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राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने लोक सेवा आयोगों के अध्यक्षों के राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन किया

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भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने आज (19 दिसंबर, 2025) हैदराबाद, तेलंगाना में तेलंगाना लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित लोक सेवा आयोगों के अध्यक्षों के राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन किया।

इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे संविधान निर्माताओं ने सेवाओं और लोक सेवा आयोगों के लिए संविधान का एक पूरा भाग समर्पित किया है। यह इस बात को दर्शाता है कि उन्होंने संघ और राज्यों के लोक सेवा आयोगों की भूमिकाओं और कार्यों को कितनी महत्ता दी है।

राष्ट्रपति ने कहा कि सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, तथा स्थिति और अवसर की समानता से जुड़े हमारे संवैधानिक आदर्श लोक सेवा आयोगों के कार्यकरण के लिए अत्यंत प्रासंगिक हैं। संविधान की प्रस्तावना, सार्वजनिक रोजगार के मामलों में अवसर की समानता से जुड़ा मौलिक अधिकार तथा जनकल्याण को बढ़ावा देने वाले सामाजिक व्यवस्था की स्थापना हेतु राज्य को मार्गदर्शन देने वाला निदेशक सिद्धांत—ये सभी लोक सेवा आयोगों के लिए मार्गदर्शक पथ हैं। उन्होंने कहा कि लोक सेवा आयोगों को केवल अवसर की समानता के आदर्श से ही नहीं, बल्कि परिणामों की समानता के लक्ष्य की प्राप्ति का भी प्रयास करना चाहिए। आयोग समानता और न्याय को बढ़ावा देने वाले परिवर्तन के वाहक (चेंज-एजेंट) हैं।

राष्ट्रपति ने कहा कि लोक सेवा आयोगों द्वारा चयनित लोक सेवकों से गठित तथाकथित ‘स्थायी कार्यपालिका’ शासन प्रक्रिया में निष्पक्षता, निरंतरता और स्थिरता प्रदान करती है। राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर जनोन्मुखी नीतियों के क्रियान्वयन के लिए स्थायी कार्यपालिका में शामिल सिविल सेवकों की ईमानदारी, संवेदनशीलता और दक्षता अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि लोक सेवा आयोगों को भर्ती करते समय उम्मीदवारों की ईमानदारी और सत्यनिष्ठा को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए। ईमानदारी और सत्यनिष्ठा सर्वोपरि हैं और असमझौतापूर्ण (नॉन-नेगोशिएबल) हैं। उन्होंने रेखांकित किया कि कौशल और दक्षताओं की कमी को प्रशिक्षण और अन्य रणनीतियों से दूर किया जा सकता है, लेकिन सत्यनिष्ठा की कमी ऐसे गंभीर संकट पैदा कर सकती है जिन्हें दूर करना असंभव हो सकता है।

राष्ट्रपति ने कहा कि सिविल सेवक बनने की आकांक्षा रखने वाले युवाओं में हाशिए पर पड़े और कमजोर वर्गों के लिए कार्य करने की प्रवृत्ति होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि हमारे सिविल सेवकों को महिलाओं की आवश्यकताओं और आकांक्षाओं के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील होना चाहिए। लोक सेवा आयोगों द्वारा लैंगिक संवेदनशीलता को उच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

राष्ट्रपति ने कहा कि दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था होने के साथ-साथ अत्यधिक विविधताओं वाले देश भारत को सभी स्तरों पर सबसे प्रभावी शासन प्रणालियों की आवश्यकता है। देश निकट भविष्य में दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य रखता है। साथ ही, हम 2047 तक ‘विकसित भारत’ के लक्ष्य की ओर अग्रसर हैं। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि लोक सेवा आयोग अपनी जिम्मेदारियों का निरंतर निर्वहन करते रहेंगे और उनके द्वारा चयनित व मार्गदर्शित भविष्य-तैयार सिविल सेवकों की टीम के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान देंगे।


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