महासमुंद। श्री जगन्नाथ महाप्रभु की रथयात्रा 01 जुलाई और बाहुड़ा यात्रा 09 जुलाई को धूमधाम से होगी इस बार गायत्री नगर जगन्नाथ मंदिर रायपुर में भक्त और भगवान के सीधे संवाद का दूसरा नाम है, रथयात्रा। यह ऐतिहासिक व पारंपरिक पर्व है, जो सीधे भक्त को भगवान से जोड़ता है, जो न केवल छत्तीसगढ़ एवं ओडीशा राज्य की भावनाओं को आपस में जोड़ती है अपितु इन दोनों राज्यों के बीच आपसी भाईचारा एवं प्रेम बन्धुत्व की भावनाओं को आज के इस आधुनिक युग में भी जीवन्त बनाए हुए हैं, जो हमारी धार्मिक आस्था एवं साम्प्रदायिक सद्भाव का प्रतीक है।
श्री जगन्नाथ महाप्रभु की रथयात्रा 01 जुलाई और बाहुड़ा यात्रा 09 जुलाई को धूमधाम से मनाया जायेगा

इस वर्ष
आषाढ़ मास की
शुक्ल पक्ष की
द्वितीया अर्थात 01 जुलाई को
अत्यंत ही हर्षोल्लास
के साथ मनाया
जायेगा। उक्ताशय
की जानकारी पत्रकारों
को देते हुए
श्री जगन्नाथ मंदिर
सेवा समिति के
संस्थापक अध्यक्ष पुरन्दर मिश्रा
ने रथयात्रा के
बारे में विस्तार
से बताया कि
समूचे ब्रह्माण्ड में
एकमात्र श्री जगन्नाथ
महाप्रभु ही ऐसे
भगवन् हैं, जो
वर्ष में एकबार
बाहर आकर अपने
भक्तों को दर्शन
देते हैं, और
प्रसाद के रूप
में अपना आशीर्वाद
प्रदान करते हैं।
केवल पुरी स्थित
श्री जगन्नाथ मंदिर
में जगन्नाथ जी,
बलभद्र जी एवं
सुभद्रा जी के
लिए तीन अलग
अलग रथ बनाए
जाते हैं, उसके
बाद यह गौरव
छत्तीसगढ़ की संस्कारधानी
रायपुर को प्राप्त
है। छत्तीसगढ़ में
आज भी ऐसे
लाखों लोग हैं,
जो किसी कारणवश
पुरी स्थित श्री
जगन्नाथ मन्दिर के दर्शन
नहीं कर पा
रहे हैं, ऐसे
भक्तजनों के लिए
रथयात्रा एक ऐसा
स्वर्णिम अवसर रहता
है जब भक्त
और भगवान के
बीच की दूरियां
कम हो जाती
हैं।
वैसे
तो भगवान जगन्नाथ
महाप्रभु जी की
लीला अपरम्पार है,
तथापि रथयात्रा से
जुडे़ कुछ महत्वपूर्ण
धार्मिक विधियों के बारे
में जानकारी देते
हुए उन्होने बताया
कि वैसे इस
यात्रा का शुभारम्भ
ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन
स्नान पूर्णिमा से हो
जाता है, जिसमें
भगवान जगन्नाथ श्री
मन्दिर से बाहर
निकलकर भक्तिरस में डूबकर
अत्यधिक स्नान कर लेते
हैं, और जिसकी
वजह से वे
बीमार हो जाते
हैं। पन्द्रह दिनों
तक जगन्नाथ मन्दिर
में प्रभु की
पूजा अर्चना के
स्थान पर दुर्लभ
जड़ी बूटियों से
बना हुआ काढ़ा
तीसरे, पांचवे,
सातवें
और दसवें दिन
पिलाया जाता है।
ऐसी पौराणिक मान्यता
है कि भगवान श्री जगन्नाथ
को बीमार अवस्था
में दर्शन करने
पर भक्तजनों को
अतिपुण्य का लाभ
प्राप्त होता है।
स्वास्थ्य लाभ प्राप्त
होने के पश्चात्
भगवान श्री जगन्नाथ
जी अपने बड़े
भाई बलराम एवं
बहन सुभद्रा जी
के साथ तीन
अलग अलग रथ
पर सवार होकर
अपनी मौसी के
घर अर्थात् गुण्डिचा
मन्दिर जाते हैं,
प्रभु की इस
यात्रा को रथ
यात्रा कहा जाता
है। श्री जगन्नाथ
जी के रथ
को नन्दी घोष
कहते हैं एवं
बलराम दाऊ जी
के रथ को
तालध्वज कहते हैं,
दोनों भाइयों के
मध्य भक्तों का
आकर्षण केन्द्र बिन्दु रहता
है, बहन सुभद्रा
जी देवदलन रथ
पर सवार होकर
गुण्डिचा मन्दिर जाती हैं।
अध्यक्ष गौ सेवा
आयोग राम
सुंदर दास जी,
अध्यक्ष नागरिक आपूर्ति निगम राम
गोपाल अग्रवाल, प्रदेश
अध्यक्ष भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस मोहन
मरकाम, अध्यक्ष श्रम कल्याण
मंडल सुशील सन्नी
अग्रवाल, पूर्व महापौर श्रीमान
प्रमोद दुबे, नेता प्रतिपक्ष
नगर निगम रायपुर
श्रीमती मीनल चौबे,
अध्यक्ष जोन क्रमांक
9 श्रीमान प्रमोद मिश्रा, अध्यक्ष
जोन क्रमांक 4 प्रमोद
साहू, प्रकाश दावड़ा,
संगठन मंत्री भा.
ज. पा. पवन साय,पूर्व अध्यक्ष रायपुर
विकास प्राधिकरण संजय
श्रीवास्तव, लोकेश कावड़िया,पूर्व
संगठन मंत्री श्रीमान
राम प्रताप सिंह,
दिलीप होरा, पूर्व
अध्यक्ष छत्तीसगढ राज्य औद्योगिक
विकास निगम़ छगन
मूंधड़ा, पूर्व जिलाध्यक्ष रायपुर
जिला भा. ज.
पा राजीव अग्रवाल,
मंदिर के सभी
संरक्षक सदस्यगण एवं आजीवन
सदस्यों को निमंत्रित
किया गया
है।




