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प्लास्टिक के दुष्प्रभाव से बचने बनाया बर्तन बैंक, कम किराए पर दे रहे हैं स्टील के बर्तन

पर्यावरण प्रकृति का उपहार है। वह प्रत्येक तत्व जिसका उपयोग हम जीवित रहने के लिए करते है, वह सभी पर्यावरण के अंतर्गत आते है। इसको बचाने की छोटी सी छोटी पहल भी धरती को स्वर्ग बना सकता है। ऐसी ही एक कोशिश महासमुंद जिले की स्व-सहायता समूह की महिलाओं ने की है। उन्होंने प्लास्टिक से बने बर्तनों से होने वाले दुष्परिणामों के खिलाफ लोगों को जागरूक करने के साथ ही बर्तन बैंक की शुरूआत की है। इस बैंक के माध्यम से वे स्टील से बने बर्तनों को शादियों और दूसरे कार्यक्रमों में उपयोग के लिए कम कीमतों पर किराए पर दे रहे हैं।

महासमुंद जिले की गांव रायतुम के कृष्णा विकास स्व-सहायता समूह की अध्यक्ष रेश्मा साहू ने बताया कि शादी के कार्यक्रम में अवसर पर लोगों को प्लास्टिक और थर्माकोल से बने ग्लास और थालियां इस्तेमाल करते हुए देखते थे। जिसके बाद उन्होंने प्लास्टिक का उपयोग न हो इसके विकल्प के तौर पर स्टील के बर्तन जमा कर बर्तन बैंक बनाया है। इसकी शुरूआत लगभग 2 साल पहले बिहान योजना से जुड़ने के बाद 12 हजार रुपए की लागत से की। बर्तन खरीद कर कम किराए पर लोगों को दिया जा रहा हैं। 

कम किराए में दिए जाते हैं स्टील के बर्तन

इसके कारण आस-पास के लोग धीरे-धीरे प्लास्टिक के बर्तनों का इस्तेमाल करना छोड़ रहे हैं। जब भी किसी के यहां जन्मदिन, किटी पार्टी समेत धार्मिक और सामाजिक आयोजन होते हैं, तो लोग बर्तन बैंक से स्टील की थालियां, गिलास, चम्मच, कटोरियां समेत अन्य बर्तन ले जाते हैं। आयोजन के बाद बर्तनों को साफ कराकर बर्तन बैंक में जमा कर देते हैं। अगर कोई बर्तन खो जाता है तो संबंधित से उसका चार्ज लिया जाता है, ताकि जरूरत के मुताबिक दूसरा बर्तन खरीदा जा सके। गांव भी प्लास्टिक मुक्त बन रहा है।

8 महिलाएं ने शुरू किया था बर्तन बैंक

रेश्मा साहू ने बताया की उनके समूह में 8 महिलाएं है। कोरोना काल के दौरान कार्यक्रम का आयोजन कम होने से उम्मीद के मुताबिक लाभ नहीं हुआ। लेकिन अब कोरोना की रफ्तार धीमी पड़ने से उनकी आमदनी में इजाफा हो रहा है। अब 5-6 हजार रुपए की आमदनी हर महीने हो जाती है। उन्होंने बताया कि इसके अलावा वे मशरूम, अगरबत्ती, मुरकू, बड़ी, पापड़, अचार के साथ सेनेटरी पेड और जरुरत की सामग्री बनाती है, जिसकी अच्छी बिक्री स्थानीय और हाट बाजार में हो जाती है।

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