वन विभाग की ओर से वन अपराधों की रोकथाम के लिए चलाए जा रहे अभियान के तहत सरायपाली वन परिक्षेत्र अंतर्गत दो आरोपियों को वन्यप्राणी के शिकार के प्रयास में संलिप्त पाए जाने पर उनके खिलाफ केस दर्ज कर दोनों की गिरफ्तारी की गई। साथ ही दोनों को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया गया है।
वन मंत्री मोहम्मद अकबर के मार्गदर्शन में विभाग की ओर से राज्य में वन अपराधों की रोकथाम के लिए सतत रूप से अभियान जारी है। इसी कड़ी में प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्य प्राणी) PV नरसिंग राव और वन मंडलाधिकारी महासमुंद पंकज राजपूत के दिशा-निर्देशन में विभागीय टीम ने 13 अक्टूबर को सरायपाली वन क्षेत्र में वन्यप्राणी शिकार के लिए नंगी GI तार से विद्युत प्रवाह करते पाए जाने पर मौके पर धर-दबोचा गया।
इन लोगों का रहा योगदान
इनमें वाल्मीक कोलता (खरनियाबहाल) और सुरेंद्र कोलता (खरनियाबहाल) थाना सिंघोड़ा तहसील सरायपाली शामिल हैं। इस कार्रवाई में सरायपाली वन परिक्षेत्र अधिकारी रामलाल, वनपाल सतीश पटेल, अनिल कुमार प्रधान और संतोष पैकरा, चंद्रशेखर सिदार, ज्वालाप्रसाद पटेल, आकाश बेहार समेत विभागीय अमले का सराहनीय योगदान रहा।
CISF के SI की गिरफ्तारी
बता दें कि 15 सितंबर को वन विभाग की टीम ने पैंगोलिन के अवशेष का सौदा करते CISF (केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल) के SI को गिरफ्तार किया था। जय स्तंभ चौक के पास से सब इंस्पेक्टर की गिरफ्तारी हुई थी। जानकारी के मुताबिक जितेंद्र पोरचे रायपुर एयरपोर्ट में SI के पद पर पदस्थ था। SI जितेंद्र पोरचे छिंदवाड़ा से पैंगोलिन स्केल्स मंगवाकर उसे बेचने की फिराक में था, लेकिन इसकी सूचना वाइल्ड लाइफ और क्राइम कंट्रोल ब्यूरो जबलपुर की टीम को मिल गई। टीम के सदस्य ग्राहक बनकर खरीदने के लिए पहुंचे। इस दौरान वाइल्ड लाइफ और क्राइम कंट्रोल ब्यूरो की संयुक्त टीम ने SI जितेंद्र को रंगे हाथों गिरफ्तार कर लिया। आरोपी SI जितेंद्र पोरचे भी छिंदवाड़ा का रहने वाला है।
पैंगोलिन स्केल्स की तस्करी
पैंगोलिन स्केल्स की तस्करी के लिए ग्रामीण इलाकों में लगातार संपर्क किया जाता है। वाइल्डलाइफ सेक्शन 33 का एक्ट उतना ही गंभीर है, जितना एक लैपर्ड की तस्करी में होती है। इस तस्करी के पीछे कई इंटरनेशनल मार्केट के तार भी जुड़े हुए हैं। इंटरनेशनल मार्केट में कुछ ऐसे कंट्री है। जैसे चाइना, साउथ अफ्रीका और उसके साउथ स्पेशियस है, जहां इसकी मांग ज्यादा होती है। फॉरेन कंट्री में इसका कई दवाइयों के उपयोग होता है। जिस कंट्री में इसका ज्यादा उपयोग होता है, उस जगह पर इसकी तस्करी ज्यादा की जाती है। पैंगोलिन मार्केटेबल प्रोडक्ट नहीं है। इसीलिए इसकी ब्लैक मार्केटिंग बहुत ज्यादा की जाती है।