रायपुर. वार्ड 12 में रहने वाली राखी बाई (परिवर्तित) को क्षय रोग से संक्रमित होने का पता तब चला जब एक दिन उनके मोहल्ले में टीबी चैंपियन गीता बर्मन उससे घर-घर सर्वे करने आई। बात चीत में राखी ने गीता को बताया उसे काफी समय से खांसी आ रही है, बलगम भी बहुत आता है और कभी-कभी बलगम के साथ खून भी आता है. राखी बाई की थूक का सैंपल तुरंत लिया गया और उसकी जांच करवाने के बाद पता लगा उसे टीबी है.
गीता ने उसको यह भी बताया कि घर के चूल्हे से निकलने वाले धुएं से भी बीमारी बढ़ सकती है इसलिए उससे धुआं रहित चूल्हे का उपयोग करना चाहिए. धुआं-रहित चूल्हा या `नो स्मोक’ चूल्हा घर पर ही बनाया जाता है और इसमें खर्चा भी बहुत ही कम होता है. कुछ ही दिनों में गीता की मदद से राखी के घर में भी `नो-स्मोक’ चूल्हा बनाया गया. इस चूल्हे का धुआं एक पाइप के माध्यम से बाहर निकल जाता है जिससे धुआं से होने वाली समस्याओं से राहत मिलती है और खाना भी काफी समय तक चूल्हे पर गर्म रहता है.
टीबी चैंपियन सीखा रहे मिट्टी का चूल्हा बनाना
गीता बर्मन कहती है: “वार्ड में चार घरों में धुआं रहित चूल्हा बनाया गया है. इस चूल्हे के निर्माण में 200 से 250 रुपये तक का खर्च आता है. इससे घर के अंदर धुआं नहीं फैलता और लकड़ी की खपत भी काफी कम होती है. यही इस चूल्हे की सबसे बड़ी विशेषता है. धुआं रहित चूल्हा होने की वजह से ही टीबी जैसी गंभीर बीमारी को पनपने से काफी हद तक रोका जा सकता है.विशेष रूप से चूल्हे पर खाना बनाने वाली महिलाओं में टीबी के खतरे का जोखिम अधिक रहता है. परंपरागत चूल्हों से धुआं अधिक होता है. धुएं से होने वाले संक्रमण को भी कम कर देता है.“
क्षय नियंत्रण कार्यक्रम के जिला नोडल अधिकारी डॉ. अविनाश चतुर्वेदी ने बताया: ‘’धुआं रहित (नो स्मोक) चूल्हे के लिये जिले में जोर-शोर से प्रयास किए जा रहे हैं जिसमें मितानिन भी अहम भूमिका निभा रही हैं.यह चूल्हा कई मायनों में सबसे अलग और विशेष है जिसे टीबी रोग से बचाव हेतु एहतियाती सुरक्षा के लिए कोई भी अपने घर बनवा सकता है. डोर टू डोर टीबी जागरूकता के दौरान टीबी रोग के संभावित मरीज चिन्हित होने की स्थिति में पीड़ित की सहमति से यह चूल्हा बनवाया जाता है.”