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भारत ने विकसित किया पहला स्वदेशी एंटीबायोटिक “नैफिथ्रोमाइसिन” और हेमोफीलिया में पहला सफल जीन थेरेपी क्लिनिकल ट्रायल

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मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने आज जानकारी दी कि भारत ने अपना पहला स्वदेशी एंटीबायोटिक “नैफिथ्रोमाइसिन” विकसित किया है, जो प्रतिरोधी श्वसन संक्रमणों के उपचार में प्रभावी है और विशेष रूप से कैंसर रोगियों तथा असंतुलित मधुमेह रोगियों के लिए उपयोगी है।

डॉ. सिंह ने बताया कि यह पहली ऐसी एंटीबायोटिक अणु है जिसे पूरी तरह से भारत में अवधारित, विकसित और क्लिनिकल रूप से मान्य किया गया है, जो फार्मास्यूटिकल क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

नैफिथ्रोमाइसिन का विकास भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग और प्रसिद्ध निजी फार्मा हाउस वॉकहार्ड के सहयोग से किया गया है।

डॉ. सिंह ने इसे उद्योग-शैक्षणिक साझेदारी की सफल मिसाल बताते हुए कहा कि भारत को एक स्व-संवहनीय नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र बनाने की आवश्यकता है, ताकि सरकार पर निर्भरता कम हो और निजी क्षेत्र तथा दानदाताओं की भागीदारी से भारत को वैश्विक स्तर पर अनुसंधान और नवाचार में मान्यता मिल सके।

तीन दिवसीय मेडिकल कार्यशाला “हाइब्रिड मल्टी-ओमिक्स डेटा एनालिसिस में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग” का उद्घाटन करते हुए, डॉ. सिंह ने कहा कि भारत को अपनी वैज्ञानिक और अनुसंधान क्षमताओं को बढ़ाने के लिए एक आत्मनिर्भर पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करना होगा। उन्होंने कहा कि अधिकांश देशों ने जो विज्ञान और नवाचार में वैश्विक पहचान प्राप्त कर चुके हैं, उन्होंने स्व-संचालित, नवाचार-प्रेरित मॉडल अपनाए हैं जिसमें निजी क्षेत्र की व्यापक भागीदारी शामिल रही है।

डॉ. सिंह ने यह भी बताया कि भारत ने हेमोफीलिया उपचार में पहला स्वदेशी सफल जीन थेरेपी क्लिनिकल ट्रायल पूरा कर लिया है। यह ट्रायल जैव प्रौद्योगिकी विभाग के समर्थन से निजी क्षेत्र के अस्पताल, क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज वेलोर में किया गया। इस ट्रायल में 60–70% सुधार दर दर्ज की गई और किसी भी रोगी में रक्तस्राव की घटना नहीं हुई, जो भारत के चिकित्सा अनुसंधान में एक मील का पत्थर है। इसके परिणाम New England Journal of Medicine में प्रकाशित किए गए हैं।

डॉ. सिंह ने कहा कि भारत ने अब तक 10,000 से अधिक मानव जीनोम अनुक्रमित किए हैं और इसे एक मिलियन तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा है।

उन्होंने अनुसंधान राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन (ANRF) का उल्लेख किया, जिसमें पाँच वर्षों में कुल ₹50,000 करोड़ का निवेश होगा, जिसमें से ₹36,000 करोड़ गैर-सरकारी स्रोतों से आएंगे। यह मॉडल भारत के अनुसंधान एवं विकास दृष्टिकोण में एक परिवर्तन को दर्शाता है और इसमें शैक्षणिक संस्थान और उद्योग की अधिक भागीदारी को प्रोत्साहित किया गया है।

डॉ. सिंह ने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) आज सबसे परिवर्तनकारी उपकरणों में से एक बन चुका है, जो स्वास्थ्य सेवा, शासन और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में क्रांतिकारी बदलाव ला रहा है। उन्होंने बताया कि AI आधारित हाइब्रिड मोबाइल क्लीनिक ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा प्रदान कर रहे हैं। साथ ही DARPG द्वारा विकसित AI-आधारित शिकायत निवारण प्रणाली ने साप्ताहिक निपटान दर 97–98% प्राप्त की है, जिससे नागरिक संतुष्टि और सेवा वितरण में सुधार हुआ है।

डॉ. सिंह ने सिर गंगा राम अस्पताल जैसी संस्थाओं की सराहना की, जिन्होंने AI, बायोटेक्नोलॉजी और जीनोमिक्स को एकीकृत करके स्वास्थ्य परिणामों में सुधार किया। उन्होंने सरकार, निजी अस्पताल और अनुसंधान संस्थानों के बीच सहयोग बढ़ाने का आह्वान किया।

डॉ. सिंह ने कहा कि भारत बायोटेक्नोलॉजी, AI और जीनोमिक मेडिसिन में आत्मनिर्भरता के नए युग में प्रवेश कर रहा है। नवाचार, सहयोग और करुणा के सम्मिलन से भारत की यात्रा को विकसित राष्ट्र बनने की दिशा में आगे बढ़ाने और वैश्विक विज्ञान और प्रौद्योगिकी नेतृत्व स्थापित करने में मदद मिलेगी।

इस अवसर पर ANRF के CEO डॉ. शिव कुमार कल्यानरामन, डॉ. एन.के. गांगुली, डॉ. डी.एस. राणा और डॉ. अजय स्वरूप भी उपस्थित थे।

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