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डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की जयंती पर प्रधानमंत्री मोदी ने किया राष्ट्रनिर्माता के योगदान का स्मरण

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नई दिल्ली- भारत के प्रथम राष्ट्रपति और संविधान निर्माण के महानायक डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की जयंती के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। प्रधानमंत्री ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर संदेश साझा करते हुए कहा कि डॉ. प्रसाद का जीवन सत्यनिष्ठा, सादगी और राष्ट्र सेवा का अद्वितीय उदाहरण है, जिसकी प्रेरणा आज भी देश की नई पीढ़ियों का मार्गदर्शन करती है।

प्रधानमंत्री ने अपने संदेश में लिखा:

“डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जी को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि। स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाने से लेकर संविधान सभा की अध्यक्षता करने और हमारे पहले राष्ट्रपति बनने तक, उन्होंने अतुलनीय गरिमा, समर्पण और स्पष्ट उद्देश्य के साथ देश की सेवा की। लोक जीवन के उनके लंबे वर्षों में सादगी, साहस और राष्ट्रीय एकता के प्रति समर्पण की छाप रही। उनकी अनुकरणीय सेवा और दृष्टि पीढ़ियों को प्रेरित करती रहती है।”

प्रधानमंत्री के इस संदेश ने एक बार फिर उस महान नेता के प्रति देश की सामूहिक स्मृतियों को जागृत किया, जिसने अपनी संपूर्ण ऊर्जा राष्ट्रउत्थान के लिए समर्पित की।

बचपन से लेकर राष्ट्र नेतृत्व तक—डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की अद्वितीय यात्रा

3 दिसंबर 1884 को बिहार के जीरादेई में जन्मे डॉ. राजेन्द्र प्रसाद असाधारण प्रतिभा और गहन नैतिक मूल्यों से संपन्न थे। बचपन से ही मेधावी, विनम्र और अनुशासित—वे छात्रों के बीच "राजेन्द्र बाबू" के नाम से प्रसिद्ध थे।

उनकी शिक्षा कलकत्ता विश्वविद्यालय में हुई, जहाँ उन्होंने कानून की पढ़ाई में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया। बाद में वे देश के सर्वश्रेष्ठ वकीलों में गिने जाने लगे, लेकिन राष्ट्र की पुकार पर उन्होंने अपना कानूनी करियर छोड़ दिया और स्वतंत्रता आंदोलन में पूर्णकालिक रूप से सक्रिय हो गए।

स्वतंत्रता आंदोलन में अद्वितीय नेतृत्व

डॉ. प्रसाद ने महात्मा गांधी के साथ कई ऐतिहासिक आंदोलनों में भाग लिया।
उनके प्रमुख योगदानों में शामिल हैं:

  • चंपारण सत्याग्रह में किसानों के अधिकारों के लिए अग्रणी भूमिका

  • असहयोग आंदोलन और नमक सत्याग्रह में सक्रिय सहभागिता

  • ब्रिटिश शासन की दमनकारी नीतियों के विरुद्ध संघर्ष

  • जेल में कई बार कारावास, लेकिन संकल्प एक क्षण भी कमजोर नहीं

उनकी शांत, संतुलित और प्रभावी नेतृत्व क्षमता ने उन्हें राष्ट्र के सबसे विश्वसनीय नेताओं में स्थापित किया।

संविधान सभा के अध्यक्ष—भारत के लोकतांत्रिक ढांचे के निर्माता

1946 में, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को संविधान सभा का अध्यक्ष चुना गया।
उनके नेतृत्व में:

  • विविध विचारधाराओं के प्रतिनिधियों ने एकजुट होकर संविधान तैयार किया

  • कठिन बहसों को धैर्य और सरल भाषा में समझाते हुए संतुलन बनाया

  • गांधीवादी मूल्यों, लोकतंत्र, न्याय और समानता को संविधान में मजबूत आधार मिला

भारत का संविधान आज विश्व के सर्वोत्तम संविधान मॉडलों में से एक माना जाता है—जिसे अंतिम रूप देने में डॉ. प्रसाद की भूमिका केंद्रीय रही।

12 वर्षों तक भारत के राष्ट्रपति—सादगी और नैतिकता का आदर्श

26 जनवरी 1950 को जब भारत गणतंत्र बना, तो डॉ. राजेन्द्र प्रसाद सर्वसम्मति से देश के पहले राष्ट्रपति चुने गए।
कुल 12 वर्षों तक उन्होंने इस उच्चतम संवैधानिक पद को अद्वितीय गरिमा और पवित्रता के साथ निभाया—जो आज तक किसी और राष्ट्रपति के कार्यकाल से अधिक है।

उनकी कार्यशैली में:

  • निर्णयों में निष्पक्षता और नैतिक दृढ़ता

  • सरकार के कामकाज पर सजग, लेकिन संवैधानिक मर्यादा का कठोर पालन

  • आम जनता के बीच लगातार संपर्क

  • सादगी की ऐसी मिसाल कि राष्ट्रपति भवन में भी सामान्य जीवनशैली बनाए रखी

राष्ट्रपति पद छोड़ने के बाद भी वे सार्वजनिक जीवन में सक्रिय रहे और समाजसेवा में लगे रहे।

भारत रत्न और अमर विरासत

1962 में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न प्रदान किया गया।
वे न केवल एक महान स्वतंत्रता सेनानी और राष्ट्रपति थे, बल्कि:

  • लेखक

  • सामाजिक सुधारक

  • शिक्षाविद

  • किसान और गरीबों के सच्चे हितैषी

उनकी पुस्तकें, भाषण और जीवन मूल्य आज भी देश के लिए प्रेरणास्रोत हैं।

प्रधानमंत्री का संदेश—नए भारत के लिए प्रेरक संकल्प

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की जयंती पर प्रधानमंत्री के श्रद्धांजलि संदेश ने इस तथ्य को रेखांकित किया कि राष्ट्र निर्माण की यात्रा में मूल्यों, त्याग और देशभक्ति का महत्व आज भी उतना ही है जितना स्वतंत्रता के समय था।

प्रधानमंत्री ने देशवासियों से आग्रह किया कि वे डॉ. प्रसाद के आदर्शों से प्रेरणा लें और राष्ट्र की एकता, विकास और संवैधानिक मूल्यों को मजबूत करने में योगदान दें।

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