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RTI दरकिनार, महासमुंद में अफसरों का अपना कानून चल रहा है सरकार !

महासमुंद। शासन-प्रशासन में पारदर्शिता लाने सूचना का अधिकार कानून (Right to Information Act, 2005) लागू किया गया है। जिससे आम आदमी को सही जानकारी मिल सके। और गोपनीयता की आड़ में होने वाले भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जा सके। लेकिन अफसर इस कानून की ही धज्जियां उड़ाने में अपनी शान समझ रहे हैं। आरटीआई कानून का मजाक देखना हो तो कलेक्टोरेट महासमुंद में आवेदन लगाने चक्कर लगा कर देख सकते हैं। यहां सूचना मांगने के लिए आवेदन करने में ही आम आदमी का पसीना छूट जाता है। 


"जब तक जन सूचना अधिकारी डिप्टी कलेक्टर ऋतु हेमनानी के समक्ष आवेदक स्वयं उपस्थित नहीं होगा, आवेदन की विषयवस्तु उन्हें नहीं बताएगा, तब तक कार्यालय में कोई भी आवेदन नहीं लिया जाएगा।" जन सूचना अधिकारी के इस तुगलकी फरमान से यहां आरटीआई एक्टिविस्ट खासा परेशान हैं। आम आदमी को तो आवेदन देने घंटों इंतजार करना पड़ता है। कभी-कभी तो पूरे दिन आवेदक अधिकारी की प्रतीक्षा करने के बाद भी बैरंग लौटने विवश हो जाते हैं। जबकि, कानून में प्रावधान है कि आवेदन लेने की सुगम व्यवस्था करना कार्यालय प्रमुख की जिम्मेदारी है। जनसूचना अधिकारी के इस अड़ियल रवैया की शिकायत राज्य सूचना आयोग और केंद्रीय सूचना आयोग से की गई है।

निरंकुश प्रशासन, आम आदमी परेशान 

RTI  एक्टिविस्ट पंकज साहू ने बताया कि निरंकुश प्रशासन व्यवस्था के चलते आम आदमी परेशान हैं। वे खुद 19 अगस्त 2021 गुरुवार को महासमुन्द जिला कार्यालय में आवेदन देने पहुँचे थे। जहां आवक-जावक, अधीक्षक, आरटीआई के डिलिंग क्लर्क सभी ने आवेदन लेने से साफ तौर पर इंकार कर दिया। डिप्टी कलेक्टर से आवेदक स्वयं जब तक मार्किंग कराकर आवेदन नहीं देंगे, नहीं लेना है। इस तरह मनमानीपूर्ण मौखिक आदेश दिया गया है। अक्सर ऐसा होता है कि अधिकारी बैठक में, लंच में, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में व्यस्त रहते हैं। अथवा व्यस्तता का बहाना बनाकर नदारद रहते हैं। इससे आम आदमी को अनावश्यक ही कार्यालय का बारंबार चक्कर काटना पड़ता है। सूचना प्राप्त करने के लिए भटकते नजर आते हैं। दूरस्थ अंचल सरायपाली से आने वाले लोगों को इससे खासा परेशानी और आर्थिक क्षति उठाना पड़ रहा है।

अधिकारी ने मार्किंग करने से किया इनकार 

19 अगस्त को कथित तौर पर मुख्य सचिव की वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग थी। जिसमें कलेक्टर सहित अनेक डिप्टी कलेक्टर व्यस्त थे। आवेदक पंकज साहू दोपहर साढ़े तीन बजे से शाम साढ़े पांच बजे तक पूरे दो घंटे प्रतीक्षा करते रहे। बावजूद, वीसी समाप्त नहीं हुआ और अंततः उन्हें बैरंग लौटना पड़ा। इस तरह दो घंटे तक लम्बी प्रतीक्षा करने के बाद भी आवेदन नहीं कर सके। जबकि, यह दो मिनट का भी काम नहीं है। इस बीच अन्य कक्ष में डिप्टी कलेक्टर नेहा कपूर बैठी थीं। उन्हें आवेदन दिया गया और मार्किंग करने का आग्रह किया गया। उन्होंने आवेदन पढ़ने के बाद मार्किंग करने से साफ तौर पर इनकार कर दिया। 

यहां चलता है इनका अपना कानून 

सूचना का अधिकार केंद्रीय कानून है। पूरे देश में आर टी आई के तहत शासन-प्रशासन की कार्यप्रणाली पर पारदर्शिता लाने की व्यवस्था है। महासमुन्द में अफसरशाही का नमूना देख सकते हैं, यहां इनका बनाया कानून चल रहा है। जबकि, आरटीआई का आवेदन नहीं लेना कानूनी तौर पर दंडनीय अपराध है। उसके बावजूद अधिकारियों को इसकी जरा भी परवाह नहीं है। 

कई जगह साक्षात्कार, तब आवेदन 

सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 देशभर में लागू है। जिसके तहत आम नागरिक किसी भी कार्यलयों में आर टी आई के तहत सहजता से आवेदन देकर जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। जिसका पालन भी ज्यादातर कार्यलयों में होता है। परंतु महासमुन्द के जिला कार्यालय में ही अव्यवस्था है, जिसके कारण आम नागरिक परेशान हो रहे हैं।  सहजता से आवेदन पत्र जमा नहीं कर पा रहे हैं। कई जगह साक्षत्कार से गुजरना पड़ता है, तब कहीं जाकर आरटीआई आवेदन जमा होता है। जिसमें सूचना भी समय पर नही दिए जाने की शिकायतें है। 

राज्य सूचना आयोग का निर्देश दरकिनार 

छत्तीसगढ़ राज्य सूचना आयोग के द्वारा समय-समय पर आदेश जारी किए गए हैं। जिसके तहत सहजता से आवेदन लेने औऱ सूचना प्रदान करने के निर्देश हैं। परंतु जिले के अधिकारी आयोग के आदेश/निर्देश को भी दरकिनार कर अपना नियम चला रहे हैं। जिससे आरटीआई कानून यहाँ निस्प्रभावी हो रहा है। मजाक बनकर रह गया है। 

अफसरशाही पर एक नजर.... 

इस संबंध में आधिकारिक पक्ष लेने जन सूचना अधिकारी ऋतु हेमनानी के मोबाइल पर 'मीडिया प्रतिनिधि' द्वारा कई बार कॉल किया गया। घंटी बजती रही, कॉल रिसीव नहीं किए और न ही बाद में कॉल बैक कर जवाब देना मुनासिब समझा। इस तरह अनुमान लगाया जा सकता है कि जिले में अफसरशाही किस कदर हावी है। लोक सेवक खुद को खुदा समझ बैठे हैं। जिस पर अंकुश लगाने वाले सरकार के नुमाइंदों ने भी आंखें बंद कर ली है।

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