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राजिम मेला: श्रीसंगम की सांस्कृतिक विरासत, कहां जाहू बड़ दूर हे गंगा

डॉ सुखदेव राम साहू 'सरस'. 

लोक प्रसिद्ध व्यक्तित्व के साथ अनेक संदर्भ और मान्यताओं का समावेश होता है। समय सापेक्ष उसमें आंशिक परिवर्तन , परिवर्धन भी होते रहते हैं । वही कल्पना की उड़ान अनेक बार ऐतिहासिक समीकरण से बहुत दूर हो जाते हैं । छत्तीसगढ़ का सर्वाधिक लोकप्रिय राजिम मेला, माघी पुन्नी मेला इन्हीं झंझावातों में भ्रमण करते हुए वर्तमान में भी स्थिर नहीं हो पाया है ।

राजिम (स्थान या व्यक्ति नाम ) छत्तीसगढ़ अंचल का पवित्र ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र रहा है। यहां माघी पुन्नी से महाशिवरात्रि पर्व तक विशाल और भव्य मेला का आयोजन किया जाता है। राजिम मेला से, राजीवलोचन महोत्सव से, राजिम कुंभ से, राजिम कुंभ कल्प से, माघी पुन्नी मेला तक सतत गतिमान है । अपने आप में उत्तर तथा दक्षिण भारत ( परिपथ ) की संस्कृति को संजोए राजिम श्रीसंगम के पुण्य को बाटती है और हर छत्तीसगढ़िया 'कहां जाहू बड़ दूर हे गंगा , जुर मिल यीहें तरौ रे' मानकर उसमें समस्त धार्मिक और पारंपरिक कार्य पूर्ण कर पुण्य लाभ लेते हैं। 

प्रामाणिक दस्तावेजीकरण की आवश्यकता

इस आध्यात्मिक उपस्थिति के पीछे निःसंदेह एक महान नारी का आत्मोत्सर्ग, सेवाभाव, श्रम, श्रद्धा साधना एवं संकल्प का भाव समाहित है । यह अभी भी अनुत्तरित है कि वह माता राजिम, राजिम तेलिन भक्तिन कौन थी । निःसंदेह इस पर मान्यताएं, किवदंती शोध कार्य अनेक तत्व उत्तरदायी हैं। वह राजीवा, राजू राजिबा, राजम, राजमाल, पद्म या कमल पयार्यवाची शब्द की संगति में सहमति है । शोध परक प्रामाणिक दस्तावेजीकरण की आवश्यकता है। 

पद्मा लोचन का प्रयोग समाहित 

वास्तव में अद्यतन जो लगभग स्वीकृति ( इतिहास मान्यता, जनश्रुति, कल्पना आदि के ही अंतर्गत ) समीकरण करने पर लगभग ये बातें रेखांकित होती हैं कि (1) पूर्व में यह नाम पौराणिक था । (2) राजिम भक्तिन माता धनिक परिवार की थीं । (3) उनका तेल विक्रय का व्यवसाय था । (4) वह राजा जगतपाल, सामंत जगपाल देव कलचुरी राजवंश की समकालीन थीं । (5) उनका प्रवासी स्थल चांदा / चंद्रपुर था । (6) उन्हें प्राप्त अनगढ़ प्रस्तर चमत्कारिक था । (7) वह शिव भक्त परिवार की थीं । (8) कमल पर्यायवाची शब्द पद्मा लोचन का प्रयोग समाहित रहा है ।

अंकित शिला मंदिर का इतिहास

इस प्रसंग में उक्त तथ्यों के साथ इसका भी समावेश किया जाना चाहिए कि राजिम भक्तिन मंदिर ( समकालीन निर्मिति ) के गर्भगृह में स्थापित पूजारत दंपत्ति, घानी, बैल, सूर्य, चंद्र अंकित शिला मंदिर का ऐतिहासिक है । वहीं इसी प्रकार की आंशिक परिवर्तन युक्त प्रस्तर खंड छत्तीसगढ़ में इन स्थानों में भी पाए गए हैं, यथा भोरमदेव, केशकाल घाटी के ऊपर के प्राचीन खंडहर, बस्तर क्षेत्र आदि के 9 स्थानों में । कोल्हू (घानी ) का सीधा संबंध तैलिक वंश से संभव है । 

पवित्र श्रीसंगम की सांस्कृतिक विरासत

संक्षिप्त में यह कथन अधिक उपयुक्त होगा कि क्या अंकित दंपत्ति ही राजिम भक्तिन तेलिन हेतु अभिधेय है । अंकन की सिद्धि, प्रसिद्धि, संपन्नता, गुणात्मकता एवं राजवंश के परिचायक हो सकता है । राजिम के लिए भी पूर्व नामांकन पद्मावतीपुरी ही इच्छित सूत्र प्रदान करते हैं । निःसंदेह पर्याप्त शोधपरक कार्य का होना आवश्यक है । शोध पीठ की स्थापना के साथ पर्याप्त दस्तावेजीकरण ही इस ऐतिहासिक धरोहर पवित्र श्रीसंगम की सांस्कृतिक विरासत को समुचित एवं नामांकित स्थान प्रदान करेंगे । यही शुभ होगा ।

-पुरानी बस्ती रायपुर छ. ग.

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