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नीति आयोग और कर्नाटक सरकार ने जल पुनः उपयोग पर राष्ट्रीय कार्यशाला आयोजित की

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नीति आयोग ने कर्नाटक सरकार और बेंगलुरु जलापूर्ति एवं सीवरेज बोर्ड (BWSSB) के सहयोग से अपने राज्य समर्थन मिशन के अंतर्गत “भारत में उपचारित अपशिष्ट जल के पुनः उपयोग” विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन 6–7 नवम्बर 2025 को बेंगलुरु में किया।

कार्यशाला की अध्यक्षता माननीय सदस्य, नीति आयोग डॉ. विनोद के. पॉल एवं मुख्य सचिव, कर्नाटक सरकार डॉ. शालिनी रजनीश ने की। इसमें 18 राज्यों के वरिष्ठ अधिकारी, नीति विशेषज्ञ, थिंक टैंक के प्रतिनिधि, उद्योग जगत के नेता, शोधकर्ता, शिक्षाविद, यूनिसेफ, दक्षिण भारत के लिए इज़राइल सरकार के प्रतिनिधि, सिंगापुर वॉटर एसोसिएशन तथा ज्ञान साझेदारों ने भाग लिया। सभी ने कृषि, घरेलू गैर-पीने योग्य उपयोग और औद्योगिक क्षेत्रों में उपचारित जल के उपयोग को बढ़ाने से संबंधित चुनौतियों, अवसरों और नवाचारों पर विचार-विमर्श किया तथा भारत की परिपत्र जल अर्थव्यवस्था (Circular Water Economy) को सशक्त बनाने और सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) की प्राप्ति हेतु ठोस सिफारिशें प्रस्तुत कीं।

डॉ. विनोद के. पॉल ने उभरते जल संकट के संदर्भ में कहा कि प्रयुक्त जल के पुनः उपयोग की क्षमता का इष्टतम उपयोग, “विकसित भारत 2047” के लिए एक विन–विन रणनीति है। उन्होंने राज्यों में पुनः उपयोग की नीति बनाने, विभिन्न उपयोगों के लिए सामान्य मानक तय करने, डेटा सेंटर जैसे नए क्षेत्रों में प्रयुक्त जल के उपयोग को एकीकृत करने, स्वास्थ्य संबंधी पहलुओं पर ध्यान देने और व्यवहार परिवर्तन की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि उपचारित अपशिष्ट जल के पुनः उपयोग का विस्तार जल सुरक्षा सुनिश्चित करने, ताजे पानी पर निर्भरता घटाने, जलवायु लचीलापन बढ़ाने और संसाधन परिपत्रता के सिद्धांतों को आगे बढ़ाने का एक परिवर्तनकारी अवसर है। साथ ही, उन्होंने इस क्षेत्र में कर्नाटक सरकार के अग्रणी प्रयासों की सराहना की।

मुख्य सचिव, कर्नाटक सरकार डॉ. शालिनी रजनीश ने बताया कि राज्य ने 2024 में आई जल संकट की स्थिति को अवसर में बदलते हुए झीलों के पुनरुद्धार और औद्योगिक मांग को पूरा करने हेतु प्रयुक्त जल के पुनः उपयोग जैसे अभिनव उपाय किए हैं। उन्होंने उपस्थित प्रतिभागियों से राज्य और राष्ट्र दोनों के लिए ठोस रणनीतिक विचार प्रस्तुत करने का आह्वान किया।

प्रतिभागियों ने 2030 तक मजबूत राज्य स्तरीय नीतियों और विभिन्न अंतिम उपयोगों के लिए स्पष्ट सामान्य मानकों की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने जल गुणवत्ता की वास्तविक समय निगरानी प्रणालियों, स्वास्थ्य दृष्टिकोण से सुरक्षा उपायों, और उपयोगिताओं में क्षमता निर्माण को प्रभावी क्रियान्वयन के लिए आवश्यक बताया। विकेन्द्रित शोधन प्रणालियों (decentralised systems) के लिए कम लागत वाली प्रौद्योगिकियाँ और सतत परिचालन एवं रखरखाव ढांचे को प्रमुख सक्षम कारक (enablers) के रूप में पहचाना गया।

कार्यशाला में कई राज्यों के श्रेष्ठ अनुभव साझा किए गए —

  • गुजरात के विस्तार योग्य पुनः उपयोग मॉडल,

  • दिल्ली की राजस्व उत्पन्न करने वाली पहलें,

  • इंदौर का बहु-क्षेत्रीय दृष्टिकोण,

  • कर्नाटक के ग्रामीण-औद्योगिक एकीकृत पुनः उपयोग तंत्र,

  • तमिलनाडु का औद्योगिक उपयोग हेतु तृतीयक उपचारित जल मॉडल,

  • और महाराष्ट्र के प्रौद्योगिकी आधारित ग्रे-वॉटर समाधान।

इन सभी मॉडलों ने अन्य राज्यों के लिए पुनः उपयोग को व्यापक रूप से अपनाने की संभावनाएँ प्रदर्शित कीं।
अंतर्राष्ट्रीय और निजी क्षेत्र के प्रतिनिधियों ने सहयोगी व्यापार मॉडल, नवोन्मेषी वित्तीय ढांचे और तकनीकी साझेदारी के महत्व को रेखांकित किया, ताकि भारत शीघ्र ही परिपत्र जल अर्थव्यवस्था की दिशा में अग्रसर हो सके।

कार्यशाला का समापन 7 नवम्बर को बी.डब्ल्यू.एस.एस.बी. के के & सी वैली सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट तथा कुब्बन पार्क ट्रीटमेंट प्लांट के मैदानी निरीक्षण के साथ हुआ, जहाँ प्रतिभागियों ने उपचार एवं पुनः उपयोग की उन्नत तकनीकों का अवलोकन किया।

कार्यशाला में प्रमुख प्रतिभागी —

कर्नाटक सरकार के अतिरिक्त मुख्य सचिव (शहरी विकास विभाग) तुषार गिरी नाथ, अतिरिक्त सचिव एवं मिशन निदेशक, अमृत, आवास एवं शहरी कार्य मंत्रालय, भारत सरकार, डी. थारा,
ग्रेटर बेंगलुरु महानगर पालिका के मुख्य आयुक्त महेश्वर राव, कार्यक्रम निदेशक, नीति आयोग श्री युगल जोशी, तथा बेंगलुरु जलापूर्ति एवं सीवरेज बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. वी. राम प्रसाथ मनोहर ने कार्यशाला की चर्चाओं में भाग लिया।


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