महासमुंद। दिल्ली में सरेआम एक किशोरी की चाकू मारकर हत्या करने की लोमहर्षक घटना पर देशभर में तरह-तरह की प्रतिक्रिया हो रही है। चाकूबाजी करने वाले युवक को नहीं रोके जाने पर मूकदर्शक पड़ोसियों और राहगीरों की निंदा भी की जा रही है। तब यह ज्वलंत सवाल है कि इस तरह की घटनाओं के प्रति क्या अब समाज का नजरिया संवेदनहीन हो गया है?
किसान मजदूर संघ के संयोजक व आरटीआई एक्टिविस्ट ललित चन्द्रनाहू ने इस पर गहरी चिंता जाहिर करते हुए कहा है कि समाज का नजरिया बदलने की जरूरत है। जब तक लोगों में पड़ोसी से मधुर संबंध, मानवीयतापूर्ण आचरण, आत्म रक्षा के साथ-साथ अन्याय और अत्याचार के खिलाफ आवाज बुलंद करने का गुण विकसित नहीं किया जाएगा, इस तरह के नजारे देखने की विवशता रहेगी। हथियार बंद युवक का सामना करने का साहस किसी ने नहीं किया। लोग मूकदर्शक और तमाशबीन बने रहे। यह प्रत्यक्षदर्शियों की विवशता और संवेदनहीन दोनों होने का परिचायक है। समाज में परस्पर सहयोग का कम होना, स्वार्थीपन और मुझे किसी झंझट में नहीं पड़ना है, जैसी विचारधारा का परिणाम है। इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए नागरिकों को जागरूक करने, बीचबचाव करने वालों को सार्वजनिक रूप से प्रोत्साहित करने, पुरस्कृत करने और पुलिस-न्यायालय के चक्कर से मुक्त रखे जाने की कानूनी व्यवस्था बनाने की जरूरत है।
यह घटना राष्ट्रीय राजधानी में कानून की लचर व्यवस्था का सबसे बड़ा उदाहरण है। जहां पर हथियार लेकर सरेआम घूम रहे और ताबड़तोड़ वार कर मौत के घाट उतार रहे युवक की वारदात का पुलिस को भनक तक नहीं लगना, चिंतनीय है। उन्होंने जनसामान्य में मानवता की कमी और घटना-दुर्घटना से दूरी बनाए जाने के लिए पुलिस की कार्यप्रणाली, न्यायपालिका में गवाही के नाम पर घंटों-घंटों इंतजार और संवेदनशील व्यक्तियों को प्रोत्साहित करने के बजाए प्रताड़ित करने को मुख्य वजह बताते हुए कहा कि सामाजिक व्यवस्था में आए बदलाव के अनुरूप कानून व्यवस्था में परिवर्तन की आवश्यकता है। इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए अदम्य साहस का परिचय देने वालों के लिए आर्थिक, सामाजिक सुरक्षा का इंतजाम किया जाना चाहिए। यह वर्तमान समय की जरूरत है। बेटियों को आत्म रक्षा के गुर अनिवार्य रूप से सिखाया जाना चाहिए। स्कूली शिक्षा में आत्मरक्षा के गुर सिखाए जाने को अनिवार्य किया जाना चाहिए।