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कविता कबीरा की फकीरी है, कविता मीरा की प्रेम दीवानगी है: डॉ. अनूसया

महासमुंद। विगत दिनों इंटरनेशनल होटल व्यंकटेश, फूल चौंक रायपुर में छत्तीसगढ़ के विभिन्न शासकीय महाविद्यालयों में पदस्थ हिंदी के प्रबुद्ध प्राध्यापकों एवं सहायक प्राध्यापकों की विचार एवं काव्यगोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें प्रो. डॉ. अनूसया अग्रवाल डी.लिट्, प्राध्यापक एवं विभागाध्यक्ष हिन्दी शासकीय महाप्रभु वल्लभाचार्य स्नातकोत्तर महाविद्यालय, महासमुंद कार्यक्रम के अध्यक्ष के रूप में उपस्थित थी। वहीं कार्यक्रम के मुख्य आतिथ्य प्रो. डॉ. शंकरमुनि राय प्राध्यापक हिंदी शासकीय दिग्विजय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, राजनांदगॉव ने की। विशिष्ट अतिथि द्वय डॉ. उषा तिवारी प्राध्यापक हिंदी शासकीय महाप्रभु वल्लभाचार्य स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बिलासपुर एवं डॉ. सुनीता त्यागी शासकीय मिनीमाता कन्या महाविद्यालय, बलौदाबाजार रहे। 


बिना किसी औपचारिक उद्घाटन के कार्यक्रम ने रवानगी पकड़ी। कार्यक्रम का संचालन करते हुए डॉ. बीनंदा जागृत शासकीय दिग्विजय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, राजनांदगॉव ने कहा कि - कविता मनोवेगों को उत्तेजित करने का एक उत्तम साधन है। यदि क्रोध, करुणा, दया, प्रेम आदि मनोभाव मनुष्य के अन्तःकरण से निकल जाये तो वह कुछ भी नहीं कर सकता। कविता हमारे मनोभावों को उच्छ्वसित करके हमारे जीवन में एक नया जीव डाल देती हैं। उन्होंने अपनी दो पंक्तियों से कार्यक्रम का आगाज किया।

  • अलकरहा आगे कई से 
  • जमाना हा भोजली ,
  • रदियागे राम नाम के 
  •  गाना हा भोजली ।

कार्यक्रम के अध्यक्ष के रूप में डॉ. अनूसया अग्रवाल ने कहा कि - कविता उतरती है, उतारी जाती है, पूरी तैयारी और छंद ध्वनि राग साधना के साथ। शेर कहे जाते हैं, नाट्य होते जाते हैं, गीत सुरों में, स्वरों में उतारे जाते हैं पूरी नजाकत- नफासत स्वागत के साथ। बस यही कविता की गति है। कविता तुलसी का लोकगीत है, सूर की अंधी वात्सल्य-भक्ति दृष्टि है, मीरा की प्रेम दीवानगी, कबीरा की फकीरी है। दादू नानक की समाज दृष्टि, रैदास की दैन्य भक्ति है। उन्होंने अपनी दो पंक्तियों से सभा की भरपूर वाह-वाही बटोरी। 

जाने कितनी शामें यूं जिंदगी की ढ़ल जाएंगी...

फिर एक दिन न तुम आओगे न तुम्हारी यादें आएंगी

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. राय ने कहा कि - कवि के मानस की अतल गहराइयों से कोई ईश्वरीय दृष्टि, कोई अनुभूति, कोई प्रवाह, कोई गंगधार..............कुछ भी, कभी भी उतर सकता है। बस अनुकूल मानस हो, समय हो, स्थिति हो, अध्ययन या सतसंग की पृष्ठमूमि हो। इस मौके पर उन्होंने अपनी कविता की पंक्यिॉ सुनाई -

  • मेरे घर में कोई मेरा भी हो
  • ऐसा भी दिन आये।
  • रहें एक साथ मिलजुल कर
  • भले कैसा भी दिन आये।।

कार्यक्रम की विशेष अतिथि डॉ. उषा तिवारी शासकीय विज्ञान स्नातकोत्तर महाविद्यालय बिलासपुर ने कहा कि - कविता केवल रसात्मक या कर्णप्रिय अभिव्यक्ति नहीं है बल्कि कविता वह है जो कानों के माध्यम से हृदय को आंदोलित करे। जिस भाव की कविता हो उस भाव को जागृत करने में सक्षम हो। उनकी रचना की बानगी देखिए -

  • प्रकृति के खजाने मे अपने विचारो के साथ,
  • कर लो धरा गगन से कुछ बात.
  • ब्रह्मांड के कण कण मे उर्जा का संचार.
  • जो देता हमे निरंतर जीवन आधार.

विशिष्ट अतिथि डॉ. सुनीता त्यागी शासकीय कन्या महाविद्यालय बलौदाबाजार के अनुसार - समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने वाली कविता ही वास्तविक कविता होती है। यही उसका सौंदर्य है। कार्यक्रम को ऊंचाई देते हुए शासकीय महाविद्यालय भैसमा के प्राचार्य डॉ. फूलदास महंत ने कहा कि- कविता शब्द नहीं है, कविता अर्थ नहीं है, कविता वह अनुभूति भी नहीं, कविता वह रीति नीति भी नहीं जिस बंधन और तुकांत में कविता दिखती है। कविता काष्ठ की अग्नि है, कविता ऋषि के ध्यान में उतरी ध्वनि है, कविता किसी संवेदना का उन्मुक्त प्रवाह हो। हो सकता है वो कोई आग हो। कविता गंधर्व की राग हो, हो सकता है बेआवाज हो। उन्होंने अपनी रचना प्रस्तुत करते हुए कहा कि - 

  • जीवन पथ पर राही..
  • चलते जाना है,चलते जाना है,
  • कुछ एक पल  राह में यूं बिताना है
  • अपने  को अपनों से  मिलते जाना है, मिलते जाना है।
  • ऐसा भी एक इतिहास बनाना है।

शासकीय मदन लाल शुक्ल महाविद्यालय सीपत, बिलासपुर के प्राध्यापक डॉ. हीरालाल शर्मा ने अपनी रचना में बदलते समाज का चित्र खींचते हुए कहा - जितनी खुशियां मिली, मैंने सबको बांट दी, मैने जब झोली फैलाई, तो गम के सिवा कुछ न मिला। डॉ. मनीषा दीवान शासकीय बिलासा कन्या महाविद्यालय बिलासपुर ने गुलजार की इन पंक्तियों को प्रस्तुत किया - जहर का भी अपना हिसाब है, मरने के लिए थोड़ा सा और जीर्न के लिए बहुत सारा पीना पड़ता है।

कृष्ण कन्हैया की स्तुति 

डॉ. रवीन्द्र कौर चौबे शासकीय किरोड़ीमल कला एवं विज्ञान महाविद्यालय, रायगढ़ ने पुष्यमित्र उपाध्याय की रचना का सस्वर पाठ किया - कल तक केवल अंधा राजा, अब गूंगा बहरा भी है, होठ सिल दिए है जनता के, कानों पर भी पहरा है। के. एम. टी. शासकीय कन्या महाविद्यालय रायगढ़ की विभागाध्यक्ष हिन्दी डॉ. उमा नेगी ने नाथ-नाथक कृष्ण कन्हैया की स्तुति करते हुए कहा कि गये थे नाग नाथन को, बहाना गेंद खेलन का। अगर मैं जानती होती, पनिया में तैयार रखती नहलाती उस दुलारे को मेरे श्री कृष्ण प्यारे को। 

बिलासपुर ने परी कथा की प्रस्तुति की

राजनांदगांव में लता मंगेशकर के नाम से सुप्रसिद्ध डॉ. नीलू श्रीवास्तव ने अपनी सुमधुर आवाज में 1965 में रिलीज फिल्म गाइड के गीत कांटो से खींच के ये आंचल, तोड़ के बंधन बांधे पायल गाकर समां बांध दिया। डॉ. श्रावणी चतुर्वेदी बिलासा कन्या महाविद्यालय बिलासपुर ने परी कथा की प्रस्तुति की। डॉ. ईशा बेला लकड़ा ने भी काव्य पाठ प्रस्तुत किया। आभार प्रदर्शन करते हुए डॉ. राजेश चतुर्वेदी ने ब्रज भूमि की रज को महिमा मंडित करते हुए स्वच्छंद धारा के कवि घनानंद की रचनाओं का गान किया।

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