासकारों से परामर्श कर शास्त्रीय भाषा निर्धारण हेतु निम्नलिखित मानक निर्धारित किए हैं:

  1. भाषा का प्राचीनतम रूप कम से कम 1500–2000 वर्ष पुराना हो।

  2. उस भाषा का समृद्ध प्राचीन साहित्य या ग्रंथों का भंडार हो।

  3. काव्य के साथ-साथ गद्य, अभिलेख और शिलालेखों में भी उसका प्रमाण मिले।

  4. आधुनिक स्वरूप से उसका रूपांतर या निरंतरता स्पष्ट रूप से दिखे।

नई शास्त्रीय भाषाएँ (2024)

मराठी

  • मराठी भाषा महाराष्ट्र की प्रमुख भाषा है और इसकी साहित्यिक परंपरा लगभग दो हजार वर्ष पुरानी है।
  • मुख्य ग्रंथ: गाथासप्तशती, लीलाचरित्र, ज्ञानेश्वरी।
  • प्रमुख संत कवि: संत ज्ञानेश्वर, नामदेव, तुकाराम।
  • नानेघाट शिलालेख मराठी की प्राचीनता का प्रमाण है।

पाली

  • पाली भाषा भगवान बुद्ध के उपदेशों की भाषा रही है।
  • मुख्य ग्रंथ: त्रिपिटक — विनय पिटक, सुत्त पिटक, अभिधम्म पिटक।
  • पाली साहित्य में जातक कथाएँ विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं, जो बुद्ध के पूर्व जन्मों की कथाएँ हैं।

प्राकृत

  • प्राकृत भारत की मध्य इंडो-आर्यन भाषाओं का समूह है, जिससे हिंदी, मराठी, बांग्ला आदि आधुनिक भाषाएँ विकसित हुईं।
  • प्रयोग: भगवान बुद्ध और महावीर ने प्राकृत में उपदेश दिए।
  • महत्व: प्राकृत ने भारतीय साहित्य, नाटक, दर्शन और विज्ञान के विकास में अहम भूमिका निभाई।

असमिया

  • असमिया भाषा संस्कृत और मागधी अपभ्रंश से विकसित हुई है।
  • प्राचीन ग्रंथ: चर्यापद (8वीं से 12वीं सदी)।
  • असमिया, बंगाली और ओड़िया भाषाएँ एक ही भाषाई परंपरा से विकसित हुई हैं।

बांग्ला

  • बांग्ला भाषा भारत की प्रमुख भाषाओं में से एक है।
  • प्राचीन साहित्य: चर्यापद (10वीं–12वीं सदी)।
  • स्वर्ण युग: 19वीं–20वीं सदी — राजा राममोहन राय, ईश्वरचंद्र विद्यासागर, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय।
  • राष्ट्रीय प्रतीक: राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ और राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम्’ — दोनों ही बांग्ला साहित्य की देन हैं।

शास्त्रीय भाषाओं के संवर्धन के लिए सरकारी प्रयास

भारत सरकार ने शास्त्रीय भाषाओं के अध्ययन और प्रचार के लिए कई संस्थान स्थापित किए हैं:

  • केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान (CIIL), मैसूर

  • सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ क्लासिकल तमिल, चेन्नई

  • सेंटर्स ऑफ एक्सीलेंस — कन्नड़, तेलुगु, मलयालम, ओड़िया के लिए।

  • केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, श्री लाल बहादुर शास्त्री संस्कृत विश्वविद्यालय।

मुख्य गतिविधियाँ:

  • प्राचीन पांडुलिपियों का डिजिटलीकरण

  • प्राचीन ग्रंथों का अनुवाद

  • शोध और प्रकाशन

  • भाषाई दस्तावेज़ीकरण और ऑडियो-वीडियो संग्रहण

निष्कर्ष

“विरासत भी, विकास भी” — प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह मंत्र भारत की सांस्कृतिक नीति का सार है। भारत की शास्त्रीय भाषाएँ — संस्कृत, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम, ओड़िया, मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बांग्ला — हमारे बौद्धिक और सांस्कृतिक वैभव की जीवित प्रतीक हैं।

इन भाषाओं को शास्त्रीय दर्जा देकर सरकार ने न केवल उनकी प्राचीनता को सम्मान दिया है, बल्कि युवाओं को अपनी जड़ों से जोड़ने का मार्ग भी प्रशस्त किया है। यह पहल आत्मनिर्भर भारत और सांस्कृतिक रूप से सशक्त भारत की दिशा में एक बड़ा कदम है।


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