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उपराष्ट्रपति राधाकृष्णन ने संविधान दिवस पर संविधान की मूल भावना और राष्ट्रीय संकल्प को किया रेखांकित

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उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति, सी. पी. राधाकृष्णन ने आज संविधान सदन के केंद्रीय कक्ष में आयोजित संविधान दिवस (संविधान दिवस) समारोह को संबोधित किया। अपने संबोधन में उन्होंने भारत के संविधान की दूरदर्शिता, मूल्यों और उसकी स्थायी विरासत को रेखांकित किया।

संविधान: राष्ट्र की आत्मा का दस्तावेज़

उपराष्ट्रपति ने कहा कि 2015 से हर वर्ष 26 नवंबर को संविधान दिवस मनाया जाता है, जो आज प्रत्येक भारतीय के लिए गर्व का अवसर बन गया है। उन्होंने कहा कि डॉ. भीमराव अम्बेडकर, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, एन. गोपालस्वामी अयंगार, अल्लादी कृष्णस्वामी अय्यर, दुर्गा बाई देशमुख जैसे महान नेताओं ने संविधान का निर्माण इस तरह किया कि उसकी हर पंक्ति में राष्ट्र की आत्मा बसती है।

उन्होंने कहा कि संविधान स्वतंत्रता सेनानियों के त्याग, सपनों और समष्टिगत बुद्धिमत्ता का दस्तावेज़ है, जिसने भारत को विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र बनने की नींव प्रदान की।

तेज़ विकास की मिसाल

राधाकृष्णन ने कहा कि व्यावहारिक और समग्र (saturation-based) दृष्टिकोणों के कारण भारत ने विकास संकेतकों पर उल्लेखनीय प्रगति हासिल की है।

  • उन्होंने बताया कि भारत आज चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और जल्द ही तीसरे स्थान पर पहुंचेगा।

  • पिछले 10 वर्षों में 25 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकाला गया।

  • 100 करोड़ से अधिक नागरिक विभिन्न सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के दायरे में आए हैं।

भारत — प्राचीन काल से लोकतंत्र की जन्मस्थली

उपराष्ट्रपति ने कहा कि लोकतंत्र भारत के लिए नया नहीं है। वैशाली के गणराज्य और दक्षिण भारत के चोलों की “कुडवोलई” प्रणाली इसका प्रमाण हैं। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर और बिहार में हाल के चुनावों में उच्च मतदान लोगों के लोकतंत्र में अटूट विश्वास को दर्शाता है।

महिला शक्ति और जनजातीय योगदान को सलाम

उन्होंने संविधान सभा की महिला सदस्यों का सम्मान करते हुए हंसा मेहता के शब्दों को उद्धृत किया—
“हमने सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय की माँग की है।”

उन्होंने कहा कि नारी शक्ति वंदन अधिनियम 2023 उनके योगदान के प्रति उचित सम्मान है, जो महिलाओं की बराबरी की भागीदारी सुनिश्चित करता है।

उन्होंने जनजातीय समुदायों की स्वतंत्रता आंदोलन और संविधान निर्माण में भूमिका को भी याद किया और कहा कि जनजातीय गौरव दिवस (2021 से) उनके सम्मान का प्रतीक है।

न्याय, समानता और सबके लिए अवसर

उपराष्ट्रपति ने कहा कि संविधान में निहित न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के सिद्धांत प्रत्येक नागरिक को, चाहे वह किसी भी जाति, क्षेत्र, भाषा या धर्म का हो, समान अधिकार प्रदान करते हैं।

परिवर्तनशील समय में सुधारों की आवश्यकता

उन्होंने कहा कि तेजी से बदलते वैश्विक परिदृश्य में

  • चुनावी,

  • न्यायिक, और

  • वित्तीय प्रणाली में सुधार आवश्यक हैं।

उन्होंने जीएसटी (One Nation–One Tax) और जाम (जन-धन, आधार, मोबाइल) त्रिमूर्ति को सरल शासन और सीधे लाभ वितरण के प्रभावी मॉडल बताया।

विक्सित भारत @2047 का संकल्प

समापन में उपराष्ट्रपति ने कहा कि संविधान को सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि उसके मूल्यों को अपने जीवन में उतारें और एक सामर्थ्यवान, समावेशी तथा समृद्ध विक्सित भारत 2047 के निर्माण में अपना योगदान दें।


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