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शिक्षा विभाग में शिष्टाचार अभी बाकी है साहब, देखिए हमने तत्काल रोक दिया वेतन भुगतान !

महासमुंद। "शिक्षक की मनमर्जी पर अफसर मेहरबान, 16 महीने से बिना ड्यूटी के ले रहे वेतन" मीडिया24मीडिया की इस खास खबर पर जिला प्रशासन ने संज्ञान लिया है। खबर प्रकाशन से शिक्षा विभाग की कुम्भकर्णी निद्रा टूटी है। यह खबर प्रकाशन के साथ ही इंटरनेट मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ। इसके बाद जिले के संवेदनशील कलेक्टर (पूर्व में इसी जिले में गुरुजी रहे) डोमन सिंह ने संज्ञान लिया। 


प्रभारी जिला शिक्षा अधिकारी की कार्यप्रणाली पर उंगली उठी। तब अपनी चमड़ी बचाने के लिए जिला शिक्षाधिकारी ने तत्काल प्रभाव से बीईओ को आदेश जारी किया। आदेश में जो कुछ लिखा है, आप भी पढ़िए। आदेश के अनुसार 16 महीने से स्कूल नहीं आ रहे शिक्षक का वेतन आहरण तत्काल प्रभाव से रोक दिया गया है। मतलब, अफसरों की मेहरबानी अब भी साफ झलक रही है। 


 'बड़े बाबू' से लेकर 'बड़े साहब' तक मेहरबान 

बसना बीईओ द्वारा अनुशासनहीनता के लिए निलंबन का प्रस्ताव भेजा जाता है। और डीईओ वेतन आहरण पर रोक लगाते हैं। क्या गजब का घालमेल है? इससे तो ऐसा प्रतीत हो रहा है कि प्रधानाध्यापक, एबीईओ और बीईओ के जांच रिपोर्ट का कोई औचित्य ही नहीं है। शिक्षक खुलेआम मनमानी कर रहे हैं। जानकार सूत्र तो यहां तक बताते हैं कि संबंधित शिक्षक बसना में 'ब्याज का कारोबार' अर्थात साहूकारी करते हैं। इससे मोटी रकम की कमाई होती है। इस कमाई का बड़ा हिस्सा सिपहसालारों को जाता है। इस वजह से 'बड़े बाबू' से लेकर 'बड़े साहब' तक सभी मेहरबान हैं। 

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शिक्षा व्यवस्था का बंटाधार 

16 महीने तक लगातार स्कूल नहीं जाने, ऑनलाइन और मोहल्ला क्लास नहीं लगाने, उच्चाधिकारियों के नोटिस का जवाब नहीं देने, निरंतर अनुपस्थिति के बावजूद बेधड़क वेतन आहरण होने, अनुशासनात्मक कार्यवाही की अनुशंसा दरकिनार कर वेतन आहरण रोक दिए जाने से यह तो स्पष्ट हो गया है कि जिले में शिक्षा व्यवस्था का बंटाधार करने में शिक्षाधिकारी कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ रहे हैं। 

 नौनिहालों के भविष्य से खिलवाड़ 

यह एक शिक्षक का उदाहरण मात्र है। ऐसे न जानें कितने 'समन्वय' आपसी घालमेल से ननिहालों के भविष्य से खिलवाड़ कर रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्र के स्कूलों में शिक्षक की कमी है। शहर और आसपास के स्कूलों में जरूरत से ज्यादा शिक्षक पदस्थ हैं। जानबूझकर असंतुलन पैदा किया जा रहा है। 

 संलग्नीकरण के नाम पर बड़ा खेल 

महासमुन्द जिले की स्कूलों में शिक्षकों का अध्यापन व्यवस्था के तहत संलग्नीकरण का बड़ा खेल चल रहा है। सूत्रों से मिली पुख्ता जानकारी के अनुसार सत्तारूढ़ दल के जनप्रतिनिधियों की सिफारिश और अफसरों की मनमानी से अन्तरब्लाक संलग्नीकरण का खेल चल रहा है। लाखों रुपये की उगाही कर संलग्नीकरण की आड़ में स्थानांतरित किया जा रहा है। 

चल रहा है स्थानांतरण उद्योग 

नियम कायदे को दरकिनार करते हुए जमकर स्थानांतरण उद्योग चलाया जा रहा है। जो स्थानांतरण मुख्यमंत्री और विभागीय मंत्री के समन्वय समिति से होना चाहिए, सभी प्रावधानों को दरकिनार कर संलग्नीकरण किया जा रहा। इसकी लंबी फेहरिस्त है। 26 सितम्बर को मुख्यमंत्री के महासमुन्द जिला प्रवास के दौरान इस दिशा में ध्यानाकर्षण कराने की तैयारी भी कर्मचारी संघ और कुछ जनप्रतिनिधियों के द्वारा की जा रही है। प्रशासनिक उदासीनता का इससे बड़ा उदाहरण भला और क्या हो सकता है कि प्रमाणित जांच प्रतिवेदनों पर भी कोई कार्यवाही नहीं करके जिले के आला अधिकारी सरेआम संरक्षण दे रहे हैं। लोकसेवकों के इस तरह के रवैये से व्यापक लोकहित प्रभावित हो रहा है। बहरहाल, भ्रष्टाचार को शिष्टाचार का हिस्सा बनाने में जुटे अफसरों पर क्या कार्यवाही होती है? इस पर सबकी निगाहें टिकी हुई है।

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