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रूस के काल्मिकिया में भगवान बुद्ध के पवित्र अवशेषों के दर्शन हेतु अभूतपूर्व श्रद्धा, पचास हजार से अधिक श्रद्धालुओं ने किए दर्शन

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भारत से ले जाए गए भगवान बुद्ध के पवित्र अवशेषों के प्रदर्शन ने रूस के काल्मिकिया गणराज्य में अभूतपूर्व आध्यात्मिक उत्साह और सांस्कृतिक एकता का वातावरण बना दिया है। अब तक पचास हजार से अधिक श्रद्धालुओं ने इन पवित्र अवशेषों के दर्शन कर श्रद्धांजलि अर्पित की है। ये अवशेष गेडेन शेडडुप चोइकोर्लिंग मठ, जिसे लोकप्रिय रूप से “गोल्डन अबोड ऑफ शक्यमुनि बुद्ध” कहा जाता है, में प्रतिष्ठित किए गए हैं।

ये पवित्र अवशेष, जिन्हें भारत का राष्ट्रीय धरोहर माना जाता है, उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के नेतृत्व में उच्च स्तरीय भारतीय प्रतिनिधिमंडल द्वारा काल्मिकिया की राजधानी एलिस्टा लाए गए। इस प्रतिनिधिमंडल में वरिष्ठ भारतीय बौद्ध भिक्षु भी शामिल हैं, जो काल्मिकिया की बौद्ध बहुल जनसंख्या के लिए विशेष धार्मिक अनुष्ठान और आशीर्वाद समारोह कर रहे हैं — यह यूरोप का एकमात्र क्षेत्र है जहाँ बौद्ध धर्म प्रमुख धर्म है।

11 अक्टूबर से आरंभ हुए इस पवित्र प्रदर्शन के दौरान वहाँ का धार्मिक उत्साह देखने लायक रहा। आज मठ के बाहर श्रद्धालुओं की कतार लगभग एक किलोमीटर लंबी देखी गई, जो इस आयोजन की गहरी आध्यात्मिक छाप को दर्शाती है। गोल्डन अबोड, जो 1996 में निर्मित हुआ एक प्रमुख तिब्बती बौद्ध केंद्र है और काल्मिक स्तेपी (मैदानी क्षेत्र) में स्थित है, सुबह से ही श्रद्धालुओं की निरंतर आमद का साक्षी बना हुआ है।

रूसी गणराज्य में इस प्रकार का पहला ऐतिहासिक आयोजन भारत और रूस के बीच प्राचीन सभ्यतागत संबंधों की गहराई को दर्शाता है। यह आयोजन लद्दाख के 19वें कुशोक बकुला रिनपोछे की अमर विरासत को भी पुनर्जीवित करता है — जिन्होंने मंगोलिया में बौद्ध धर्म के पुनरुद्धार और रूस के काल्मिकिया, बुरयातिया तथा तूवा जैसे क्षेत्रों में बुद्ध धर्म के प्रति नई रुचि जागृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

यह आयोजन भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के बीटीआई प्रभाग द्वारा अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध महासंघ (IBC), राष्ट्रीय संग्रहालय तथा इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (IGNCA) के सहयोग से आयोजित किया गया है। पवित्र अवशेषों का यह प्रदर्शन 18 अक्टूबर 2025 तक एलिस्टा में जारी रहेगा।

भारत की इस भागीदारी से भारत और रूस के लोगों के बीच साझा बौद्ध विरासत और आध्यात्मिक संबंधों की अमर परंपरा का सशक्त प्रतीक रूप सामने आया है।


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