छत्तीसगढ़ विधानसभा के लिए हो रहे निर्वाचन-2023 को लेकर चौक-चौराहे पर तरह-तरह की चर्चाएं हो रही है। इस पर मीडिया का नजरिया क्या है? चर्चाओं को रोचक अंदाज में प्रस्तुत करने और सम-सामयिक विषयों पर चुटीले अंदाज में कलम चलाने, कलमकारों को प्रोत्साहित करने के लिए नया कॉलम "चर्चा चौराहे पर" प्रारंभ किया जा रहा है।
इस कालम का संपादन वरिष्ठ पत्रकार व श्रीपुर एक्सप्रेस और मीडिया24मीडिया समूह के प्रधान संपादक श्री आनंदराम पत्रकारश्री कर रहे हैं। इसमें उल्लेखित तथ्यों की जानकारी संचार के विभिन्न माध्यमों, जन चर्चा और कानाफूसी पर आधारित है। व्यंग्यात्मक शैली में प्रस्तुत आलेख से किसी की भी मानहानि नहीं होगी, इसका विशेष ख्याल रखा गया है। आलेख में किसी व्यक्ति विशेष, संस्था अथवा दल विशेष पर कटाक्ष नहीं है। किसी घटना अथवा कड़ी का आपस में जुड़ जाना महज एक संयोग होगा। इस संबंध में कोई दावा-आपत्ति स्वीकार्य नहीं है।
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जमीन से जुड़े हुए हैं नेताजी
छत्तीसगढ़ का महासमुन्द जिला। यहाँ एक विधानसभा क्षेत्र में दो नए चेहरे चुनाव मैदान में हैं। दोनों खुद को जमीन से जुड़े हुए नेता बता रहे हैं। जनता समझ नहीं पा रही है कि कौन किस तरह से
जमीन से जुड़े हैं। एक नेता तो संगठन में काम करते हुए गांव-गली की खाक छान चुके हैं। जमीनी लीडर होने का उनका दावा समझ में आता है। दूसरा लीडर एकदम नया चेहरा है। ग्रामीण क्षेत्र में लोग उन्हें जानते-पहचानते ही नहीं हैं। तब कैसे जमीन से जुड़े हुए हैं नेता जी ? इस पर राजनीति के गूढ़ रहस्यों के जानकार एक कलमकार ने टिप्पणी की-
"एक जमीन से जुड़े नेता हैं। दूसरे भी जमीन से जुड़े (जमीन दलाली) से जुड़े हैं। अब देखना होगा कि जनता किसे चुनती है? किसे धराशायी करती है? "
इस पर सबकी निगाहें टिकी हुई है। इतना जरूर है कि जमीन से जुड़े एक नेता की जमीन से प्रतिद्वंदी दल के राष्ट्रीय नेता जनसभा को संबोधित करने वाले हैं। यह बड़ी दरियादिली है कि विपक्षी नेता की आमसभा के लिए अपनी जमीन के उपयोग की सहर्ष सहमति दी गई है। यह वही मैदान है, जहाँ से राष्ट्रीय नेता पहले भी विशाल जनसभा को संबोधित कर चुके हैं। जमीन से जुड़े होने और जनाधार दोनों में जमीन-आसमां का अंतर है।
गैस का चक्कर क्या है ?
महासमुन्द जिले का एक चर्चित विधानसभा क्षेत्र खल्लारी। जहाँ के लिए कहा जाता है कि यहाँ 'बाहरी' को ज्यादा मौका मिलता है। कभी-कभी स्थानीय को भी जनता चुन लेती है। यहाँ गैस के कारोबार से जुड़े एक नेताजी की जमकर चर्चा है। जिस गैस ने अच्छी पहचान दिलाई। जिस गैस की महत्वाकांक्षी योजना में कथित तौर पर अच्छा काम करने से टिकट मिली। वही गैस अब मुसीबत बन रही है। 25 हजार से अधिक कनेक्शन में गोलमाल किए जाने की अपुष्ट खबरें मिल रही है। ऐन चुनाव के वक़्त विपक्षी नेता-कार्यकर्ता गैस के चक्कर का मसला उठा रहे हैं। गैस को हवा मिली तो नेताजी को बदहजमी होना स्वाभाविक है। गैस की समस्या न हो, इसके लिए 'कायमचूर्ण' की तलाश शुरू हो गई है। अब देखना होगा कि अफसरों से उगाही कर ज्यादा खाने वाले के पेट में उत्पन्न 'वात रोग' का तारणहार वैधराज कौन साबित होते हैं। चुनावी गलियारे में एक ही चर्चा है- ये गैस का चक्कर क्या है ?
लोकतंत्र में राजशाही ठाठ
महासमुन्द जिले के एक विधानसभा क्षेत्र में महल का खासा प्रभाव माना जाता है। आजाद भारत में भी 'हमर राजा' और 'हमर राजकुमार' की आस्था से लोकतांत्रिक व्यवस्था पर सवाल खड़े होते हैं। राजतंत्र खत्म हो गया, फिर भी क्षेत्र की जनता 'राजा साहब' के वंशजों को अपना पालनहार मानती है। यही वजह है कि आज भी गांव-गांव में थाल सजाकर, आरती उतारकर एक उम्मीदवार की पूजा की जा रही है।
वहीं दूसरी ओर
" लक्ष्मी जी की कृपा से सब काम हो रहा है।
माया से राजनीति में बड़ा नाम हो रहा है।"
जनता दरबार में जनसेवा का संकल्प लेने वाले सख्श के बारे में इन दिनों खूब चर्चा हो रही है। राइस मिलरों को बुलाया गया। चुनाव लड़ने चंदा के रूप में 11-11 लाख रुपये देने का अनुरोध किया गया। मिलरों ने साफ कह दिया कि हम चावल के कारोबारी हैं, चावल एक नम्बर में बनाते हैं। कोयला के कारोबारी नहीं कि हमारे हाथ मे कालिख लगे हैं। हम इतनी मोटी रकम नहीं दे सकते हैं। बेचारे नेताजी अपनी पीड़ा किसी को नहीं बता पा रहे हैं।
मेरी तो किस्मत ही खराब है !
महासमुन्द जिले का एक श्यामवर्ण नेता जी। यथा नाम तथा गुण। राजनीति में रंग चमकाने हर जतन कर चुके हैं। पर क्या करें-हर बार किस्मत ही साथ नहीं देती है। दल बदल कर देख लिया। चुनाव लड़कर देख लिया। लेकिन, दलाली और ठेकेदारी की पहचान जो बन गई है, वह मिटती नहीं है। अब तो हाईकमान को भी समझ में आ गया है कि अवसरवादी और दलबदलू नेताओं की हैसियत क्या है? अच्छे विचारधारा के लोगों को अब राजनीति में महत्व मिलने लगा है, ऐसा प्रतीत हो रहा है। तभी तो नेताजी को दरकिनार कर दिया गया। 'जाति समाज' का प्रभाव दिखाकर दूसरे दल से टिकट मिलने की उम्मीद में जंप लगाई। यह चतुराई भी काम नहीं आई। वहाँ पहले से पैठ जमाए जो बैठीं थी चातुरी ताई। अब अपनी किस्मत का रोना रो रहे हैं। अपने किए करतूतों का पाप धो रहे हैं। मौका चुके सिकंदर और डाली से झुके बंदर का वजूद खत्म हो जाता है। इसी तर्ज पर राजनीति में किस्मत ही खराब होने का रोना रो रहे हैं। अब तो किस्मत का ही खेल है कि किसकी किस्मत में विधायक बनना लिखा है।