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वामन कद के कर्मवीर जमुना लाल को सजल नयनों से विदाई, कर्मवीर कभी मरते नहीं

आनंदराम साहू

महासमुन्द। सुबह से रिमझिम बारिश हो रही थी। बेमौसम बरसात। ठंड के मौसम में बारिश और ठंड गायब। नींद से जागा तो यह नजारा आश्चर्यजनक था। तब यह पता नहीं था कि प्रकृति आसमान से उस कर्मवीर के लिए आंसू बहा रही थी, जिनका 'वामन अवतार' की जीवन यात्रा संपन्न हो चुकी थी। वे चिर निद्रा में सो चुके थे।

कर्मवीर हमें अलविदा कह गए

देशबंधु के कर्मठ और जीवट पत्रकार सालिकराम कन्नौजे का सुबह फोन आया। नहीं रहे जमुना लाल जी। सुनकर गहरा आघात लगा। हम लोग प्रेस क्लब में 60-70 के दशक के कलमकारों का सम्मान करने की योजना बनाते ही रह गए। और एक कर्मवीर हमें अलविदा कह गए। खुद को संभाला और सांत्वना दिया, जन्म-मृत्यु तो शास्वत सत्य है। इसे कोई नहीं बदल सकता।

जमुनालाल जी के सम्मान का अरमान अधूरा

फिर भूली बिसरी यादों में खोने लगा। कर्मवीर जमुनालाल जी का चेहरा मन मस्तिष्क को झकझोर रहा था। चंचल मन, 8 अप्रैल 2018 में गोते लगाने लगा। प्रेस क्लब महासमुन्द का नेतृत्व उसी दिन मैंने संभाला था। तब चारों स्तम्भ (विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और पत्रकारिता) के आधार स्तम्भों को एक मंच पर लाने का ऐतिहासिक आयोजन हुआ था। इसे कर पाने का सौभाग्य हमें मिला था। उस आयोजन में जमुनालाल थोड़े विलंब से ही सही, पहुंचे जरुर थे। झलप क्षेत्र के सक्रिय युवा पत्रकार नोहर साहू के सौजन्य से उन्हें शॉल ओढ़ाकर श्रीफल भेंट करने का सौभाग्य हमें मिला था। उस दिन को याद कर इस आत्मग्लानि से उबर पाया कि जमुनालाल जी के सम्मान का अरमान अधूरा रह गया।


अंतिम दर्शन की अभिलाषा में.....

 छत्तीसगढ़ी साहित्यकार बंधु राजेश्वर खरे से जमुनालाल जी की निकटता का मुझे स्मरण था। मैंने उन्हें तत्काल शोक संदेश देने के लिए फोन लगाया। वे साहित्यिक आयोजन में जाने के लिए बस से रायपुर के लिए रवाना हो चुके थे। अंतिम दर्शन की अभिलाषा में उन्होंने बस रुकवाया। रास्ते में ही खरोरा गांव के पास बस से उतर गए। फिर हम (मैं, राजेश्वर खरे और सालिकराम) अंतिम दर्शन के लिए निकल पड़े। महासमुन्द से 40 किमी दूर टूरीडीह (झलप) के मुक्तिधाम में पहुंचकर अंतिम दर्शन किए। 82 साल की उम्र में जीवन यात्रा के समापन पर भी उनके चेहरे में वही तेज। 

अर्थी भी 4-5 फुट से लंबी नहीं

माथे पर हल्दी के लेप के साथ चिपका दो रुपये का सिक्का। वह भी चिता पर रखते समय लुढ़क कर जमीन में गिर गया। देखकर अंतर्मन से एक आवाज आई-"जीवनभर धन के पीछे भागता है इंसान। निधन होता है तो सबकुछ से मुक्ति मिल जाती है।" आंखें भर आयी। वामन कद के जमुनालाल की अर्थी भी 4-5 फुट से लम्बी नहीं थी। उनके शरीर की ऊंचाई भले ही 3 फुट थी। सोच बहुत ऊंची थी। 360 नारियल से चिता सजाई गई। सजल नयनों से अंतिम विदाई देते हुए मन बारंबार यही कह रहा था- कर्मवीर कभी मरते नहीं। जीवन यात्रा में किए गए सत्कर्म प्रकृति में हमेशा ब्रम्हांड में प्रतिध्वनित होते रहते हैं। 

साहित्यकार अशोक शर्मा की कलम से...

"अमृत संदेश से जुड़ाव के कारण जमुना लाल जी के नाम और काम से मेरा भी परिचय था। किन्तु प्रत्यक्ष भेंट नहीं हुई थी। झलप से उनके नियमित समाचार महासमुंद के लगभग सभी प्रमुख समाचार पत्रों के प्रतिनिधियों के पास आते थे। जिसे संपादित कर महासमुंद से ही प्रकाशन के लिए रायपुर भेजा जाता था। इसी कारण से उनकी लेखनी, जागरूकता और कर्मठता से मेरा पूर्व परिचय था। उनसे मिलने की उत्सुकता थी। इसलिए 1988 में मेरी झलप पोस्टिंग में मैंने सबसे पहले जमुना लाल जी से ही मुलाकात की थी। 

अपने भरे पूरे परिवार के साथ जमुनालाल

सहज,सरल,विनम्र और पत्रकारिता को पूरी तरह समर्पित व्यक्तित्व। उस समय के सभी अखबारों के एजेंट भी,हॉकर भी और पत्रकार भी वही थे। झलप जैसे दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्र में अनेक वर्षों तक इस धन्यवादविहिन कार्य को पूरी लगन और निष्ठा से करने वाले जमुना लाल जी अपने शारीरिक कद में भले ही कम थे। लेकिन एक कर्मवीर के रूप में उनका कद बहुत ऊँचा था। अपने कद की तुलना में हमेशा से बहुत ऊँची सायकल चलाते हुए उन्हे बहुतों ने देखा होगा। 

उस समय तो नहीं, लेकिन अब लगता है अपने वामन कद में जमुना लाल जी समय को इस कर्म सायकल के इन बड़े पहियों से अपने कद से अधिक नाप लेने के दृढ़ निश्चय के साथ हमेशा लगे रहे और सफल भी रहे। उनके निधन का समाचार हतप्रभ करनेवाला है। परमपिता उन्हें अपनी शरण में लेकर उनकी आत्मा को शाँति प्रदान करे और परिवार को इस दुख को सहन करने की शक्ति दें,ओम शाँति.."

अपने भरे पूरे परिवार के साथ जमुनालाल

-अशोक शर्मा, महासमुन्द.

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