Responsive Ad Slot

Latest

latest


 

एक शिक्षक की व्यथा कथा : वर्ण व्यवस्था के संदर्भ में...

घनाराम साहू 

कोई मुझे ब्राह्मण समझे या शूद्र, इससे मुझ पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। क्योंकि मैं शिक्षक हूँ। वर्ण व्यवस्था अनुसार यह ब्राह्मण का कार्य है। लेकिन शिक्षा देने का पारिश्रमिक लेता हूँ इसलिए यह शुद्र का कार्य है । महाभारत सहित कुछ शास्त्रों में ब्राह्मण और शूद्र के कर्मों की व्याख्या है । किसी भी सेवा के बदले यदि हम धनार्जन / लोकार्जन करते हैं तो वह सेवा न होकर जीविकोपार्जन ही है । प्राचीन काल में तेली जाति का कार्य तिलहन और तेल उत्पादन के साथ - साथ कृषि और पशुपालन था  जो वैश्य वर्ण का विहित कार्य था । कालांतर में हमारे पूर्वज तेल और खली का व्यापार करने लगे थे, यह भी वैश्य वर्ण का कार्य था। 

अगर सर्वाधिक विवादित ग्रंथ मनुस्मृति की माने तो ब्राह्मण और क्षत्रिय भी तिलहन उत्पादन का कार्य करते थे और उत्पाद को लाभार्जन के लिए भंडारण न कर यज्ञकार्य ( शुद्ध धर्म कार्य ) हेतु शीघ्र बेचने के निर्देश थे। ( मनुस्मृति दसम मंडल श्लोक 90 )। यदि वास्तव में प्रचलन में रहा हो तो सन 1795 तक मनुस्मृतियों में "शुद्ध धर्म कार्य" ही लिखा गया था क्योंकि ब्रिटिश पार्लियामेंट द्वारा पारित आर्डिनेंस ऑफ मनु में इसी शब्द का उपयोग किया गया है । वर्तमान में प्रचलित मनुस्मृतियों में शुद्ध धर्म कार्य के स्थान पर "शुद्र धर्म कार्य" लिखा मिलता है।

 मनु को मिला था न्यायालयीन कार्यों में मान्यता

मनुस्मृति में तेली जाति का कोई उल्लेख नहीं है, लेकिन कुछ धर्म सूत्रों में लक्षणा और व्यंजना के आधार पर शुद्र कहा गया है। इतिहास के कुछ प्रसंगों में तेली जाति के राजा होने के भी उदाहरण मिलते हैं । ब्रिटिश राज में आर्डिनेंस ऑफ मनु को न्यायालयीन कार्यों में मान्यता मिलने पर सभी जातियों में हलचल बढ़ी थी और  जाति धर्म व्यवस्था सभा भी गठित हुआ था। जो शास्त्रीय व्याख्याओं के आधार पर विभिन्न जातियों को वर्ण में वर्गीकृत करने लगी । इसी के अनुक्रम में फैज़ाबाद के तेली समाज ने अन्वेषण समिति के समक्ष तेली जाति का वैश्य वर्ण होने का दावा प्रस्तुत किया था। इस दावा के परीक्षण करने समिति के सदस्यों का फैज़ाबाद प्रवास हुआ । 

समाज जनों को एकत्र करने की अपील 

तेली समाज के संगठन से समाज जनों को एकत्र करने अपील जारी किया था। जिसमें यह बताया गया था कि तेली जाति को वैश्य वर्ण में होना मान्य करने समिति का आगमन हो रहा है। समिति को तेली संगठन के इसी कथन पर आपत्त्ति था और दोनों पक्षों के बीच विवाद हो गया। तेली संगठन ने समिति की यात्रा भत्ता देने से इंकार कर दिया फलतः समिति ने निर्णय देने से मना कर दिया। 

तेली संगठन के व्यवहार के कारण वैश्य वर्ण घोषित नहीं

राजपुताना हिन्दू धर्म वर्ण व्यवस्था मंडल के महामंत्री पं छोटे लाल शर्मा ने  जाति अन्वेषण ( प्रथम भाग ) में लिखा है कि तेली जाति के वैश्य होने के पर्याप्त साक्ष्य मिले थे। लेकिन तेली संगठन के व्यवहार के कारण वैश्य वर्ण घोषित नहीं किया गया । अधिक जानकारी के लिए " Researches into Hindu caste & Creed's chiefly Based on Hindu Shastra as well as on Government Records & works of Hon'ble & Civilians. संवत 1971 " में पढ़ें ।

जानिए क्या है 'तेली जाति का इतिहास'

तेली जाति के वर्ण को लेकर अखिल भारतीय तैलिक महासभा के तत्कालीन महामंत्री पन्ना लाल गुप्त लिखित पुस्तक " तेली जाति का इतिहास " में विस्तृत विवेचना किया गया है । यद्यपि इस पुस्तक को प्रसिद्ध पुरातत्ववेता एवं इतिहासकार प्रोफेसर डॉ अनंत सदाशिव अल्तेकर की पुस्तक का अनुवाद बताया गया है लेकिन इतिहास के मेरे मित्रों के अनुसार डॉ अल्तेकर ने ऐसी कोई पुस्तक नहीं लिखी है। मैंने भी इंटरनेट में डॉ अल्तेकर की कृतियों को ढूंढने के यथासंभव प्रयास किया है लेकिन मुझे भी यह पुस्तक नहीं मिली है । जो ढूंढ सकने में सक्षम हैं उन्हें यह कार्य करना चाहिए ।

प्रसंगवश है यह आलेख 

विगत दिनों महासमुन्द जिला के बागबाहरा की भगवदकथा वाचिका श्रीमती यामिनी साहू को कुछ कथा वाचकों ने व्यास गद्दी में बैठकर कथा वाचन के लिए शुद्र एवं स्त्री होने के कारण अपात्र बताकर कथावाचन न करने के लिए फोन पर विरोध प्रकट किया था । जिसके ऑडियो सोशल मीडिया में वायरल हुये थे । किसी भी जाति के कुछ लोगों के किसी कथन को लेकर उस जाति के विरुद्ध अनावश्यक टीका-टिप्पणी करने से भी बचना चाहिए ताकि सामाजिक सदभावना बनी रहे । यहां यह भी सूचनार्थ है कि महासमुन्द जिला के समाज प्रमुखों जिसमें ब्राह्मण समाज प्रमुख भी शामिल हैं के आग्रह पर दुर्व्यवहार करने वालों के विरुद्ध आपराधिक शिकायत दर्ज न कराकर संबंधित थानों से सुरक्षा मांगी गई है । 

सभी नागरिकों को  समान और मौलिक अधिकार

समाज प्रमुखों से संरक्षण मिलने के आश्वासन के बाद कल 20 मार्च से ग्राम सिरगिड़ी ( महासमुन्द से लगभग 7 किलोमीटर बागबाहरा रोड में ) भगवद कथा प्रारम्भ हो रहा है । स्वतंत्रता के साथ हमारे देश में लोकतांत्रिक संविधान लागू है, जिसमें वर्ण व्यवस्था का कोई स्थान नहीं है । भारत के सभी नागरिकों को समान मौलिक अधिकार दिए गए हैं । संविधान तेली (साहू ) समाज को ओबीसी चिन्हित करता है । अब हमें विचार करना है कि यामिनी साहू के साथ घटित घटना के प्रसंग में वर्ण या लिंग श्रेष्ठता के लिए संघर्ष करना है या नागरिक / मौलिक अधिकारों के लिए ?

Don't Miss
© Media24Media | All Rights Reserved | Infowt Information Web Technologies.