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भूकंप और भूस्खलन से टूटा बांध, 1 लाख से ज्यादा लोगों की मौत


चीन में तेज भूकंप के झटकों से हलचल मच गई थी। दरअसल, एशिया महाद्वीप के अलग-अलग हिस्सों में भूकंप के झटके महसूस किए जाते रहे हैं। ऐसा ही एक भूकंप चीन के सिचुआन प्रांत में आया थी, जिसमें एक लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो गई। सिचुआन प्रांत को पहले कांगडिंग के नाम से जाना जाता था। इस भूकंप की वजह से भूस्खलन आया, जो बड़ी संख्या में लोगों की मौत की वजह बना। भूस्खलन की वजह से आज ही के दिन दादू नदी पर बना बांध टूट गया और इसकी चपेट में आकर एक लाख लोगों की मौत हो गई।





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चीन के कांगडिंग में एक जून 1786 को 7.7 तीव्रता का भूकंप आया था। भूकंप के शुरुआती झटकों की वजह से 435 लोग मारे गए थे। इसके बाद 10 दिनों तक लगातार झटके महसूस किए जाते रहे थे। इसकी वजह से दादू नदी पर बना बांध टूटा और फिर भूस्खलन आ गया। कांगडिंग उस इलाके में स्थित है, जहां भारतीय प्लेट और यूरोशियन प्लेट लगातार टकराते रहते हैं। इस वजह से यहां हमेशा ही भूकंप के झटके महसूस किए जाते रहे हैं।





कई जगह भूस्खलन





कांगडिंग में आए भूकंप के बाद इलाके में कई जगह भूस्खलन आने लगे। ऐसा ही एक भूस्खलन की वजह से दादू नदी ब्लॉक हो गई और यहां एक झील बन गई। इस नदी पर एक बांध बना हुआ था, जो 70 मीटर ऊंचा था। यहां पर करीब 5,00,00,000 क्यूबिक मीटर पानी स्टोर किया गया था। नौ जून तक यहां बनी झील ने बहना शुरू कर दिया। वहीं, जब 10 जून को एक और भूकंप आया तो बांध अचानक ही टूट गया। इस वजह से यहां से पानी तेजी से नीचे बहने लगा था।





केंद्र में जबरदस्त तबाही





भूकंप के कारण इसके केंद्र में जबरदस्त तबाही मची हुई थी। कांगडिंग में शहर की दीवारें ढह गईं और कई घरों और सरकारी इमारतों को भारी नुकसान पहुंचा। इसकी चपेट में आकर 250 लोग मारे गए। लुडिंग काउंटी में क्षतिग्रस्त हुई इमारतों की चपेट में आकर 181 लोग मारे गए। भूस्खलन की वजह से आयी बाढ़ तेजी से लिशान शहर तक पहुंच गई। इस वजह से शहर की दीवारें ढह गईं। वहीं, जो लोग दीवार पर खड़े होकर बाढ़ को देख रहे थे, वे इसकी चपेट में आकर बह गए. बाढ़ के विनाशकारी प्रभाव यिबिन और लुजो शहर में भी देखने को मिले। कुल मिलाकर इस आपदा में एक लाख लोग मारे गए थे।





जानिए क्यों आता है भूकंप





धरती मुख्य तौर पर 4 परतों से बनी हुई है। इनर कोर, आउटर कोर, मैनटल और क्रस्ट. क्रस्ट और ऊपरी मैन्टल कोर को लिथोस्फेयर कहते हैं। ये 50 किलोमीटर की मोटी परत कई वर्गों में बंटी हुई है, जिसे टैकटोनिक प्लेट्स कहा जाता है।





इसलिए होता है भूकंप महसूस





ये टैकटोनिक प्लेट्स अपनी जगह पर हिलती रहती हैं। जब ये प्लेट बहुत ज्यादा हिल जाती हैं, तो भूकंप महसूस होता है। ये प्लेट क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर दोनों ही तरह से अपनी जगह से हिल सकती हैं। इसके बाद वह स्थिर रहते हुए अपनी जगह तलाशती हैं। इस दौरान एक प्लेट दूसरी प्लेट के नीचे आ जाता है।





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भूकंप की तीव्रता का अंदाजा केंद्र (एपीसेंटर) से निकलने वाली ऊर्जा की तरंगों से लगाया जाता है। इन तरंगों से सैंकड़ो किलोमीटर तक कंपन होता है और धरती में दरारें तक पड़ जाती है। अगर भूकंप की गहराई उथली हो तो इससे बाहर निकलने वाली ऊर्जा सतह के काफी करीब होती है, जिससे भयानक तबाही होती है लेकिन जो भूकंप धरती की गहराई में आते हैं। उनसे सतह पर ज्यादा नुकसान नहीं होता। समुद्र में भूकंप आने पर ऊंची और तेज लहरें उठती है, जिसे सुनामी भी कहते हैं।





इस तरह मापी जाती है भूकंप की तीव्रता





भूकंप की तीव्रता को मापने के लिए रिक्टर स्केल का पैमाना इस्तेमाल किया जाता है। इसे रिक्टर मैग्नीट्यूड टेस्ट स्केल कहा जाता है। रिक्टर स्केल पर भूकंप को 1 से 9 तक के आधार पर मापा जाता है। भूकंप को इसके केंद्र यानी एपीसेंटर से मापा जाता है।





चार अलग-अलग भागों में बांटा गया है भूकंप जोन





दरअसल, भूकंप को लेकर 4 अलग-अलग जोन में बांटा गया है। मैक्रो सेस्मिक जोनिंग मैपिंग के मुताबिक इसमें जोन-5 से जोन-2 तक शामिल है। जोन 5 को सबसे ज्यादा संवेदनशील माना गया है और इसी तरह जोन दो सबसे कम संवेदनशील माना जाता है।


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