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पूर्वोत्तर की जैव क्षमता भारत की आर्थिक प्रगति का आधार बन सकती है : डॉ. जितेंद्र सिंह

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पूर्वोत्तर भारत की जैव क्षमता भारत की आर्थिक प्रगति के लिए अपार संभावनाएं रखती है। यह बात आज केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी और पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री (कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन, परमाणु ऊर्जा विभाग और अंतरिक्ष विभाग) तथा सीएसआईआर के उपाध्यक्ष डॉ. जितेंद्र सिंह ने कही। वे आज सीएसआईआर-एनईआईएसटी द्वारा आयोजित “हितधारक सह जागरूकता बैठक” और सीएसआईआर-अरोमा मिशन तथा सीएसआईआर-फ्लोरीकल्चर मिशन के तहत उच्च गुणवत्ता वाले पौधरोपण सामग्रियों के वितरण कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे।

अपने उद्घाटन संबोधन में डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि विज्ञान आधारित हस्तक्षेप पूर्वोत्तर क्षेत्र में ग्रामीण आजीविका को सशक्त बना रहे हैं और सतत आर्थिक विकास को बढ़ावा दे रहे हैं। उन्होंने औषधीय, सुगंधित और पुष्पीय फसलों की खेती के माध्यम से किसानों, उद्यमियों और युवाओं को सशक्त बनाने के लिए सीएसआईआर–एनईआईएसटी के प्रयासों की सराहना की।

उन्होंने कहा कि पूर्वोत्तर क्षेत्र अपनी समृद्ध जैव विविधता और विशिष्ट कृषि-जलवायु परिस्थितियों के कारण उच्च मूल्य वाले पौध-आधारित उद्योगों का केंद्र बनने की अपार संभावनाएं रखता है। सरकार इस क्षेत्र को एक “कृषि-उद्यमिता केंद्र” (Agro-Entrepreneurial Hub) के रूप में विकसित करने के लिए पारंपरिक कृषि पद्धतियों को आधुनिक वैज्ञानिक तकनीकों से जोड़ने के लिए प्रतिबद्ध है।

जम्मू-कश्मीर में ‘पर्पल रेवोल्यूशन’ की सफलता का उल्लेख करते हुए डॉ. सिंह ने मिजोरम और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों के किसानों व उद्यमियों से आग्रह किया कि वे लैवेंडर, सिट्रोनेला, लेमनग्रास और पैचौली जैसी सुगंधित फसलों की खेती अपनाएं, जिनकी बाजार में बड़ी मांग और उच्च आय की संभावना है।

उन्होंने कहा, “पर्पल रेवोल्यूशन ने दिखाया है कि जब विज्ञान को स्थानीय क्षमता के साथ जोड़ा जाता है, तो यह रोजगार और उद्यमिता के नए रास्ते खोल सकता है। यही मॉडल पूर्वोत्तर क्षेत्र में भी अपनाया जा सकता है ताकि यह भारत की अरोमा और फ्लोरीकल्चर अर्थव्यवस्था का केंद्र बन सके।”

डॉ. सिंह ने आगे कहा कि सीएसआईआर–अरोमा मिशन और फ्लोरीकल्चर मिशन के तहत किए गए प्रयास न केवल किसानों की आय बढ़ाते हैं, बल्कि महिला सशक्तिकरण, युवाओं की भागीदारी और ग्रामीण औद्योगिकीकरण को भी प्रोत्साहित करते हैं। ये प्रयास सरकार के “विकसित भारत @2047” के विजन के अनुरूप हैं।

कार्यक्रम की अध्यक्षता सीएसआईआर–एनईआईएसटी, जोरहाट के निदेशक डॉ. वीरेन्द्र एम. तिवारी ने की। उन्होंने संस्थान द्वारा मिजोरम और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में किए गए कार्यों और उपलब्धियों पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम में लेमनग्रास, सिट्रोनेला, कैमोमाइल, पैचौली, एंथुरियम, गेंदे और क्राइज़ैंथेमम जैसी सुगंधित और पुष्पीय फसलों की गुणवत्तापूर्ण पौध सामग्री और मधुमक्खी बक्से किसानों को वितरित किए गए।

मिजोरम सरकार की कृषि सचिव रामदिनलियानी (IAS), राज्य औषधीय पौध बोर्ड के प्रतिनिधि तथा केवीके मामित, लेंगपुई के अधिकारी कार्यक्रम में शामिल हुए।

सीएसआईआर–एनईआईएसटी पूर्वोत्तर क्षेत्र में सुगंधित फसलों और उच्च मूल्य वाले पुष्पीय पौधों की खेती और प्रसंस्करण को बढ़ावा देने में सक्रिय रूप से कार्य कर रहा है। संस्थान ने अरोमा, फ्लोरीकल्चर और मधुमक्खी पालन के एकीकृत मॉडल के माध्यम से ग्रामीण स्तर पर रोजगार और आय के अवसर सृजित किए हैं।

कार्यक्रम के तहत, 30 अक्टूबर 2025 को केवीके मामित, लेंगपुई में सुगंधित और पुष्पीय फसलों की खेती पर प्रशिक्षण सह जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा, जिसमें विशेषज्ञ किसानों और उद्यमियों को व्यावहारिक प्रशिक्षण देंगे।

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