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देशद्रोह कानून को लेकर सख्त हुई सुप्रीम कोर्ट, नए केस दर्ज करने पर लगाई रोक

देशद्रोह कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बहुत ही सख्त फैसला लिया है। कोर्ट ने कहा है कि पुनर्विचार तक राजद्रोह कानून के तहत कोई नया मामला दर्ज न किया जाए। कोर्ट ने पहले से दर्ज मामलों में भी कार्रवाई पर रोक लगा दी है। वहीं इस धारा में जेल में बंद आरोपी भी जमानत के लिए अपील कर सकते हैं। इस मामले की अगली सुनवाई जुलाई के तीसरे हफ्ते में होगी। इधर, कोर्ट के फैसले पर केंद्रीय कानून मंत्री ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है।

कानून मंत्री किरेन रिजीजू ने कहा कि हम कोर्ट और इसकी स्वतंत्रता का सम्मान करते हैं, लेकिन एक लक्ष्मण रेखा है, जिसका सम्मान सभी अंगों द्वारा किया जाना चाहिए। कानून मंत्री ने आगे कहा कि हमने अपनी स्थिति बहुत स्पष्ट कर दी है और PM मोदी के इरादे के बारे में कोर्ट को सूचित किया है। इससे पहले केंद्र सरकार ने बुधवार को 1870 में बने 152 साल पुराने राजद्रोह कानून पर सुप्रीम कोर्ट में जवाब दायर किया। इसके बाद कोर्ट ने केंद्र को इस कानून के प्रावधानों पर फिर से विचार करने की अनुमति दे दी।  

इसके पहले सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि देशद्रोह कानून पर रोक न लगाई जाए। हालांकि उन्होंने ये प्रस्ताव दिया है कि भविष्य में इस कानून के तहत FIR पुलिस अधीक्षक की जांच और सहमति के बाद ही दर्ज की जाए। CJI एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत त्रिपाठी और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने ये भी आदेश दिया है कि इसके बाद भी अगर कोई नया केस दर्ज किया जाता है तो पीड़ित पक्ष कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है। 

13 हजार लोग जेल में बंद

निचली अदालतों से भी अपील है वे पारित आदेश को ध्यान में रखते हुए मांगी गई राहत की जांच करें। गौरतलब है कि कपिल सिब्बल ने कोर्ट में जानकारी दी है कि देशद्रोह कानून के तहत देशभर की जेलों में 13 हजार लोग आज तक बंद हैं। केंद्र ने कहा कि जहां तक लंबित मामलों का सवाल है संबंधित अदालतों को आरोपियों की जमानत पर शीघ्रता से विचार करने का निर्देश दिया जा सकता है। देशद्रोह के मामलों में धारा 124-ए से जुड़ी 10 से ज्यादा याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है।

कानून के प्रभाव पर रोक लगाना सही नहीं: केंद्र

केंद्र सरकार ने कहा कि संज्ञेय अपराध को दर्ज होने से नहीं रोका जा सकता है। कानून के प्रभाव पर रोक लगाना सही नहीं हो सकता, इसलिए जांच के लिए एक जिम्मेदार अधिकारी होना चाहिए। मामला तभी दर्ज हो, जब वह कानून के तहत तय मानकों के अनुरूप हो। SG तुषार मेहता ने कहा कि देशद्रोह के लंबित मामलों की गंभीरता का पता नहीं है। इनमें शायद आतंकी या मनी लॉन्ड्रिंग का एंगल है। वे कोर्ट में विचाराधीन हैं और हमें उनके फैसलों का इंतजार करना चाहिए।

इन्होंने ने की मामले की सुनवाई

केंद्र ने ये दलील भी दी कि कोर्ट की संविधान पीठ द्वारा बरकरार रखे गए देशद्रोह के प्रावधानों पर रोक लगाने के लिए आदेश देना सही तरीका नहीं हो सकता है। एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, TMC सांसद महुआ मोइत्रा समेत पांच पक्षों की तरफ से देशद्रोह कानून को चुनौती देने वाली याचिका दायर की गई थी। मामले में याचिकाकर्ताओं का कहना है कि आज के समय में इस कानून की जरूरत नहीं है। इस मामले की सुनवाई CJI एनवी रमना की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच कर रही है। इस बेंच में जस्टिस सूर्यकांत त्रिपाठी और जस्टिस हिमा कोहली भी शामिल हैं।

नए केस दर्ज होंगे या नहीं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार से पूछा था कि क्या इस एक्ट में नए केस दर्ज होंगे या नहीं? कोर्ट ने ये भी पूछा था- देश में अभी तक जितने IPC 124-A एक्ट के तहत केस चल रहे हैं, उनका क्या होगा? वह राज्य सरकारों को निर्देश क्यों नहीं दे रहा है कि जब तक इस कानून को लेकर पुनर्विचार प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती, तब तक 124ए के तहत मामलों को स्थगित रखा जाए। केंद्र सरकार ने देशद्रोह कानून पर पुनर्विचार करने का फैसला किया है। 

केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में दी थी दलील

केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि देशद्रोह कानून के प्रावधानों पर सरकार दोबारा विचार और जांच करेगी। केंद्र ने कोर्ट में एक हलफनामा दिया है। इसमें कोर्ट से अपील की गई है कि इस मामले पर सुनवाई तब तक न की जाए, जब तक सरकार जांच न कर ले। पिछले गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने देशद्रोह कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की थी। इस दौरान केंद्र की ओर से यह दलील दी गई थी कि इस कानून को खत्म न किया जाए, बल्कि इसके लिए नए दिशा-निर्देश बनाए जाएं।

याचिका दायर करने वालों में ये शामिल 

देशद्रोह कानून पर याचिका दायर करने वालों में पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी, मणिपुर के पत्रकार किशोरचंद्र वांगखेमचा, छत्तीसगढ़ के कन्हैयालाल शुक्ला शामिल हैं। इस कानून में गैर-जमानती प्रावधान हैं। यानी भारत में कानून द्वारा स्थापित सरकार के खिलाफ नफरत, अवमानना, असंतोष फैलाने को अपराध माना जाता है।  देशद्रोह मामले में दोषी पाए जाने वाले व्यक्ति को 3 साल की जेल से लेकर आजीवन कारावास की सजा हो सकती है। देशद्रोह गैर जमानती अपराध की कैटेगरी में आता है। देशद्रोह का दोषी पाया जाने वाला व्यक्ति सरकारी नौकरी के लिए अप्लाय नहीं कर सकता है। साथ ही उसका पासपोर्ट भी रद्द हो जाता है। जरूरत पड़ने पर उसे कोर्ट में उपस्थित होना पड़ता है।

इस कारण लगता है देशद्रोह

अगर कोई व्यक्ति राष्ट्रीय चिन्हों या संविधान का अपमान या उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश करता है या सरकार विरोधी सामग्री लिखता या बोलता है तो उसके खिलाफ IPC सेक्शन 124A के तहत देशद्रोह का केस दर्ज हो सकता है। इसके अलावा ऐसा कोई भाषण या अभिव्यक्ति जो देश में सरकार के खिलाफ घृणा, उत्तेजना या असंतोष भड़काने का प्रयास करता है, वह भी देशद्रोह में आता है। साथ ही अगर कोई व्यक्ति देश विरोधी संगठनों से जाने या अनजाने संबंध रखता है उन्हें किसी भी तरह का सहयोग देता है, तो भी वह देशद्रोह के दायरे में आता है।

कालीचरण और कन्हैया जैसे 13 हजार लोग फंसे 

कालीचरण और JNU के नेता रहे कन्हैया कुमार पर संसद हमले के दोषी अफजल गुरु पर एक विवादास्पद कार्यक्रम के दौरान भारत विरोधी नारे लगाने के लिए देशद्रोह का आरोप है। विनोद दुआ के खिलाफ हिमाचल प्रदेश के एक स्थानीय भाजपा नेता ने उनके यूट्यूब शो को लेकर मामला दर्ज कराया था। 3 जून 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने दुआ के खिलाफ दर्ज देशद्रोह के मामले को खारिज कर दिया। साल 2021 की जनवरी में नोएडा पुलिस ने कांग्रेस सांसद शशि थरूर सहित छह पत्रकारों पर राजद्रोह का मामला दर्ज किया था। यह मामला एक शिकायत पर दर्ज किया गया था, जिसमें आरोप लगाया था कि इन लोगों के सोशल मीडिया पोस्ट्स और डिजिटल प्रसारण राष्ट्रीय राजधानी में किसानों की ट्रैक्टर रैली के दौरान हिंसा के लिए जिम्मेदार थे।

जेल में बंद लोगों के बाहर आने की उम्मीद

गुजरात में पाटीदारों के लिए आरक्षण की मांग करने वाले नेता हार्दिक पटेल के खिलाफ देशद्रोह का केस दर्ज हुआ था। 25 अगस्त 2015 को अहमदाबाद में पाटीदार आरक्षण समर्थक रैली के बाद राज्य में तोड़फोड़ और हिंसा हुई थी। पुलिस ने चार्जशीट में हार्दिक पर आरोप लगाया कि उन्होंने राज्य में हिंसा फैलाने और चुनी हुई सरकार को गिराने का षड्यंत्र रचा था। देशद्रोह के मामले में अभी उमर खालिद और शरजील इमाम जैसे छात्र एक्टिविस्ट, सिद्दीक कप्पन और गौतम नवलखा जैसे पत्रकार, रोना विल्सन और शोमा सेन जैसे एक्टिविस्ट और कई लोग अभी जेल में हैं। जबकि वरवरा राव जैसे बुजुर्ग कवि-एक्टिविस्ट भी हैं। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट  के फैसले के बाद सभी लोगों के जेल से बाहर आने की उम्मीद है। 

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