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मानव अधिकार दिवस 2025: डॉ. पी. के. मिश्रा ने मानव गरिमा और समावेशी शासन पर दिया जोर

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प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव डॉ. पी. के. मिश्रा ने आज नई दिल्ली के भारत मंडपम में आयोजित ‘राष्ट्रीय सम्मेलन: सभी के लिए दैनिक आवश्यकताएँ – जन सेवाएँ और गरिमा’ के उद्घाटन सत्र को संबोधित किया। अपने मुख्य वक्तव्य में उन्होंने विश्व मानवाधिकार दिवस के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि लोकतांत्रिक देशों—विशेषकर भारत—के लिए यह दिन महत्वपूर्ण है क्योंकि यही वह बिंदु है जहाँ संवैधानिक आदर्श, लोकतांत्रिक संस्थाएँ और सामाजिक मूल्य मिलकर मानव गरिमा की रक्षा करते हैं।

उन्होंने 1948 के मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा के अनुच्छेद 25(1) को उद्धृत किया, जिसमें भोजन, वस्त्र, आवास, चिकित्सा देखभाल, सामाजिक सुरक्षा और कमजोर परिस्थितियों में सहारा पाने के अधिकार को मूल अधिकार माना गया है। उन्होंने कहा कि मानवाधिकार दिवस केवल स्मरण का अवसर नहीं, बल्कि “दैनिक जीवन में गरिमा” पर चिंतन का निमंत्रण है। इस वर्ष की थीम “ह्यूमन राइट्स: आवर एवरीडे एसेंशियल्स” नागरिकों के जीवन में सार्वजनिक सेवाओं की निर्णायक भूमिका को दर्शाती है।

भारत की ऐतिहासिक भूमिका और विकसित होते मानवाधिकार

डॉ. मिश्रा ने भारत द्वारा UDHR के निर्माण में निभाई अहम भूमिका का उल्लेख किया, विशेषकर डॉ. हंसा मेहता के योगदान का, जिनके प्रयास से घोषणा में लिखा गया—“all human beings…”, जो लैंगिक समानता की दिशा में बड़ा कदम था।

उन्होंने कहा कि मानवाधिकार अब केवल नागरिक और राजनीतिक अधिकारों तक सीमित नहीं, बल्कि इसमें सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, तकनीकी, डिजिटल और पर्यावरणीय अधिकार भी शामिल हो चुके हैं। आज गरिमा का अर्थ है—स्वतंत्रता के साथ-साथ निजता, स्वच्छ पर्यावरण, गतिशीलता और डिजिटल समावेशन तक पहुँच।

भारतीय सभ्यता में गरिमा का दर्शन

उन्होंने बताया कि भारतीय संस्कृति में धर्म, न्याय, करूणा, सेवा, अहिंसा, और वसुधैव कुटुंबकम जैसे सिद्धांत सदैव मानव गरिमा के केंद्र में रहे हैं। यही मूल्य हमारे संविधान में प्रतिबिंबित होते हैं—सर्वजन मताधिकार, मौलिक अधिकार, शिक्षा, स्वास्थ्य और आजीविका जैसे निर्देशक सिद्धांतों में।

2014 से पहले और बाद का बदलाव

डॉ. मिश्रा ने कहा कि 2014 से पहले भारत में अधिकार-आधारित कानून तो बने, लेकिन सेवा वितरण की कमजोरियों ने उनकी विश्वसनीयता को प्रभावित किया।
2014 के बाद सरकार ने सैचुरेशन एप्रोच अपनाई—“कोई भी पात्र लाभार्थी छूटे नहीं”। इससे देश एक बदलाव से गुजरा—
“कागजी अधिकारों” से “कार्यान्वित अधिकारों” की ओर।

डिजिटल ढाँचे, DBT, और विक्सित भारत संकल्प यात्रा जैसे प्रयासों ने इसे और मजबूत किया। बीते दशक में 25 करोड़ लोग गरीबी रेखा से ऊपर आए—यह भारत की सबसे बड़ी मानवाधिकार उपलब्धियों में से एक है।

मानव गरिमा को सुनिश्चित करने के चार स्तंभ

1. घर में गरिमा

  • प्रधानमंत्री आवास योजना

  • जल जीवन मिशन

  • स्वच्छ भारत अभियान

  • सौभाग्य योजना

  • उज्ज्वला योजना

इन पहलों ने करोड़ों परिवारों की जीवन-गुणवत्ता बदली।

2. सामाजिक सुरक्षा

  • कोविड में 80 करोड़ लोगों को PMGKAY के तहत मुफ्त राशन

  • आयुष्मान भारत–PMJAY से 42 करोड़ नागरिकों को स्वास्थ्य सुरक्षा

  • बीमा, पेंशन और नए श्रम कानूनों ने असंगठित क्षेत्र और गिग वर्कर्स को सुरक्षा प्रदान की

  • मानसिक स्वास्थ्य कानून ने कमजोर वर्गों की गरिमा को संरक्षित किया

3. समावेशी आर्थिक विकास

  • JAM Trinity ने DBT में क्रांति लाई

  • 56 करोड़ जन धन खाते

  • PM Mudra और PM SVANidhi से करोड़ों नए उद्यम

  • महिलाओं की प्रगति:

    • स्वयं सहायता समूह

    • “लखपति दीदी”

    • बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ

    • विधानसभाओं में एक-तिहाई आरक्षण

4. न्याय और कमजोर समुदायों की सुरक्षा

  • नए आपराधिक कानून

  • फास्ट-ट्रैक कोर्ट

  • POCSO Act

  • दिव्यांगजनों के अधिकार कानून

  • पीएम-जनमन योजना के माध्यम से आदिवासी समुदायों का विकास

  • वैक्सीन मैत्री जैसी पहलें—मानवाधिकारों की सार्वभौमिकता की मिसाल

सुशासन स्वयं एक मौलिक अधिकार

अंत में डॉ. मिश्रा ने कहा कि सुशासन (Good Governance) भी मूल अधिकार है—

  • दक्षता

  • पारदर्शिता

  • समयबद्ध सेवा

  • शिकायत निवारण

इन्हीं से एक आधुनिक, समावेशी और नागरिक-केंद्रित भारत का निर्माण होगा—जहाँ शहर रहने योग्य और गाँव समृद्ध हों।

उन्होंने उभरती चुनौतियों—जलवायु परिवर्तन, पर्यावरणीय न्याय, डेटा संरक्षण, AI की जवाबदेही, एल्गोरिदमिक निष्पक्षता, गिग वर्कर्स की सुरक्षा और डिजिटल निगरानी—पर विशेष ध्यान देने का आह्वान किया।


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