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बटसेरी, हिमाचल प्रदेश में देवदार वृक्षों ने उजागर किया हिमालय में वसंत सूखे और भू-आपदा का इतिहास

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हिमाचल प्रदेश के संगला घाटी के बटसेरी गाँव में स्थित देवदार (Deodar) पेड़ों ने छोटे हिम युग (Little Ice Age, LIA) के दौरान वसंत ऋतु में अधिक वर्षा और 1757 ईस्वी के बाद सुक्खे होते वसंत का इतिहास उजागर किया। हाल के दशकों में वसंत में सूखे की घटनाएँ बढ़ी हैं, जो उनके वृक्ष-छल्लों (Tree Rings) में दर्ज हैं।

यह अध्ययन भू-आपदा गतिविधियों के कारणों का विश्लेषण करता है और भविष्य की आपदा घटनाओं की पूर्वानुमान और चेतावनी प्रणाली के विकास में मदद करता है।

अत्यधिक जलवायु घटनाओं और भू-आपदाओं का संबंध

हिमालय क्षेत्र में सूखा, बाढ़, भूस्खलन, ग्लेशियल झील प्रकोप (GLOFs), चट्टान गिरना और हिम-स्खलन जैसी घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति ने यह स्पष्ट किया कि भूतपूर्व जलवायु और भू-आपदा घटनाओं का अध्ययन आवश्यक है।

वृक्ष-छल्लों का महत्व

वृक्ष-छल्ले प्रत्येक वर्ष बनने वाली लकड़ी की परतें होती हैं, जो पेड़ की उम्र और पर्यावरणीय स्थितियों का रिकॉर्ड देती हैं। देवदार के वृक्ष-छल्लों का अध्ययन (Dendroclimatology और Dendrogeomorphology) हमें वर्तमान और भविष्य के भू-आपदा जोखिमों को समझने और उनके लिए रणनीति बनाने में सक्षम बनाता है।

अध्ययन की पृष्ठभूमि

जुलाई 2021 में बटसेरी गाँव के पास एक भारी चट्टान गिरने की घटना ने बिर्बल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पेलियोसाइंसेज (BSIP), DST के अंतर्गत वृक्ष-छल्लों के माध्यम से भूतपूर्व जलवायु और भू-आपदा अध्ययन करने के लिए प्रेरित किया।

अध्ययन में देंड्रो-क्लाइमेटोलॉजी और देंड्रो-जियोमोर्फोलॉजी को एकीकृत किया गया ताकि भविष्य के जोखिम मूल्यांकन और न्यूनीकरण रणनीतियाँ तैयार की जा सकें।

मुख्य निष्कर्ष

  • देवदार वृक्ष-छल्लों के अध्ययन से 378 वर्षों (1558-2021 CE) का वसंत ऋतु का नमी इतिहास और 168 वर्षों (1853-2021 CE) का चट्टान गिरने का रिकॉर्ड तैयार किया गया।

  • पेड़ की वृद्धि विशेष रूप से फरवरी से अप्रैल के महीनों की नमी पर निर्भर थी, जो पश्चिमी विक्षेप (Western Disturbances) से प्रभावित होती है।

  • कुल 53 चट्टान गिरने की घटनाओं का पता चला, जिनमें 8 उच्च तीव्रता वाली थीं। ये घटनाएँ विशेष रूप से 1960 के बाद के सूखे वसंत से संबंधित थीं।

  • वसंत में सूखे के कारण ढलानों पर विकसित वनस्पति कमज़ोर हो गई, जिससे जब मानसून में भारी वर्षा हुई, तो ढलान अधिक संवेदनशील बन गए।

स्थानीय और नीति-निर्माण पर प्रभाव

  • अध्ययन ने जलवायु परिवर्तन और भू-आपदाओं के बीच के संबंध को उजागर किया।

  • इससे वन प्रबंधन, जल संसाधन प्रबंधन और ढलान सुरक्षा उपायों में सुधार की आवश्यकता स्पष्ट होती है।

  • यह दृष्टिकोण सड़क और अन्य बुनियादी ढांचे को नुकसान से बचाने, स्थानीय लोगों की आजीविका की रक्षा और आपदा तैयारी बढ़ाने में मदद करता है।

  • साथ ही, यह समुदायों को जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन और जोखिम न्यूनीकरण में सशक्त बनाता है।

निष्कर्ष

यह अध्ययन जर्नल Catena में प्रकाशित हुआ और हिमालय क्षेत्र में वसंत और पूर्व-मॉनसून सूखे के कारण भू-आपदाओं के जोखिम को बेहतर ढंग से समझने में मदद करता है।


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