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दीपावली: भारत की जीवंत परंपरा अब UNESCO की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर सूची में शामिल

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भारत की सबसे व्यापक रूप से मनाई जाने वाली जीवंत परंपराओं में से एक दीपावली को आज UNESCO की मानवता की प्रतिनिधि अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर सूची में शामिल किया गया। यह निर्णय नई दिल्ली स्थित लाल किले में आयोजित UNESCO अंतर-सरकारी समिति के 20वें सत्र के दौरान लिया गया।

यह महत्वपूर्ण घोषणा केन्द्रीय संस्कृति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत, संस्कृति मंत्रालय के सचिव विवेक अग्रवाल, मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों, तथा 194 सदस्य देशों के प्रतिनिधियों, अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों और UNESCO के वैश्विक नेटवर्क के सदस्यों की उपस्थिति में की गई।

अपने संबोधन में केन्द्रीय संस्कृति मंत्री ने कहा कि यह सूचीकरण भारत के लिए तथा विश्वभर में दीपावली की चिरंतन भावना को जीवित रखने वाले सभी समुदायों के लिए अत्यंत गर्व का क्षण है। उन्होंने कहा कि दीपावली “तमसो मा ज्योतिर्गमय” — अंधकार से प्रकाश की ओर — के सार्वभौमिक संदेश को अभिव्यक्त करती है, जो आशा, नवसृजन और सद्भाव का प्रतीक है।

लोक-आधारित और जीवंत परंपरा का उत्सव

संस्कृति मंत्री ने दीपावली के लोक-केंद्रित स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह पर्व करोड़ों लोगों के सामूहिक योगदान से जीवंत रहता है —

  • दीये बनाने वाले कुम्हार,

  • पारंपरिक सजावट तैयार करने वाले कारीगर,

  • किसान,

  • मिठाई बनाने वाले,

  • पुजारी,

  • तथा वे सभी परिवार जो सदियों से चली आ रही परंपराओं को संजोते हैं।

उन्होंने कहा कि यह अंतर्राष्ट्रीय मान्यता उन सभी के सामूहिक सांस्कृतिक श्रम को समर्पित है जो इस परंपरा को निरंतर आगे बढ़ाते हैं।

भारतीय प्रवासी समुदाय की भूमिका

मंत्री ने दक्षिण-पूर्व एशिया, अफ्रीका, खाड़ी देशों, यूरोप और कैरेबियन में बसे भारतीय प्रवासी समुदाय की महत्वपूर्ण भूमिका को भी रेखांकित किया, जिन्होंने दीपावली के संदेश को महाद्वीपों तक पहुँचाकर सांस्कृतिक सेतु को मजबूत किया है।

पीढ़ियों तक परंपरा को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी

इस सूचीकरण के साथ आने वाली नई जिम्मेदारी पर बल देते हुए मंत्री ने नागरिकों से अपील की कि वे दीपावली की समावेशिता और एकता की भावना को अपनाएँ तथा भारत की समृद्ध अमूर्त सांस्कृतिक परंपराओं को आगे बढ़ाने में योगदान दें।

दीपावली: एकता, नवीकरण और सामाजिक सद्भाव का प्रतीक

दीपावली को इसकी गहरी सांस्कृतिक महत्ता और क्षेत्रीय व वैश्विक स्तर पर समुदायों द्वारा मनाए जाने वाले जन-पर्व के रूप में मान्यता दी गई है।
इसके विविध रूप—

  • दीये जलाना,

  • रंगोली बनाना,

  • पारंपरिक कला,

  • अनुष्ठान,

  • सामुदायिक आयोजन,

  • तथा पीढ़ी-दर-पीढ़ी ज्ञान का हस्तांतरण—
    इस त्योहार की जीवंतता और समय तथा भूगोल के अनुरूप ढलने की क्षमता को दर्शाते हैं।

वृहद परामर्श प्रक्रिया पर आधारित नामांकन

संस्कृति मंत्रालय ने यह नामांकन संगीत नाटक अकादमी के माध्यम से तैयार किया, जिसमें

  • कलाकारों,

  • कारीगरों,

  • कृषक समुदायों,

  • प्रवासी भारतीय समूहों,

  • दिव्यांगजनों,

  • ट्रांसजेंडर समुदाय,

  • सांस्कृतिक संगठनों
    तथा परंपरा निर्वाहकों से व्यापक राष्ट्रीय परामर्श शामिल था।
    सभी ने दीपावली के समावेशी चरित्र, समुदाय-आधारित निरंतरता और विशाल आजीविका तंत्र का प्रमाण प्रस्तुत किया—जिसमें कुम्हार, रंगोली कलाकार, मिठाई बनाने वाले, फूलवाले और अन्य शिल्पकार सम्मिलित हैं।

UNESCO की मान्यता का महत्व

UNESCO ने दीपावली को एक जीवंत विरासत के रूप में स्वीकार किया है जो सामाजिक संबंधों को मजबूत करती है, पारंपरिक शिल्पकला को सहारा देती है, उदारता और कल्याण के मूल्यों को प्रोत्साहन देती है और कई सतत विकास लक्ष्यों—जैसे आजीविका संवर्धन, लैंगिक समानता, सांस्कृतिक शिक्षा और सामुदायिक कल्याण—में सार्थक योगदान देती है।

संस्कृति मंत्रालय ने इस निर्णय का स्वागत करते हुए कहा कि इससे भारत की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर के प्रति वैश्विक जागरूकता बढ़ेगी और समुदाय-आधारित परंपराओं के संरक्षण के प्रयास और सुदृढ़ होंगे।


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