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छत्तीसगढ़ स्थापना दिवस: संस्कृति, संघर्ष और समृद्धि की गाथा

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“जय जोहार छत्तीसगढ़” — यह सिर्फ़ एक अभिवादन नहीं, बल्कि इस माटी की आत्मा की पहचान है।

1 नवम्बर 2000 — यह वह ऐतिहासिक दिन था जब भारत के नक्शे पर देश का 26वां राज्य छत्तीसगढ़ अस्तित्व में आया। मध्यप्रदेश से अलग होकर बना यह राज्य अपनी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर, लोककला, और मेहनतकश जनता के लिए जाना जाता है। आज जब छत्तीसगढ़ अपना 25वां स्थापना दिवस मना रहा है, तो यह दिन न केवल उत्सव का, बल्कि आत्ममंथन और गर्व का भी प्रतीक है।

इतिहास और पहचान

“छत्तीसगढ़” नाम का उद्गम प्राचीन काल के 36 गढ़ों से माना जाता है। यह भूमि प्राचीन काल से ही जनजातीय संस्कृति, आध्यात्मिकता और लोकजीवन की जीवंत मिसाल रही है। यहाँ की धरती ने संत गुरु घासीदास जी, पंडित सुन्दर लाल शर्मा, वीर नारायण सिंह, माता कर्मा जैसे संतों और स्वतंत्रता सेनानियों को जन्म दिया, जिन्होंने समाज को समानता, अहिंसा और न्याय का संदेश दिया।

प्राचीन काल में यह क्षेत्र दक्षिण कोशल के नाम से जाना जाता था और रामायण काल में भगवान श्रीराम के वनवास का अधिकांश समय इसी क्षेत्र में बीता। इसीलिए छत्तीसगढ़ की माटी को “श्रीराम की मातृभूमि” भी कहा जाता है।

संघर्ष से सृजन तक की यात्रा

लंबे समय तक इस क्षेत्र के लोगों की यह आकांक्षा रही कि यहाँ की विशिष्ट पहचान और समस्याओं को समझने वाला एक अलग राज्य हो। इस जनभावना को सम्मान देते हुए 1 नवम्बर 2000 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ राज्य का गठन हुआ।

प्रारंभ में 16 जिलों से बना यह राज्य आज 33 जिलों तक विस्तारित हो चुका है। राजधानी रायपुर से लेकर बस्तर, सरगुजा, कोरिया और जशपुर तक विकास की नई किरणें पहुँच चुकी हैं।

विकास की दिशा में अग्रसर

पिछले दो दशकों में छत्तीसगढ़ ने कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य, उद्योग, सूचना प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है।
राज्य आज देश के अग्रणी खनिज उत्पादक प्रदेशों में शामिल है और यहाँ की गोधन न्याय योजना, धान खरीदी नीति, जनकल्याणकारी योजनाएँ, तथा नवाचार आधारित शासन प्रणाली देशभर में मॉडल के रूप में सराही जा रही हैं।

वर्तमान मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने स्थापना दिवस पर प्रदेशवासियों को बधाई देते हुए कहा —

“छत्तीसगढ़ केवल एक भौगोलिक इकाई नहीं, बल्कि संस्कृति, सरलता और संकल्प का संगम है। हमारी प्राथमिकता है कि हर नागरिक को विकास का समान अवसर मिले और हमारा राज्य ‘शांति, समृद्धि और संस्कार’ का केंद्र बने।”

संस्कृति और लोकजीवन की आत्मा

छत्तीसगढ़ की पहचान उसकी लोकसंस्कृति से है। पंथी, सुआ, राऊत नाचा, करमा, डंडारी जैसे लोकनृत्य और खमरा, ढोलक, मृदंग, मांदर की थाप यहाँ के जीवन का हिस्सा हैं।
यहाँ की छत्तीसगढ़ी बोली, लोकगीत, और चित्रकूट, बारनवापारा, कांगेर घाटी जैसे प्राकृतिक स्थल पर्यटन को नई दिशा दे रहे हैं।

भविष्य की ओर – गढ़बो नवा छत्तीसगढ़

आज का छत्तीसगढ़ युवा, प्रगतिशील और आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर है।
“गढ़बो नवा छत्तीसगढ़” का अर्थ है — ऐसा राज्य जहाँ हर व्यक्ति सम्मान, अवसर और सुरक्षा के साथ जी सके।
पर्यावरण संरक्षण, महिला सशक्तिकरण, जनजातीय उत्थान और डिजिटल शासन इस नए युग की पहचान बन रहे हैं।

जय जोहार छत्तीसगढ़!

यह भूमि केवल खनिजों से नहीं, संस्कारों और शौर्य से समृद्ध है। स्थापना दिवस के इस अवसर पर हर छत्तीसगढ़िया अपने अंदर यह संकल्प दोहराए — “हम मिलकर गढ़ेंगे नवा छत्तीसगढ़।”


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