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शहीद वीर नारायण सिंह शहादत दिवस पर विशेष

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सोनाखान के मोर ललहु माटी,,सुरता आथे हम ला,,,

वीर नारायण ला कहां लुका देस,वापिस कर दे हम ला,,,,

 सोनाखान से _पोषण कुमार साहू

रायपुर //सोनाखान की वीरभूमि से आज फिर वही गर्जना सुनाई दे रही है— “वीर नारायण सिंह अमर रहें… अमर रहें…”। ललहु माटी से उठती यह हुंकार केवल नारा नहीं, बल्कि उस आत्मबल की गूंज है, जो छत्तीसगढ़ के पहले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शहीद वीर नारायण सिंह ने जन-जन के हृदय में प्रवाहित किया था। उनकी शहादत की गाथा गाते हुए लोग भावुक हैं, आँखें नम हैं और मन गर्व से भरा हुआ।

वीर नारायण सिंह केवल एक नाम नहीं, वे अन्याय के विरुद्ध खड़े आदिवासी चेतना के प्रतीक हैं। 19वीं सदी में अंग्रेजी हुकूमत और जमींदारी शोषण के दौर में, जब अकाल से जनता त्रस्त थी, तब वीर नारायण सिंह ने मानवता का झंडा बुलंद किया। उन्होंने सोनाखान के अनाज भंडार को भूखे लोगों के लिए खोल दिया—यह कदम शोषण के विरुद्ध खुली चुनौती था। अंग्रेजी सत्ता को यह स्वीकार्य नहीं हुआ। परिणामस्वरूप उन पर मुकदमे थोपे गए, उन्हें गिरफ्तार किया गया और अंततः 10 दिसंबर 1857 को रायपुर  के जय स्तम्भ चौक में फांसी दे दी गई। परंतु शरीर को फांसी मिली, विचारों को नहीं—वे अमर हो गए।

आज उनकी कहानियाँ जन-जन की जुबान पर हैं। ग्राम कोसम सरा से आए समारु बैगा भावुक होकर कहते हैं कि वीर नारायण सिंह ने हमारी पीढ़ियों को मान और गौरव से भर दिया। अंचल में उनके लिए असीम श्रद्धा और सम्मान है। वे लोगों की रग-रग में बसते हैं—साहस बनकर, स्वाभिमान बनकर।

यहाँ उनकी स्मृति में प्रतिवर्ष तीन दिवसीय वीर मड़ई मेला (शहादत दिवस) का आयोजन होता है, जहाँ सोनाखान के 18 टोलों सहित सर्व समाज के लोग बड़ी संख्या में जुटकर श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। ग्राम जोराडबरी रोहासी से आए प्रेम सिंह ध्रुव बताते हैं कि वे अपने परिवार के साथ हर वर्ष यहाँ आते हैं—श्रद्धा के साथ-साथ गौरव की अनुभूति करने।

सोनाखान आज भी अपने वीर सपूत के नाम से गर्व और सम्मान से विभूषित है। सरकार इस शहीद स्थल के संरक्षण और संवर्धन के लिए प्रतिबद्ध है। यहाँ वीर नारायण सिंह के नाम से स्मारक और संग्रहालय का निर्माण किया गया है, जो आने वाली पीढ़ियों को उनके संघर्ष और बलिदान से परिचित कराता है। शहादत दिवस के अवसर पर  आज मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय द्वारा 101 करोड़ रुपये के 119 विकास कार्यों का लोकार्पण इस बात का प्रमाण है कि यह पवित्र भूमि केवल स्मृति की नहीं, बल्कि विकास और सम्मान की भी धरोहर है।

ललहु माटी आज फिर जीवंत है। हवा में गूंजते नारे, आँखों में सम्मान और दिलों में संकल्प—वीर नारायण सिंह यहां हर जगह मौजूद  हैं। वे सोनाखान की मिट्टी में, उसकी सांसों में, और छत्तीसगढ़ की चेतना में सदा जीवित हैं।

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