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नर्रा कांड: कितनी हकीकत, कितना फसाना

आनंदराम साहू 

छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले के अंतिम छोर का गांव नर्रा। प्रतिभाशाली बच्चों का गांव, प्राख्यात और विद्वान पत्रकार स्वर्गीय कुलदीप निगम का गांव। जागरूक नागरिकों का गांव। शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी गांव। अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद करने वालों का गांव। अनेक विशेषताओं वाला है यह गांव नर्रा। फिर यहां नर्रा कांड जैसे नकारात्मक आंदोलन आखिर क्यों और कैसे हो गया ? इस कांड के लिए कौन-कौन जिम्मेदार हैं? भविष्य में इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो, इसके लिए शासन और प्रशासन को क्या ऐहतियात बरतनी चाहिए? क्या नर्रा गांव की नारियों के साथ पुलिस ज्यादती हुई है? इन तमाम पहलुओं पर ग्राउंड जीरो से रिपोर्ट तैयार करने मीडिया24मीडिया की टीम पहुंची नर्रा गांव। 


पड़ताल से हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि सभी फसाद की जड़ शराब है। गांव में ज्यादतर लोग शराब पीने के आदी हैं। और शराब के अवैध कारोबारियों को पुलिस का कथित तौर पर खुला संरक्षण प्राप्त है। कहा जा सकता है कि शराब माफिया की पुलिस से यारी, गांव की शांति व्यवस्था पर भारी पड़ गया। हम यहां परत दर परत शुरू से अंत तक के घटनाक्रम पर नजर डालेंगे। जिससे कि नर्रा कांड की तरह छत्तीसगढ़ के किसी भी गांव में अशांति की पुनरावृत्ति न होने पावे।

अत्याचार के खिलाफ उग्र प्रदर्शन 

छत्तीसगढ़ के अंतिम छोर और ओडिशा के बहुत नजदीक बसा है गांव नर्रा। करीब पांच हजार की आबादी वाला बागबाहरा ब्लाक का यह आखिरी गांव है। इस गांव के आगे ओडिशा की सीमा है। क्षेत्र में छत्तीसगढ़ी में एक कहावत प्रचलित है - बने-बने रेहे बर हे त हर्रा-बहेरा खाव। अउ गड़बड़ करके मरे बर हे त नर्रा जाव ( अर्थात स्वस्थ रहना है तो हर्रा-बहेरा-आंवला का त्रिफला चूर्ण खाइये। और गड़बड़ी करके किसी उलझन में फंसना है तो नर्रा गांव जाइये।) ऐसा इसलिए कहा जाता है कि इस गांव में जागरूकता इस कदर है कि यहां के ग्रामीण अन्याय के खिलाफ बहुत जल्दी उग्र हो उठते हैं। पूरा गांव संगठित होकर अत्याचार के खिलाफ उग्र प्रदर्शन करने लगते हैं। ताजा घटनाक्रम 30 सितम्बर 2020 और 7-8 फरवरी 2021 को यहां घटित कथित संगठित अपराध की घटनाएं इस प्रचलित कहावत को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है।

घेराव आंदोलन के दौरान पथराव 

हम आपको नर्रा कांड के लिए जिम्मेदार छोटी-छोटी घटनाओं से लेकर 30 सितंबर 2020 की रात में पुलिस वाहनों में हुई तोड़फोड़, सात फरवरी 2021 को हुए चक्काजाम, और आठ फरवरी 2021 को हुए कोमाखान थाना का घेराव आंदोलन के दौरान पथराव के बाद अश्रु गैस के गोले छोड़े जाने, पुलिस द्वारा हल्का बल प्रयोग और दूसरे दिन पुलिस के द्वारा कथित तौर पर बदले की भावना से की गई कार्रवाई की बारीकियों से साक्षात्कार कराएंगे। नर्रा कांड का कारण और निवारण ढूंढने का हम प्रयास भी करेंगे। इसके लिए शुरू से अंत तक पढ़िए- नर्रा कांड: कितनी हकीकत, कितना फसाना।

 ऐसे हुई नर्रा कांड की शुरुआत 

सत्य और अहिंसा के पुजारी बापू (महात्मा गांधी) की जयंती दो अक्टूबर 2020 को मनाने और नशामुक्त गांव बनाने के लिए नर्रा गांव में 28 सितम्बर को गांव चैपाल की बैठक हुई। जहां पड़ोसी राज्य ओड़िशा से शराब लाकर गांव में बेचने से माहौल खराब होने पर गहन मंथन हुआ। इस बात पर चिंतन हुई कि गांव के युवा पीढ़ी और मेहनती मजदूर शराब से बर्बाद हो रहे हैं। बैठक में तय किया गया कि घोषणा पत्र अनुरूप गांव में छत्तीसगढ़ सरकार संपूर्ण शराबबंदी लागू करें। इसकी मांग शासन-प्रशासन से करने के लिए गांव में हस्ताक्षर अभियान चलाने का निर्णय लिया गया। 29 सितंबर को गांव में हस्ताक्षर अभियान चलाया गया। 

शराब बेचने वाले ग्रामीण का विवाद

ग्रामीणों की एकता और शराबबंदी अभियान, यहां सक्रिय शराब माफिया को नागवार गुजरा। पुलिस से हमारी यारी है, जेल जाने की गांव वालों की बारी है, ऐसा डायलाग गांव की गलियों में शराब माफिया मारने लगे। इसके साथ ही किसी न किसी बहाने नशामुक्ति आंदोलन के नेतृत्वकर्ता, उनके परिजनों और करीबी रिश्तेदारों को तंग करने का क्रम चल ही रहा था। 30 सितंबर 2020 की शाम एक ग्रामीण के साथ शराब बेचने वाले ग्रामीण का विवाद हुआ। ग्रामीणों के अनुसार कोमाखान पुलिस को इसकी सूचना दूरभाष से दी गई। घंटों बाद भी पुलिस गांव नहीं पहुंची। तब शराब कारोबार से जुड़े युवक ने गांव की गली में अशांति का माहौल बनाना प्रारंभ कर दिया। कथित तौर पर रूपये के लेनदेन को लेकर आपसी विवाद देखते ही देखते गुटबाजी में बदल गई। 

पुलिस और ग्रामीणों के बीच जमकर विवाद

शराब माफिया और उसके गुर्गों ने मिलकर एक ग्रामीण की पिटाई कर दी। इसकी जानकारी जब ग्रामीणों को हुई तो गांव वाले उद्वेलित हो उठे। और शराब के अवैध कारोबार में संलिप्त व्यक्ति के घर पर धावा बोल दिया। इससे घबराए शराब के अवैध कारोबारी ने डायल-112 पर पुलिस को जानमाल की सुरक्षा करने के लिए सूचना दी। पुलिस तत्काल मौके पर पहुंची। आक्रोशित भीड़ ने पुलिस के वाहन को घेर लिया। और पीड़ित ग्रामीणों के बुलावे पर नहीं आने और शराब के अवैध कारोबार से जुड़े व्यक्ति के बुलावे पर तत्काल आने की बात को लेकर पुलिस और ग्रामीणों के बीच जमकर विवाद हुआ।

पुलिस और ग्रामीण आपस में भिंड़े, गांव में अशांति 

पुलिस और ग्रामीणों के बीच यह विवाद देखते ही देखते अशांति में तब्दील हो गया। डायल-112 की टीम ने ग्रामीणों द्वारा घेराव कर देने की सूचना देते हुए अतिरिक्त पुलिस बल भेजने की उच्चाधिकारियों से गुजारिश की। तब कोमाखान और बागबाहरा थाना से पुलिस बल मौके पर पहुंची। कुछ पुलिसकर्मियों द्वारा शराब कारोबार से जुड़े व्यक्ति के पक्ष में बात करने से माहौल बिगड़ गया। और ग्रामीण उसके घर में छापा मारने की बात पर अड़ गए। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार जब ग्रामीणों की नहीं सुनी गई तो आक्रोशित भीड़ ने पुलिस वाहन को क्षतिग्रस्त करना प्रारंभ कर दिया। 

NDPS एक्ट के तहत केस दर्ज 

उत्पाती युवाओं की टीम द्वारा कथित तौर पर पुलिस वाहनों को ढकेल कर पलटा दिया गया। वाहनों में तोड़फोड़ भी कर दी गई। सूचना पर पुलिस के उच्चाधिकारी भी रात में ही गांव पहुंचे। जब अफसर गांव पहुंचे तो घेरकर रखे गए शराब के अवैध कारोबारी के घर की तलाशी ली गई। तलाशी में घर से दस किलो गांजा बरामद हुआ। तब पुलिस ने आरोपित युवक और उसके एक साथी को हिरासत में लेकर एनडीपीएस एक्ट के तहत प्रकरण पंजीबद्ध किया। बाद पुलिस ने पहले तो अज्ञात ग्रामीणों के खिलाफ बलवा, तोड़फोड़, शासकीय कार्य में बाधा सहित अनेक गंभीर धाराओें के तहत मामला पंजीबद्ध किया। बाद में इन्हीं धाराओं के तहत सात युवाओं और अन्य ग्रामीणों के नाम से दूसरा एफआईआर भी दर्ज कर लिया। जब इसकी जानकारी ग्रामीणों को हुई तो वे लामबंद होकर फिर से बिफर गए। 

आरक्षकों को किया गया लाइन अटैच 

सूचना मिलने पर दूसरे दिन पुलिस के अधिकारी जिला मुख्यालय महासमुंद से नर्रा गांव पहुंचे। जहां ग्रामीणों की शिकायत को गंभीरतापूर्वक सुनने के बाद कथित तौर पर उन्हें आश्वस्त किया कि कोमाखान थाना में ग्रामीणों के विरूद्ध दर्ज प्रकरण को व्यापक जनहित में खात्मा कर दिया जाएगा। समूचे घटनाक्रम के लिए पुलिस की लचर कार्यप्रणाली को जिम्मेदार मानते हुए थाना प्रभारी और चार पुलिस आरक्षकों को लाइन अटैच और एक एएसआई को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया। इससे ग्रामीणों का गुस्सा शांत हुआ। पुलिस सूत्र बताते हैं कि इस अनुशासनात्मक कार्रवाई से पुलिस महकमें में हड़कंप मच गया और पुलिस के मैदानी अमले में अपने ही अफसरों के खिलाफ माहौल बनने लगा।

 ऐसे हुआ नर्रा में बड़ा कांड 

30 सितंबर और एक अक्टूबर 2020 को तनावपूर्ण माहौल के बाद सबकुछ ठीक हो गया था। नर्रा गांव में स्वमेव और अघोषित शांति थी। इस बीच चार महीने बीत जाने के बाद नर्रा कांड का बोतल बंद जिन्न फिर से अचानक बाहर आया। तत्कालीन थानेदार को हटाए जाने और एएसआई के निलंबन की विभागीय जांच पुलिस अधीक्षक कार्यालय में चल रही थी। इसमें गवाही का सिलसिला शुरू हुआ। गवाही देने के लिए उन ग्रामीणों को भी नोटिस जारी किया गया, जिन पर बलवा और तोड़फोड़ का आरोप है। इनमें से तीन लोग बयान देने 6 फरवरी को जिला मुख्यालय महासमुंद स्थित एसपी आफिस पहुंचे थे। 

गांव में रात में ही चौपाल की बैठक 

अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक ने उनका बयान लिया और वे जब वापस घर लौट रहे थे तो कलेक्टोरेट परिसर में ही कोमाखान थाना प्रभारी ने तीनों को गिरफ्तार कर लिया। परिजन के अनुसार उन्हें इस गिरफ्तारी की सूचना भी नहीं दी गई। जब देर शाम तक युवक घर नहीं लौटे तब पता चला कि तीनों को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया गया है। जहां से न्यायिक रिमांड पर जेल भेज दिया गया है। रात में इस बात की जानकारी ग्रामीणों को हुई। इससे ग्रामीण उद्वेलित हो उठे। गांव में रात में ही चौपाल की बैठक हुई। बैठक ऐसी कि हर घर से कम से कम एक सदस्य को आना अनिवार्य होने का फरमान जारी कर दिया गया। पूरी नर्रा बस्ती को एकजुट किया गया। ग्रामीणों ने आपस में तय किया कि जेल जाएंगे तो सभी गांव वाले एक साथ। अन्यथा तीनों युवकों को पुलिस निशर्त रिहा कराए। दूसरे दिन सात फरवरी को गांव के पास चक्काजाम करने का ऐलान कर दिया गया। 

ग्रामीणों ने किया ऐलान

कथित तौर पर पेड़ काटकर सड़क पर आवाजाही बंद कर दी। सूचना पर पहुंची पुलिस और अनुविभागीय दंडाधिकारी की टीम ने ग्रामीणों को समझाइश देने की भरसक कोशिश की। लेकिन ग्रामीणों ने किसी की भी एक नहीं सुनी। अंततः पुलिस और सक्षम दंडाधिकारी शाम होने पर मौके से लौट गए और ग्रामीण भी रोड से उठकर अपने घरों में चले गए। इस बीच मीडिया में ग्रामीणों ने ऐलान कर दिया कि अगले दिन आठ फरवरी को कोमाखान थाना का घेराव करेंगे। मांगें नहीं मानी गई तो उग्र प्रदर्शन करेंगे। सोशल मीडिया में वायरल वीडियो में थानेदार को पीटने जैसी धमकी भरी बातें भी सामने आने लगी। इसके बाद पुलिस पूरी तरह से मुस्तैद हो गई। पुलिस अलर्ट होकर ग्रामीणों को थाना पहुंचने से पहले ही रोकने पर पूरा जोर लगाने लगी।

थाना घेराव की चेतावनी पर अलर्ट थी पुलिस 

कोमाखान थाना घेराव की चेतावनी के मद्देनजर पुलिस बेरिकेड्स और स्टापर लेकर नर्रा रोड पर आगे बढ़ गई। ग्रामीण बड़ी संख्या में थाना कूच कर रहे थे, दर्जनभर ट्रैक्टरों में सवार होकर कोमाखान थाना घेरने जा रहे थे। पुलिस के द्वारा थाने से करीब दो किमी दूर कांदाजरी नाला के पास स्टापर लगाकर सड़क पर आवाजाही बंद कर दी गई। पुलिस द्वारा रास्ता बंद कर दिए जाने से ग्रामीण बिफर पड़े। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार महिलाएं और ग्रामीण युवाओं की टोली द्वारा पुलिस से अभद्रतापूर्ण व्यवहार किया गया। महिला पुलिस कर्मियों को देखकर अश्लील गालियां और इशारेबाजी करने लगे। 

नाटकीय ढंग से प्रदर्शन और टकराव

पुलिस के जवान घंटों तक सबकुछ अमर्यादित बर्ताव भी बर्दाश्त करते रहे। भीड़ इतनी उग्र थी कि वे ग्रामीणों के मुखिया लोगों की बात भी सुनने को तैयार नहीं थे। बेरीकेड्स लांघने का असफल प्रयास भी किया गया। जब विफल हो गए तब ग्रामीण सड़क पर बैठ गए। करीब तीन-चार घंटे तक नाटकीय ढंग से प्रदर्शन और टकराव जारी रहा। इस बीच भूखे प्यासे बैठे ग्रामीणों के लिए जलपान की व्यवस्था करने की बात कहकर गांव के प्रमुख और सरपंच आदि वहां से रवाना हुए। तभी भीड़ के बीच से किसी ने पुलिस पर पथराव कर दिया। पत्थर एक जवान को लगा और वह लहुलूहान हो गया। इससे पुलिस के सब्र का बांध टूट पड़ा। पहले भीड़ को हटाने अश्रु गैस के गोले छोड़े गए। फिर भी भीड़ तितर-बितर नहीं हो रही थी। 

प्रत्यक्षदर्शियों ने दी घटना की जानकारी

पत्थरबाजी का सिलसिला कथित तौर पर बढ़ता जा रहा था। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार कांदाजरी नाला के पास स्थित शराब दुकान से शराब पीकर आने वाले असामाजिक तत्व भी भीड़ का हिस्सा बन गए और पुलिस की ओर पथराव एकदम से बढ़ गया। तब पुलिस ने जवाबी कार्रवाई करते हुए डंडा बरसाना शुरू किया। लाठीचार्ज होते देखकर भीड़ छटी और लोग सरपट गांव की ओर भागे। तब तक पुलिस के जवान भी बहुत ज्यादा आक्रोशित हो गए थे।


ग्रामीणों को दौड़ा-दौड़ाकर पकड़ा, पथराव और पिटाई भी 


ग्रामीणों को दौड़ा-दौड़ाकर पकड़ा और कुछ लोगों की जमकर धुनाई भी की। ग्रामीणों और महिलाओं को वीडियो फुटेज के आधार पर चिन्हांकित करके उनके घरों से रातोंरात उठाया गया। बागबाहरा और तेंदूकोना थाना में रातभर रखकर पुलिस के जवानों ने कथित तौर पर जमकर अपनी भड़ास निकाली। एक महिला को साड़ी फटते तक पीटने की भी खबर है। पुलिस के मैदानी अमले द्वारा महिला को पुलिस द्वारा साड़ी दिए जाने की भी पुष्टि हुई है। बाद में दूसरे दिन सुबह महिलाओं को एसडीएम न्यायालय से जमानत मुचलके पर रिहा किया गया। 

महानिदेशक डीएम अवस्थी के निर्देश पर कार्रवाई

वहीं नामजद रिपोर्ट पर धारा 147, 148, 149, 294, 323, 188, 332, 353, 427 के मामले में बीस लोगों को गिरफतार कर न्यायालय में पेश किया गया है। पीड़ित महिलाओं ने 15 फरवरी को राजभवन रायपुर पहुंचकर इस मामले की शिकायत राज्यपाल अनुसूईया उईके से की । तब पुलिस महानिदेशक डीएम अवस्थी के निर्देश पर पीड़ित महिलाओं का मेडिकल परीक्षण कराया गया। जिस पर जांच कार्रवाई की जा रही है। इधर, ग्रामीणों का कहना है कि जांच के नाम पर समूचे मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। पुलिस की कथित बर्बरतापूर्ण कार्रवाई की जांच नहीं हो रही है।

क्या पुलिस बर्बरता की शिकार हुई हैं महिलाएं ? 

यह अहम सवाल है कि राज्यपाल से मिलने गई महिलाएं क्या पुलिस बर्बरता की शिकार हुई हैं? इस सवाल का जवाब ढूंढने के लिए समूचे मामले की उच्चस्तरीय सक्षम अधिकारी से जांच और सभी पहलुओं का शूक्ष्मता से परीक्षण की जरूरत है। इतना जरूर है कि महिलाओं की शरीर पर चोंट के निशान और संवेदनशील अंगों में कथित घाव इस बात के प्रमाण हैं कि घटना तो हुई है। भीड़ में शामिल महिलाओं को चोंटें तो आई है।

पीड़ित महिला ने लगाया गंभीर आरोप 

पुलिस के मैदानी अमला ने भी दबी जुबां स्वीकार किया है कि एक महिला की साड़ी भागदौड़ के दौरान फट गई थी। जिसे थाना में गिरफ्तारी के दौरान पुलिस ने नई साड़ी देकर ससम्मान घर तक पहुंचाया। इसके विपरित पीड़ित महिला गंभीर आरोप लगा रही है कि उसे तेंदूकोना थाना में रातभर बैठाकर रखा गया और बारी-बारी से पुलिस के जवान उससे मारपीट करते रहे। यह जांच का विषय हो सकता है कि क्या वास्तव में महिलाओं के साथ थाने में ज्यादती हुई है अथवा लाठी चार्ज के दौरान भगदड़ में उसकी साड़ी फट गई थी, जिसे बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया जा रहा है?

आंशिक रूप से नक्सल प्रभावित क्षेत्र में यह घटना चिंतनीय 

महासमुंद जिला का ओडिशा सीमावर्ती यह क्षेत्र माओवाद प्रभावित चिन्हित है। इस क्षेत्र में यदा-कदा नक्सलियों के आने-जाने की खुफिया रिपोर्ट भी पुलिस के आला अधिकारियों को मिलती रहती है। ग्रामीणों से मैत्री संबंध स्थापित करने महासमुंद पुलिस द्वारा हमर पुलिस-हमर संग अभियान भी चलाया जा रहा है। इसके बैनर तले विभिन्न जनजागरूकता कार्यक्रम भी आयोजित किया जा रहा है। 

राजनीतिक मुद्दा बनाकर वोट बैंक की राजनीति

नर्रा की घटना ने कम्युनिटी पुलिसिंग की अवधारणा को चिंतनीय बना दिया है। गांव में चक्काजाम करने के नाम पर पेड़ काटकर सड़क मार्ग अवरूद्ध करना कोई साधारण घटना नहीं है। पुलिस के खिलाफ में जबरदस्त माहौल बनाने का भरसक प्रयास भी हुआ है। ऐसे माहौल का फायदा हमेशा माओवादी उठाते हैं। पुलिस इस पर भी गहन पड़ताल कर रही है कि नर्रा कांड के पीछे किसी दलम का हाथ तो नहीं है। इसे राजनीतिक मुद्दा बनाकर वोट बैंक की राजनीति करने वाले सत्तापक्ष और विपक्ष के नेताओं पर भी पुलिस की वक्रदृष्टि है। बहरहाल, गांव में शांति व्यवस्था कायम रहे, इसके लिए पुरजोर प्रयास किया जा रहा है।  

आखिर कौन है इन घटनाओं का जिम्मेदार ? 

ग्रामीणों और पुलिस के जानकार सूत्रों के अनुसार गांव में शराब की बिक्री आज-कल से नहीं वरन वर्षों से हो रही है। जिन लोगों पर शराब का अवैध कारोबार करने का आरोप है, वे भाजपा शासनकाल में भी शराब बेच रहे थे। तब सत्तापक्ष के नेता, पुलिस और गांव के प्रभावशाली लोगों के लिए मासिक चंदा का इंतजाम भी किया जाता रहा है। दबी जुबां ग्रामीण इस बात को स्वीकार भी करते हैं। सत्ता परिवर्तन होने के बाद सत्तारूढ़ दल कांग्रेस के नेताओं ने अपनी दुकानदारी शुरू कर दी। इससे पहले शराब बिकवाने वालों की रोजी-रोटी पर संकट का बादल मंडराने लगा। 

गलत गतिविधियों पर नकेल कसने का इंतजाम

तब गांव के युवाओं और महिला समिति के लोगों को उद्वेलित किया गया। वस्तुतः नर्रा कांड और विवाद फसाद की जड़ में शराब ही है। शराब गांव का माहौल खराब करने में अहम भूमिका निभा रही है। नर्रा में हुए तोड़फोड़, पथराव, चक्काजाम और लाठीचार्ज जैसे कांड के लिए पुलिस का मैदानी अमला भी कम जिम्मेदार नहीं है। समय रहते शराब माफिया की गलत गतिविधियों पर नकेल कसने का इंतजाम किया गया होता तो गांव में अशांति की स्थिति निर्मित नहीं होती।

माफिया को पुलिस का संरक्षण ! 

ग्रामीण बताते हैं कि ओडिशा से पाउच वाला शराब लाकर बेचने का काम गांव में अनेक लोग करते हैं। इनका एक सरगना है। उस माफिया सरगना को कोमाखान पुलिस का खुला संरक्षण प्राप्त है। यही ग्रामीणों के रोष का मुख्य कारण है। आबकारी एक्ट का जब भी प्रकरण दर्ज करना होता है, सरगना के वर्करों के नाम पर पुलिस मामला बनाकर कागजी खानापूर्ति कर लेती है। इसके एवज में कोमाखान थाना को सरगना द्वारा मासिक मोटी रकम देने की भी अपुष्ट खबर है। 

ग्रामीणों में बढ़ता गया आक्रोश 

झिटकी गांव के एक युवक की शराब माफिया के सरगना द्वारा पांच जून 2020 को बेदम पिटाई कर करीब दस हजार रूपये लूट की घटना कारित की गई थी। जिस पर पुलिस ने मारपीट का साधारण मामला बनाकर भी उसे संरक्षण दिया। इससे सरगना का हौसला बुलंद होता गया और पुलिस से याराना संबंध का फायदा उठाकर वह ग्रामीणों पर ज्यादती करने लगा। इससे ग्रामीणों में आक्रोश बढ़ता गया। और इसकी परिणति नर्रा कांड के रूप में सामने आयी। पुलिस के जानकार सूत्र बताते हैं कि वर्षों से शराब बेचने के बावजूद माफिया सरगना के खिलाफ पुलिस में एक भी प्रकरण दर्ज नहीं होना मिलीभगत का स्पष्ट प्रमाण है।

मीडिया व्यू.....

 ग्रामीणों की गलती:- 

ग्रामीणों को कानून व्यवस्था बनाए रखने में मदद करनी चाहिए। तोड़फोड़, चक्काजाम, घेराव, उग्र प्रदर्शन और पथराव किसी समस्या का समाधान नहीं है। यदि पुलिस सुनवाई नहीं कर रही थी। यदि निरंतर ज्यादती कर रही है। कथित तौर पर झूठा मुकदमा कायम कर रही है तो भी धैर्य और संयम के साथ लोकतांत्रिक तरीके से विरोध प्रदर्शन करना चाहिए। आवश्यकतानुसार न्यायपालिका की शरण लेनी चाहिए। लेकिन एक के बाद एक जिस तरह से पुलिस और कानून व्यवस्था को खुली चुनौती दी गई। उसे सही नहीं माना जा सकता है। 

आपराधिक प्रकरणों में कोर्ट कचहरी का सामना

संगठित अपराध करने के जुर्म में पहले सात, बाद में 20 लोगों की गिरफ्तारी हुई। और आगे न जाने कितने लोगों को पुलिस द्वारा दर्ज किए गए आपराधिक प्रकरणों में कोर्ट कचहरी का सामना करना पड़ेगा। गरीब, लाचार और मध्यमवर्गीय परिवार के लोगों को कोर्ट-कचहरी का अनावश्यक चक्कर काटना भारी साबित होता है। कुछ उपद्रवी तत्वों की गलती का खामियाजा अब गांव के ज्यादातर लोगों को भुगतना पड़ेगा।

पुलिस से भी हुई चूक:- 

कोमाखान पुलिस की लचर कार्यप्रणाली से गंभीर शिकायतों पर त्वरित कार्रवाई नहीं हुई। इसका परिणाम ही नर्रा कांड के रूप में सामने आया। शराब के अवैध कारोबारी पर लगाम लगाने यदि जरा भी प्रयास किया गया होता तो यह इतना गंभीर रूप नहीं लेता। हमारा ऐसा मानना है कि बातचीत से बड़ी से बड़ी और गंभीर समस्याओं का हल संभव है। लेकिन, पुलिस की ओर से ग्रामीणों का विश्वास नहीं जीत पाना भी एक बड़ी चूक है। जब ग्रामीणों में भारी आक्रोश था तो कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए गिरफ्तारी की प्रक्रिया को टाला जाना चाहिए था। कितने ही मामले विवेचना स्तर पर महीनों लंबित रहते हैं।

ग्रामीणों का असंतोष और कोपभाजन के शिकार

ऐसे मामलों में पुलिस अमूमन फरारी में भी न्यायालय में चालान पेश कर सकती है। लेकिन, पुलिस के कतिपय गैर अनुभवी मैदानी अमले ने समूचे मामले को प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाकर आनन-फानन में गिरफ्तारी की कार्रवाई की। गौरतलब है कि जब-जब नर्रा में अशांति हुई, जिले के अनुभवी और सुलझे हुए पुलिस अधीक्षक अवकाश पर थे। तथापि, एएसपी ने सक्रियता के साथ तत्काल मौके पर पहुंचकर स्थिति संभालने का हर संभव प्रयास किया। बावजूद, ग्रामीणों का असंतोष और कोपभाजन का शिकार होने से वे भी नहीं बच सके। इस तरह पुलिस से भी कुछ गंभीर चूक हुई है, जिसे ऐसे अन्य मामलों में सुधारने पर ध्यान दिया जाना चाहिए।

(लेखक: आनंदराम साहू, प्रेस क्लब महासमुंद के अध्यक्ष और वरिष्ठ पत्रकार हैं।) 

विशेष:- मार्च में प्रकाशित इस आलेख और 'मीडिया रिपोर्ट' पर छत्तीसगढ़ के राज्यपाल अनुसूईया उइके ने संज्ञान लेकर नर्रा कांड की दंडाधिकारी जांच कलेक्टर एवं जिला दंडाधिकारी-महासमुंद से कराने की संस्तुति की है।

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