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गहरे समुद्र में भारत की बढ़ती ताकत: कार्ल्सबर्ग रिज में अन्वेषण का विशेष अधिकार

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भारत को अंतरराष्ट्रीय समुद्रतल प्राधिकरण (ISA) से कार्ल्सबर्ग रिज क्षेत्र में पॉलीमेटालिक सल्फ़ाइड (PMS) अन्वेषण के लिए विशेष अधिकार प्राप्त

नई दिल्ली- पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES) और अंतरराष्ट्रीय समुद्रतल प्राधिकरण (ISA) के बीच 15 वर्ष की अवधि के लिए एक नया अनुबंध हस्ताक्षरित हुआ है। इस अनुबंध के तहत भारत को हिंद महासागर के कार्ल्सबर्ग रिज में 10,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में पॉलीमेटालिक सल्फ़ाइड (PMS) के अन्वेषण के विशेष अधिकार प्राप्त हुए हैं। इसकी घोषणा केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), पृथ्वी विज्ञान मंत्री, प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने की।

इसके साथ ही भारत दुनिया का पहला देश बन गया है जिसके पास PMS अन्वेषण के लिए ISA के साथ दो अनुबंध हैं। यह उपलब्धि गहरे समुद्र संसाधन अन्वेषण में भारत की अग्रणी भूमिका और हिंद महासागर क्षेत्र में उसकी सामरिक उपस्थिति को दर्शाती है।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि यह नया अनुबंध प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू किए गए डीप ओशन मिशन की दृष्टि को साकार करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह मिशन समुद्रतल खनिज अन्वेषण, खनन प्रौद्योगिकी विकास और भारत की ‘ब्लू इकोनॉमी पहलों’ को सुदृढ़ बनाने पर केंद्रित है। उन्होंने कहा, “कार्ल्सबर्ग रिज में PMS अन्वेषण के विशेष अधिकार प्राप्त कर भारत ने गहरे समुद्री अनुसंधान और अन्वेषण में अपनी नेतृत्वकारी भूमिका को और मजबूत किया है। यह हमारी समुद्री उपस्थिति को बढ़ाएगा और भविष्य में संसाधनों के उपयोग हेतु राष्ट्रीय क्षमता का निर्माण करेगा।”

पॉलीमेटालिक सल्फ़ाइड में लौह, तांबा, जस्ता, चांदी, सोना और प्लेटिनम जैसे बहुमूल्य धातु पाई जाती हैं। यह समुद्री पर्पटी से निकलने वाले गर्म हाइड्रोथर्मल तरल पदार्थों से बनने वाले अवसाद हैं। इनकी रणनीतिक और व्यावसायिक संभावनाओं ने वैश्विक ध्यान आकर्षित किया है और भारत को गहरे समुद्री संसाधन अन्वेषण में अग्रणी बना दिया है।

भारत और ISA की दीर्घकालिक साझेदारी का उल्लेख करते हुए डॉ. सिंह ने याद दिलाया कि अंतरराष्ट्रीय जल में पॉलीमेटालिक नोड्यूल अन्वेषण का क्षेत्र प्राप्त करने वाला पहला देश भारत था और उसे “पायनियर इन्वेस्टर” घोषित किया गया था। अब दो PMS अनुबंधों — सेंट्रल इंडियन रिज एवं साउथवेस्ट इंडियन रिज तथा कार्ल्सबर्ग रिज — के साथ भारत के पास अंतरराष्ट्रीय समुद्रतल में PMS अन्वेषण हेतु सबसे बड़ा क्षेत्र उपलब्ध है।

डॉ. सिंह ने कहा, “ISA के साथ भारत की 30 वर्ष की साझेदारी गर्व का विषय है। ISA की 30वीं वर्षगांठ पर भारत मानवता की साझा धरोहर के हित में ISA के साथ सहयोग को और प्रगाढ़ करने की प्रतिबद्धता दोहराता है।” उन्होंने यह भी घोषणा की कि भारत 8वीं ISA वार्षिक कांट्रैक्टर्स बैठक 18–20 सितम्बर को गोवा में आयोजित करेगा।

इस अवसर पर पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव डॉ. एम. रविचंद्रन ने कहा कि यह MoES और इसकी स्वायत्त संस्था राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं समुद्री अनुसंधान केंद्र (NCPOR), गोवा के लिए गर्व का क्षण है। उन्होंने बताया कि “भारत ISA का पहला सदस्य राष्ट्र और सरकारी ठेकेदार है जिसके पास PMS अन्वेषण के लिए दो अनुबंध हैं। साथ ही भारत के पास अब अंतरराष्ट्रीय समुद्रतल में PMS अन्वेषण के लिए वैश्विक स्तर पर सबसे बड़ा क्षेत्र है।”

डॉ. रविचंद्रन ने कहा कि भारत, ISA के साथ सहयोग को और मजबूत करते हुए अनछुए समुद्रतल पारिस्थितिक तंत्रों के बारे में अधिक वैज्ञानिक ज्ञान उत्पन्न करने और समुद्री पर्यावरण की सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए खनिज संसाधनों का मानवता के हित में उपयोग करने की दिशा में कार्य करेगा।

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