'मृत्यु पूर्व मृत्यु भोज' चौंक गए न आप। मैं भी चौंक गया था, जब पहली बार इस आयोजन के बारे में सुना। एक समाजसेवी और सेवानिवृत्त शिक्षक ने सामाजिक परिवर्तन के लिए यह नवाचार किया है। 69 वर्ष की आयु पूरी हो चुकी है। जीवन यात्रा कभी भी संपन्न हो सकती है। क्यों न जीवन की सार्थकता को कर्म की कसौटी पर परख लें। यह सोंचकर मृत्यु पूर्व ही मृत्यु भोज करा रहे हैं देवचन्द्र नायक।
महासमुंद जिले के बसना ब्लाक से 15 किलोमीटर दूर स्थित है पिरदा गॉव। इस गांव के देवचंद्र नायक मानव समाज के लिए एक मिशाल हैं। उनकी अब तक की जीवन यात्रा सभी के लिये प्रेरणास्पद है। 69 वर्षीय के देवचंद नायक के महान कार्यों के संबंध में संवाद करते हुए मानवीय शिक्षा शोध केन्द्र तेंदुवाही के संचालक शिक्षक गेंदलाल कोकड़िया बताते हैं कि देवचंद्र नायक का बचपन गॉव में बीता। मध्यम वर्गीय परिवार में वे पैदा हुए। माता-पिता अशिक्षित थे। इसके बावजूद उन्होंने देवचन्द्र को खूब पढ़ाया।
पढ़ाई में वे हमेशा अव्वल रहे। पढ़ लिखकर शिक्षक बने। इसके बाद अपने परिवार और गॉव के लिये हालर मिल स्थापित किया। इससे लोगों को आजीविका उपलब्ध कराने पहल किया। गांव के 20 से अधिक परिवार के 11 लोगों की शिक्षा और संस्कार की जिम्मेदारी इन्होंने खुद ली। अपने जीवन यात्रा में अब तक 8 लडकियों का विवाह उन्होंने अपनी जिम्मेदारियोें से करवाया। इनमें उनकी भी तीन बेटियां हैं। तीनों ने स्नातक, स्नातकोत्तर तक की पढाई की है।
बेटी भी समाज सेवा में अग्रणी
उनकी सुपुत्री यशोदा ने शांति कुंज हरिद्वार से यौगिक साइंस में स्नातकोत्तर डिग्री ली है। बाद 1984 में गायत्री दीक्षा लेकर अब तक 36 वर्ष में 10 हजार से अधिक परिवारों तक गायत्री परिवार के प्रचार-प्रसार में तन-मन-धन समर्पित किया है। अनेक यज्ञ,आहुतियॉ, कथा ,कहानी से मानव समाज को नई दिशा दे रहे हैं। 2 करोड़ रूपये से अधिक कीमती भूमि दान कर गायत्री मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया। भूमिदान ,औषधि उद्यान, सरस्वती शिशु मंदिर की स्थापना करने जैसे अनेक महत्वपूर्ण कार्य आपने अपने समाजिक जीवन में किया है।
अब मृत्यु पूर्व सार्थक जीवन मंथन
अब मृत्यु पूर्व सार्थक जीवन मंथन और जीवन यात्रा की समीक्षा कर रहे हैं। इसके लिए दो दिवसीय आयोजन और मृत्यु पूर्व मृत्यु भोज का आयोजन कर रहे हैं। अर्थात जब देवचन्द्र देह त्याग कर जीवन यात्रा संपन्न करेंगे, तब भोज का आयोजन नहीं होगा। इस तरह से मृत्यु भोज को समाप्त करने की दिशा में सामाजिक बदलाव का सूत्रपात होने जा रहा है। कार्यक्रम का मिनट टू मिनट (समयबद्ध) रूपरेखा तैयार है। इस नवाचार के बारे में उनका कहना है कि किसी के देहावसान के बाद खाना-पीना, अनेक धार्मिक आयोजन में लोग बहुत खर्च कर देते हैं। तब व्यक्ति तो मर चुका होता है, उन्हें अपने अच्छे-बुरे कर्मों का ज्ञान अगले जीवन यात्रा के लिए नहीं हो पाता है। जीवित रहते हुए सार्थक जीवन मंथन करें जीवात्मा देह त्याग के पहले अपने आत्मीयजनों को देख पायेगा। उन्हे अपने जीवन की उपलब्धियों को बता भी सकेगा। क्या कमियॉ रह गयी है? इसकी भी समीक्षा कर पाएगा। और आगे श्रेष्ठ जीवन जीने प्रयास कर सकेंगे।
पिरदा में होगा दो दिवसीय आयोजन
24 और 25 दिसंबर को सरस्वती शिशु मंदिर पिरदा में मृत्यु पूर्व सार्थक जीवन मंथन और भोज कार्यक्रम आयोजित किया गया है। गायत्री परिवार पिरदा संस्थान के मार्गदर्शन में इस आयोजन में छत्तीसगढ़ के अलग -अलग स्थलों से मानव समाज के लोग एकत्र होंगे। परिजनों के अलावा कार्यक्रम में कोई भी व्यक्ति सहभागी हो सकता है। जिन्हें आयोजन को लेकर उत्सुकता हो। अनेक वक्तागण इस कार्यक्रम में उपस्थित होकर सारगर्भित बातों से सभा को श्रेष्ठ जीवन जीने के लिए मार्गदर्शन करेंगे। भोजन और रात्रि विश्राम की व्यवस्था निशुल्क की जा रही है।
देवचंद्र की उल्लेखनीय उपलब्धियां
शिक्षक गेंदलाल कोकड़िया के अनुसार भारतवर्ष में हरिशचंद्र की कमी नहीं है। इनमें से एक हैं देवचंद्र नायक। देवचंद्र नायक 36 वर्ष से मानव समाज के लिये तन-मन-धन समर्पित कर रहे हैं। 10000 से अधिक लोगों तक गायत्री परिवार के माध्यम से नर और नारी में समानता का संदेश देकर सादगीपूर्ण जीवन व्यतीत कर रहे हैं। आत्म प्रचार से कोसों दूर लोकसेवा के प्रसार में मन-तन-धन समर्पितकर रहे हैं। 25 वर्षो से पिरदा सरस्वती शिशु मंदिर इनके मार्गदर्शन में संचालित हो रहा है। जिससे लगभग 250 शिक्षक ,आचार्य व दीदीजी आपके इस विद्या मंदिर से तैयार होकर मानव समाज के लिये समर्पित हैं। 10000 से अधिक बालक -बालिकायें सरस्वती शिशु मंदिर पिरदा से अध्ययन कर एक श्रेष्ठ मानव बनने के प्रयास में अभ्यासरत हैं।