
उसी जमीन की अदला-बदली का गुणा-भाग इन दिनों फिर से चल रहा है। कलेक्टर के माध्यम से एक बार फिर जलकी के जमीन का जिन्न बोतल से बाहर आ गया है। रायपुर से प्रकाशित एक दैनिक समाचार पत्र में आम सूचना का प्रकाशन हुआ है। इससे गांव में फिर से जमीन से जुड़े मसले की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। यह इन दिनों राजनीतिक गलियारे में चर्चा का भी विषय बन रहा है।
कुर्सी की लड़ाई में शह-मात का खेल
जानकार सूत्र बताते हैं कि तत्कालीन मुख्यमंत्री और उनके सिपहसालारों ने इसी जमीन को तीन साल पहले मुद्दा बनवाया। अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदी को पछाड़ने के लिए जलकी की जमीन का जिन्न बनवाया। कुर्सी की लड़ाई में शह-मात का खूब खेल चला। तब यह चर्चा का विषय होता था कि दो सांड की लड़ाई में कोई भी सुरक्षित नहीं है। कलेक्टर से लेकर पटवारी तक मोहरा बनाए गए। शतरंजी बिसात में अपनी-अपनी चालें चली गई। अंततः खतरा भांपकर दोनों सांड अपने-अपने रास्ते चलने में भी भलाई समझकर शांत हो गए थे।
धरती पकड़ नेता की जमीनी पकड़
धरती पकड़ के नाम से विख्यात हैं इस जमीन के अधिपति नेताजी। उन्होंने साम-दाम-दंड-भेद का इस्तेमाल करके जलकी की जमीन के जिन्न को बोतल में बंद करा ही दिया। अब एक बार यह जिन्न जब फिर बोतल से बाहर आया है तब चर्चा-ए-आम है कि क्या करामात दिखाएगा जलकी के जमीन का यह जिन्न। क्योंकि धरती पकड़ के नाम से चहेतों के बीच विख्यात नेताजी की जमीन से लेकर आसमान तक मजबूत पकड़ है। सरकार किसी की भी हो, चलेगी इनकी।
क्या हुक्म है मेरे आका !
अलादीन का चिराग घिसने पर जिन्न प्रकट होता था। यहां तो बिना घिसे ही जिन्न प्रकट हो रहे हैं। नेताजी विपक्ष में हैं। बिरादरी के नेताजी राजस्व मंत्री हैं। एक फोन घनघनाया नहीं कि क्या हुक्म है मेरे आका की बोल सुनाई पड़ती है। जमीन से जुड़े जमींदार रोड पर आ गए और जमीन से जुड़े नेता सरकारी जमीन पर भी अच्छी पकड़ बना लिए हैं। अब देखना होगा कि बोतल से एक बार फिर बाहर आया जलकी के जमीन का जिन्न अपने आका के हुक्म पर क्या जादुई कारनामा दिखाता है।