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आर्कटिक सर्कल असेंबली 2025 में भारत की सक्रिय भागीदारी: प्रो. (वैद्य) रबिनारायण आचार्य ने आर्कटिक में आयुष की संभावनाओं पर किया जोर

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भारतीय प्रतिनिधिमंडल के हिस्से के रूप में, प्रो. (वैद्य) रबिनारायण आचार्य, महानिदेशक, केंद्रीय आयुर्वेदिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (CCRAS), तथा डॉ. श्रीनिवास राव चिंता, संयुक्त सलाहकार (होम्योपैथी), आयुष मंत्रालय, ने आइसलैंड की राजधानी रेक्जाविक में आयोजित 2025 आर्कटिक सर्कल असेंबली में भाग लिया।

“द रोल एंड इम्पॉर्टेंस ऑफ द ग्लोबल साउथ इन द आर्कटिक” शीर्षक वाले पूर्ण सत्र (प्लेनरी सेशन) के दौरान, प्रो. आचार्य ने भारत की व्यापक आर्कटिक नीति के अंतर्गत आर्कटिक क्षेत्र में उसकी सक्रिय भागीदारी प्रस्तुत की। उन्होंने वैश्विक स्वास्थ्य चुनौतियों से निपटने में पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों की बढ़ती प्रासंगिकता पर जोर दिया और आर्कटिक जैसे चरम पर्यावरणों में भी स्वास्थ्य और प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में आयुष (AYUSH) पद्धतियों की संभावनाओं को रेखांकित किया।

यह सत्र भारत सरकार द्वारा आयोजित किया गया था और इसमें प्रमुख वक्ताओं के रूप में रियर एडमिरल टी.वी.एन. प्रसन्ना, पोलर कोऑर्डिनेटर, भारत सरकार; मनीष तिवारी, वैज्ञानिक ‘एफ’, राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं महासागरीय अनुसंधान केंद्र (NCPOR); तथा वसीम सईद, स्टीयरिंग कमेटी सदस्य, एमिरेट्स पोलर प्रोग्राम (यूएई) शामिल थे।

प्रो. आचार्य ने पारंपरिक ज्ञान प्रणालियों और आर्कटिक अनुसंधान के बीच सहयोग को सशक्त करने की एक दूरदर्शी रूपरेखा प्रस्तुत की। उन्होंने सुझाव दिया कि आर्कटिक क्षेत्रों में अंतरविषयक प्रूफ-ऑफ-कॉन्सेप्ट क्लिनिकल परीक्षण प्रारंभ किए जाएँ, आर्कटिक नीति ढांचे के तहत एक संयुक्त अनुसंधान संघ (कंसोर्टियम) की स्थापना की जाए, तथा क्रॉस-कल्चरल आयुष डिलीवरी और सुरक्षा निगरानी में क्षमता विकास किया जाए। उन्होंने यह भी बल दिया कि पारंपरिक और आधुनिक चिकित्सा के बीच सेतु के रूप में वैज्ञानिक साक्ष्य प्रकाशित करना अत्यंत आवश्यक है और भारत की आर्कटिक कूटनीति में आयुष जागरूकता को समाहित किया जाना चाहिए।

आयुष मंत्रालय के प्रतिनिधिमंडल की यह भागीदारी यह दर्शाती है कि भारत वैश्विक स्थिरता और स्वास्थ्य संवादों में आयुष-आधारित साक्ष्य, नवाचार और कूटनीति को एकीकृत करने के लिए प्रतिबद्ध है। यह सहभागिता भारत की इस भूमिका को पुनः स्थापित करती है कि वह समग्र स्वास्थ्य, वैज्ञानिक सहयोग और जन-से-जन साझेदारी को अपनी आर्कटिक नीति के तहत सक्रिय रूप से बढ़ावा दे रहा है।

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