इस कालम का संपादन वरिष्ठ पत्रकार व श्रीपुर एक्सप्रेस और मीडिया24मीडिया समूह के प्रधान संपादक श्री आनंदराम पत्रकारश्री कर रहे हैं। इसमें उल्लेखित तथ्यों की जानकारी संचार के विभिन्न माध्यमों, जन चर्चा और कानाफूसी पर आधारित है। व्यंग्यात्मक शैली में प्रस्तुत आलेख से किसी की भी मानहानि नहीं होगी, इसका विशेष ख्याल रखा गया है। आलेख में किसी व्यक्ति विशेष, संस्था अथवा दल विशेष पर कटाक्ष नहीं है। किसी घटना अथवा कड़ी का आपस में जुड़ जाना महज एक संयोग होगा। इस संबंध में कोई दावा-आपत्ति स्वीकार्य नहीं है।
Charcha Chaurahe Par : सोशल मीडिया पर ऐसा वार, महादेव की कृपा से सब काम हो रहा है,उधारी की गारंटी नहीं- नगदी में बात करो

(यद्यपि हमारा ध्येय स्वस्थ पत्रकारिता को प्रोत्साहित करना है। तथापि यदि संयोगवश किसी विषयवस्तु से किसी की भावना को ठेस पहुंचती है, तो अपनी अभिव्यक्ति सीधे प्रधान संपादक तक मोबाइल नंबर- 9669140004 पर व्हाट्सएप्प करके अथवा anand.media24media@gmail. com पर ई-मेल संदेश भेज सकते हैं। हम सुधि पाठकों के भावनाओं का विशेष ध्यान रखेंगे। )
इन दिनों देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहा है। भारत निर्वाचन आयोग द्वारा आदर्श आचार संहिता में अनेक सख्तियां बरती जा रही है। इसका तोड़ राजनीतिक दल सोशल मीडिया पर 'पोस्टर वार' से निकाल रहे हैं। 'चर्चा चौराहे पर' के स्तम्भकार को एक सुधि पाठक ने व्हाट्सएप्प पर वायरल एक 'कार्टून पर्चा' भेजा है। जिसमें विभिन्न राजनीतिक दलों के चुनाव चिन्ह से स्वागत को चुटीले अंदाज में प्रस्तुत किया गया है। देखिए सोशल मीडिया पर कैसा 'वार' चल रहा है। वायरल पर्चा को हम मूलतः यहाँ प्रकाशित कर रहे हैं। आप भी गौर फरमाइए और मंद-मंद मुस्कुराइये.....
एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल के कार्यकर्ता सह कथित मीडिया प्रभारी को उनके ही दल के लोग 'कौआ' संबोधित करते हैं। श्यामवर्ण के होने से इस उपनाम की उत्पति होना माना जा रहा है। किसी भी मसले पर जहाँ-तहां 'कांव-कांव' करने के स्वभाव के कारण पार्टी के लोग उन्हें इस उपनाम से संबोधित करने लगे हैं। चौराहे पर चर्चा हो रही थी कि पार्टी ने 'मीडिया मैनेजमेंट' की महती जिम्मेदारी उन्हें दी है। बड़ा फण्ड भी दिया है। आदत से लाचार ये नेता कलमकारों के हिस्से के धन को भी गटक रहे हैं। इससे अनेक कलमकार नाराज हो गए हैं। ऊपर से (हाई कमान) जब कलम के सिपाहियों के सम्मान में लोकतंत्र के उत्सव में भागीदारी के लिए 'सम्मान निधि' भेजी जा रही है। तब सवाल यह है कि छिछोरे किस्म के इन 'कांव-कांव' करने वाले नेता को खांव-खांव करने का अधिकार किसने दे दिया ?
छत्तीसगढ़ के महासमुन्द विधानसभा क्षेत्र में 'महादेव' की खूब चर्चा हो रही है। कहा जा रहा है कि एक उम्मीदवार को 'महादेव' की कृपा से टिकट मिली है। तो जीत भी महादेव ही दिलाएंगे। यह सोचकर 'रामजी' सहित प्रायः सभी कार्यकर्ता काम करना बंद कर दिए हैं।
जब महादेव की कृपा से ही सबकुछ होना है, तो हमारी क्या जरूरत है? ऐसा सवाल कर्मठ कार्यकर्ता कर रहे हैं। जीवन में पंच तक का चुनाव नहीं लड़े व्यक्ति को पार्टी ने क्या सोचकर टिकट दी है, यह तो संगठन के लोग ही जानें। इतना जरूर है कि जनता 'महादेव' का मतलब जानने आतुर हैं। कहीं यहाँ भी 'महादेव एप' की कृपा से सब काम तो नहीं हो रहा है?
एक दल के उम्मीदवार 'महतारी वंदन योजना' का फार्म भरा रहे हैं। गांव-गांव में महिलाओं की टोली घूमकर प्रलोभन दे रही हैं। जागरूक जनता ने इस राजनीतिक फंडा को नकार दिया है। चौक पर चर्चा हो रही थी कि उधारी की योजना की गारंटी नहीं है, फार्म भरने के लिए पहले प्रति फार्म एक हजार रुपये दें। तब विश्वास होगा कि हर महीने एक हजार रुपये उन्हें मिलने वाला है। अब यह योजना उम्मीदवार के गले की हड्डी बन गई है। महिलाएं कह रही हैं-
"उधारी से काम नहीं चलेगा, नगदी देना है तो बात करो।
21वीं सदी की समझदार नारी हैं हम, बाबा जी हमें माफ करो।"
इस तरह के वाक्या से गुजरते हुए दिन बीत गया और शाम को रिटर्निंग ऑफिसर ने संबंधित उम्मीदवार को नोटिस भेज दिया। आज दो बजे तक जवाब दो, वर्ना खैर नहीं। अब देखना होगा कि किसकी वंदन होती है।




