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भारत का ऊर्जा और नौवहन क्षेत्र राष्ट्रीय विकास के सशक्त स्तंभ: ‘इंडिया मैरीटाइम वीक 2025’ में बोले केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी

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पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने मुंबई में आयोजित ‘रिवाइटलाइजिंग इंडिया’s मैरीटाइम मैन्युफैक्चरिंग कॉन्फ्रेंस’ को संबोधित किया, जो इंडिया मैरीटाइम वीक 2025 का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि भारत की तीव्र आर्थिक वृद्धि ऊर्जा और नौवहन क्षेत्रों की प्रगति से गहराई से जुड़ी हुई है, जो राष्ट्रीय विकास के दो सशक्त स्तंभ हैं।

मंत्री ने बताया कि भारत की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है और वर्तमान में जीडीपी लगभग 4.3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के आसपास है। इसमें से लगभग आधा हिस्सा निर्यात, आयात और प्रेषण जैसी बाह्य गतिविधियों से आता है, जो यह दर्शाता है कि भारत की आर्थिक प्रगति में व्यापार — और इसलिए नौवहन — कितना महत्वपूर्ण है।

ऊर्जा क्षेत्र के बारे में बोलते हुए मंत्री पुरी ने कहा कि भारत वर्तमान में प्रतिदिन लगभग 5.6 मिलियन बैरल कच्चे तेल का उपभोग करता है, जो साढ़े चार साल पहले 5 मिलियन बैरल था। मौजूदा वृद्धि दर पर, देश जल्द ही 6 मिलियन बैरल प्रति दिन तक पहुंच जाएगा। उन्होंने बताया कि अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के अनुसार, आने वाले दो दशकों में वैश्विक ऊर्जा मांग में होने वाली वृद्धि का लगभग 30 प्रतिशत योगदान भारत से होगा, जो पहले 25 प्रतिशत का अनुमान था। यह बढ़ती ऊर्जा आवश्यकता स्वाभाविक रूप से भारत की जहाजरानी की मांग को भी बढ़ाएगी, ताकि तेल, गैस और अन्य ऊर्जा उत्पादों को दुनिया भर में पहुंचाया जा सके।

मंत्री ने जानकारी दी कि 2024–25 के दौरान भारत ने लगभग 300 मिलियन मीट्रिक टन कच्चा तेल और पेट्रोलियम उत्पाद आयात किए और 65 मिलियन मीट्रिक टन का निर्यात किया। तेल और गैस क्षेत्र भारत के कुल व्यापार के लगभग 28 प्रतिशत हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है, जो बंदरगाहों द्वारा संभाले जाने वाला सबसे बड़ा एकल वस्तु क्षेत्र है। उन्होंने कहा कि भारत वर्तमान में अपनी 88% कच्चे तेल और 51% गैस की आवश्यकता आयात के माध्यम से पूरी करता है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि ऊर्जा सुरक्षा के लिए नौवहन उद्योग कितना आवश्यक है।

उन्होंने बताया कि माल ढुलाई (फ्रेट) की लागत कुल आयात बिल का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाती है। सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियां (OMCs) अमेरिका से कच्चा तेल लाने में लगभग 5 डॉलर प्रति बैरल और मध्य पूर्व से 1.2 डॉलर प्रति बैरल का भुगतान करती हैं। पिछले पाँच वर्षों में IOCL, BPCL और HPCL जैसी भारतीय सार्वजनिक उपक्रम कंपनियों ने जहाज चार्टर करने पर लगभग 8 बिलियन डॉलर खर्च किए हैं — जो भारतीय स्वामित्व वाले नए टैंकरों के एक बेड़े के निर्माण के बराबर राशि है।

मंत्री पुरी ने बताया कि भारत के व्यापारिक माल का केवल 20 प्रतिशत हिस्सा ही भारतीय ध्वज या भारतीय स्वामित्व वाले जहाजों द्वारा ले जाया जाता है। उन्होंने कहा कि यह भारत के लिए एक चुनौती के साथ-साथ एक अवसर भी है — जहाज निर्माण और स्वामित्व क्षमता बढ़ाने का। सरकार PSU कार्गो मांग को एकत्रित करने, Ship Owning and Leasing (SOL) मॉडल को बढ़ावा देने, Maritime Development Fund के माध्यम से जहाजों के लिए सस्ती वित्त व्यवस्था उपलब्ध कराने और Shipbuilding Financial Assistance Policy 2.0 लागू करने जैसे कदम उठा रही है, जिसमें LNG, एथेन और प्रोडक्ट टैंकरों के लिए अधिक समर्थन दिया जाएगा।

मंत्री ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पिछले 11 वर्षों में भारत के नौवहन क्षेत्र में उल्लेखनीय परिवर्तन हुए हैं। बंदरगाह क्षमता 2014 में 872 मिलियन मीट्रिक टन प्रति वर्ष से बढ़कर 1,681 मिलियन मीट्रिक टन हो गई है, जबकि माल ढुलाई 581 मिलियन टन से बढ़कर लगभग 855 मिलियन टन हो गई है। उन्होंने कहा कि कार्यकुशलता में भी सुधार हुआ है — जहाजों के टर्नअराउंड समय में 48% की कमी और निष्क्रिय समय में 29% की कमी आई है। सागरमाला कार्यक्रम के तहत बंदरगाहों के आधुनिकीकरण और तटीय क्षेत्रों को जोड़ने के लिए 5.5 लाख करोड़ रुपये से अधिक की परियोजनाएं शुरू की गई हैं।

उन्होंने कहा कि भारत के कोचीन शिपयार्ड, मझगांव डॉक, जीआरएसई कोलकाता, एचएसएल विशाखापत्तनम और गोवा व गुजरात के निजी शिपयार्ड अब विश्व-स्तरीय जहाज बना रहे हैं। कोचीन शिपयार्ड, एलएंडटी और डेऊ (Daewoo) के बीच LNG और एथेन कैरियर्स के लिए साझेदारी और मित्सुई OSK लाइन्स जैसी वैश्विक कंपनियों के साथ सहयोग से भारत के शिपयार्डों में उन्नत तकनीक लाई जा रही है।

उन्होंने कहा कि जहाज निर्माण उद्योग को लंबे समय तक चलने वाली योजना और स्थिर आदेशों की आवश्यकता होती है ताकि ढांचा और कुशल जनशक्ति बनी रहे। चूंकि कई वैश्विक शिपयार्ड अगले छह वर्षों तक बुक हैं, भारत को उन्हें निवेश करने और देश में ही जहाज बनाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।

भविष्य की ओर देखते हुए उन्होंने कहा कि 2047 तक भारत का समुद्री क्षेत्र लगभग ₹8 ट्रिलियन का निवेश आकर्षित करेगा और करीब 1.5 करोड़ रोजगार के अवसर सृजित करेगा। उन्होंने यह भी बताया कि भारत India–Middle East–Europe Economic Corridor और International North–South Transport Corridor जैसी पहलों के माध्यम से वैश्विक व्यापार मार्गों को आकार देने में एक प्रमुख भूमिका निभा रहा है, जो भारतीय बंदरगाहों को यूरोप, मध्य एशिया और अफ्रीका से जोड़ता है।

अपने संबोधन का समापन करते हुए  मंत्री पुरी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत अपने महासागरों को बाधा नहीं बल्कि विकास और समृद्धि के मार्ग के रूप में देखता है। देश बंदरगाहों का आधुनिकीकरण कर रहा है, अधिक जहाज बना रहा है, हरित नौवहन को बढ़ावा दे रहा है और युवाओं के लिए रोजगार सृजित कर रहा है। उन्होंने कहा कि भारत वैश्विक साझेदारों के साथ मिलकर समुद्री क्षेत्र को विकसित और आत्मनिर्भर भारत के प्रमुख प्रेरक बल के रूप में आगे बढ़ाने के लिए तैयार है।

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