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आनंदराम साहू.
महासमुंद । 26/1 पटेवा हादसा : एक ऐसी दिल दहला देने वाली घटना, जो अकल्पनीय है। बहुत ही गरीब परिवार की बेटी किरण पढ़ लिखकर फौजी बनना चाहती थी। देश की सेवा करना चाहती थी। लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। वह तिरंगे के लिए जान हथेली पर रख तो दी। यह सबकी नजर में करंट लगने से मौत है, शहादत नहीं। अभी मासूम बेटी की शहादत की उम्र ही कहां हुई थी? वह तो जीवन के 15 बसंत ही देखी थी। तीसरी कक्षा से ही उसके मन में देशभक्ति का जज्बा जागा था। वह बड़ी होकर फौजी बनना चाहती थी। शायद यही जज्बात है जो उसने तिरंगे को जमीन में गिरने नहीं दिया। राष्ट्रीय ध्वज को झुकने नहीं दी। तिरंगे के आन-बान-शान के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। अब इस बलिदानी बेटी की शहादत पर 'मौत की राजनीति' होने लगी है। ऐसे समय में हमने ऑन द स्पॉट पहुंचकर जिम्मेदारी /लापरवाही को करीब से परखने का प्रयास किया। तो चौकाने वाला तथ्य सामने आया है। विद्युत वितरण कम्पनी की बड़ी लापरवाही हमारी पड़ताल में उजागर हुई है।
अहम सवाल - डेड लाइन पर विद्युत आपूर्ति क्यों ?
दअरसल, तिरंगा झंडा लगा हुआ लोहे का राड जिस 11 केवी विद्युत लाइन से टकराया है, वह डेड लाइन है। अर्थात इस लाइन से होकर वर्तमान में किसी भी फीडर को विद्युत आपूर्ति नहीं हो रही है। वर्षों पहले से ही बावनकेरा फीडर की सप्लाई लाइन डायवर्ट की जा चुकी है। तब यह सवाल उठ रहा है कि इस अनुपयोगी लाइन के पांच विद्युत पोल पर आखिर विद्युत आपूर्ति कई साल से बंद क्यों नहीं की गई? छात्रावास परिसर में लगे विद्युत ट्रांसफर के पास से तीन तारों को काट कर अलग कर दिया गया होता तो इतनी बड़ी दर्दनाक घटना ही नहीं होती।
पुलिस की जांच-पड़ताल पर सवालिया निशान
बच्चियों की सुरक्षा की नैतिक जिम्मेदारी अधीक्षक की है। इस वजह से पूरा ठीकरा उसके सिर पर फूटना, जनाक्रोश को दबाने के लिए त्वरित कार्यवाही करना लाजिमी है। घायल छात्रा काजल अस्पताल में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से चर्चा के दौरान पहले दिन ही बता दी थी कि - 'छात्रावास वाली मम्मी' (छात्राएं अधीक्षक को इसी नाम से पुकारती हैं) ने उन्हें झंडा उतारने नहीं कहा था। उन लोगों (किरण और काजल) ने अति उत्साह में आकर तिरंगा झंडा निकालने की कोशिश की।" इस वजह से यह हादसा हो गया। बावजूद बिना गहन जांच-पड़ताल के पुलिस ने किरण की मौत के लिए प्रथम दृष्टया अधीक्षक को जिम्मेदार मानकर अपराध भी पंजीबद्ध कर लिया है। मौका-ए-घटनास्थल की कहानी कुछ और ही बयां करती है। सूत्रों का दावा है कि बिजली विभाग की लापरवाही को छुपाने छात्रावास अधीक्षक को बलि का बकरा बना दिया गया।
चार साल से तार हटवाने प्रयासरत थी अधीक्षक !
कन्या छात्रावास पटेवा में अधीक्षक ऐश्वर्या साहू करीब सात साल से पदस्थ है। उन्होंने चार साल पहले वर्ष 2017 में विद्युत वितरण कम्पनी को पत्र लिखकर हॉस्टल भवन के समीप से होकर गुजरे इन तारों को हटाने की मांग की थी। इसके बाद अनेकों बार मौखिक रूप से आग्रह किया। बावजूद, विद्युत वितरण कम्पनी के जिम्मेदार लोगों ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। यह भी संभव है कि कागज में हटाने की कार्यवाही विद्युत वितरण कम्पनी ने पूरी कर ली हो। लेकिन, मौके से तार हटाया ही नहीं गया। डेड लाइन में करंट सप्लाई विद्युत वितरण कम्पनी की बड़ी लापरवाही है। जिसका ठीकरा पूरी तरह से अधीक्षक के सिर पर फोड़कर जांच कार्यवाही की जा रही है। छात्रा की सुरक्षा की नैतिक जिम्मेदारी अधीक्षक की है। इसके लिए उन्हें क्लीन चिट नहीं दिया जा सकता है। लेकिन, विद्युत विभाग की घोर लापरवाही को नजर अंदाज करना बेमानी होगी।
बिजली खम्बे की ऊंचाई भी है कम
छात्रावास के मुख्य द्वार के सामने से ही यह विद्युत लाइन गुजरी है। जहां पर ध्वजारोहण किया जाता है, उसके बहुत करीब से बिजली के तार लगे हुए हैं। बिजली खम्बे की ऊंचाई मानक मापदंडों के प्रतिकूल प्रतीत होता है। पहले पुरूष कर्मचारी छात्रावास में इस खम्बे को सावधानी से लगाते रहे हैं। तब वर्षों तक कोई हादसा नहीं होने से सभी बेपरवाह थे। छात्रावास अधीक्षक नियमों को लेकर सजग और अनुशासन को लेकर स्ट्रीक्ट बताई जाती है। वह झंडा उतारने के लिए किसी पुरूष को छात्रावास में शाम के समय नहीं बुलाना चाहती थी। छात्रावास की चपरासी कौशिल्या ठाकुर मातृत्व अवकाश पर है। वह छात्रावास प्रांगण में हादसे के समय टहल रही थी। उसी के समक्ष अधीक्षक ने झंडा उतारने की व्यवस्था को लेकर चिंता जाहिर की। उनकी बातों को सुनकर अधीक्षक की प्रिय छात्राएं किरण और काजल ने अति उत्साह में लोहे की राड को उठा दिया। और यह गम्भीर हादसा हो गया।
अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी....
हर सिक्के का दो पहलू होता है। 26/1 की घटना के लिए प्रथम दृष्टया अधीक्षक को जिम्मेदार ठहराया गया। सभी की नजर में अधीक्षक ऐश्वर्या विलेन है। इस दुर्घटना का दूसरा पहलू यह है कि किरण छात्रावास अधीक्षक की सबसे चहेती छात्रा थी। उसकी मौत का सदमा उसे इस कदर लगा है कि वह अस्पताल में भर्ती है। तीन साल का उसका बेटा 'किरण दीदी को बुलाओ' की जिद्द करके हादसे के जख्म को पल -पल ताजा कर जाता है। वह इस सदमें से उबर नहीं पा रही है। आदर्श छात्रावास अधीक्षक का अवार्ड भी उसे एक समारोह में दिया गया था। वर्ष 2015 में उत्कृष्ट छात्रावास के लिए प्री मैट्रिक अनुसूचित जनजाति छात्रावास पटेवा को ISO9001:2015 सर्टिफिकेट मिला है। यह सभी अच्छाईयां दरकिनार हो गई। जब बच्ची अप्रत्याशित घटना की शिकार हो गई तब पूरा ठीकरा अधीक्षक के सिर पर फोड़कर प्रशासन ने अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली। ऐसे समय में मैथिलीशरण गुप्त की वह कविता याद आती है-
"अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी,
आंचल में है दूध और आंखों में पानी।।"